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(महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 200 लेखो की लेखमाला के क्रम में आर्य जनों के अवलोकनार्थ लेख संख्या 8)
दंडी जी ने आर्ष ग्रंथों के प्रचार अनार्ष ग्रन्थों के समूल उच्छेद की प्रतिज्ञा ली थी। यद्यपि वृद्धावस्था ने धीरे-धीरे उन्हें मृत्यु का निकटवर्ती बना दिया था लेकिन अपने इस महान उद्देश्यों को कार्य में परिणत करने के लिए सर्वदा ही उत्साहित रहते थे। वह यह भी भली भांति जानते थे केवल पाठशाला स्थापना, अध्यापन द्वारा ही यह महान संकल्प पूर्ण नहीं हो सकता। उनका मानना था बिना राजकीय शक्ति की सहायता के उनका व्रत पूरा होना असंभव है। देसी राजा ही उनके संकल्प में सहयोगी बन सकता है। अंग्रेजी राज से कोई अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। 1859 के आखिर में आगरा में गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग का दरबार लगा। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के आदेश पर ।1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के बाद भारत की जनता का विश्वास जीतने के लिए। उसमें राजपूताने के अधिकांश राजाओं ने हिस्सा लिया जिसमें जयपुर जोधपुर ग्वालियर इंदौर आदि के राजा अपनी सेना और सरदारों के साथ उसमें शामिल हुये। दंडी जी भी अपने शिष्यों के साथ आगरा की ओर प्रस्थान कर गए। दरबार में शामिल होने के लिए नहीं जयपुरपति राम सिंह द्वितीय से मिलने के लिए ।दंडी जी का जयपुर के नरेश को लेकर कुछ अनुराग था कि वह उनके मंतव्य को पूर्ण कर सकते हैं उस समय के तत्कालीन अधिकांश रियासतों के राजा पूरी तरह विलासी निस्तेज विचार शक्ति से शुन्य थे। कश्मीर और इंदौर के राजा इसका अपवाद थे। आगरा में पधारे हुए जयपुरपति रामसिंह द्वितीय को जैसे ही दंडी स्वामी जी का पता चला उन्होंने उनसे मिलने के लिए समय नियत कर दिया। नियत समय पर दंडी जी का राम सिंह द्वितीय से वार्तालाप होता है। वह अनार्ष ग्रन्थों पुराण तन्त्र आदि असत्य कपोल कल्पित ग्रन्थों के कारण भारत की दुर्दशा से राम सिंह द्वितीय को अवगत कराते हैं। राम सिंह की सभा को संबोधित करते हुए दंडी जी कहते हैं ब्राह्मण वेदविहीन हो गए हैं देश धर्महीन हो गया है ।क्षत्रिय बल तेज हीन हो गए हैं ऐसे में किस से क्या अपेक्षा की जाए यह कहते कहते दंडी जी उत्तेजित हो गए। रामसिंह द्वितीय पूरी शालीनता से उनकी बात सुनते रहे ।अंत में दंडी जी ने जयपुरपति पति से अनुरोध किया आप एक सार्वभौम सभा बनाये और उस सभा की बैठक बुलाए जिसमें पूरे भारतवर्ष के पंडित राजपुरुष उपस्थित हो। मैं युक्ति और प्रमाणों से सिद्ध कर दूंगा पाणिनी और महाभाष्य ही एकमात्र व्याकरण है ।पुराण तंत्र आदि अशास्त्रीय ग्रंथ है। वेद धर्म ही सत्य और सनातन धर्म है। अंत में विजय पत्र देकर आपके राजनाम राजमान को सार्थक करूंगा। जो सत्य और आर्ष ग्रंथ उस सभा में निर्धारित हो वही देश में सर्वत्र पठित पाठित हो।
जयपुरपति ने दंडी जी की बात सुनकर उन्हें यह आश्वासन दिया यहां इस प्रस्ताव पर विचार संभव नहीं है। मैं जयपुर लौटते ही अति शीघ्र आपके सुझाव को साकार रूप देने का प्रयत्न करूंगा। जयपुर नरेश ने दांडी जी को दक्षिणा स्वरूप धन देना चाहा दंडी जी ने लेने से अस्वीकार कर दिया। जयपुर नरेश से आश्वासन पाकर दंडी जी अपने शिष्यों के साथ मथुरा लौट आए बहुत समय यूं ही बीत गया जयपुरपति की ओर से कोई प्रयास सार्वभौम सभा के गठन पर नहीं किया गया। दंडी जी ने जयपुर नरेश को पत्र लिखा उस पत्र का भी कोई जवाब नहीं आया ।कहा जाता है दंडी जी ने इसके पश्चात कश्मीर के महाराजाराजा ,ग्वालियर के राजा जीवाजीराव राव सिंधिया को भी पत्र लिखा था सार्वभौम सभा की स्थापना को लेकर लेकिन कहीं से भी अपने उद्देश्य को पुर्ण दंडी जी नहीं करा सके हम कह सकते हैं ।देशी राजाओं में योग्यता साहस कौशल ही नहीं था। पाखंडी चापलूस दरबारीयो से सब घिरे हुए थे।
इसका पता इस ऐतिहासिक तथ्य से चलता है कुछ इतिहासकार बताते हैं जयपुर के राजा रामसिंह द्वितीय ने दंडी जी के प्रस्ताव पर अपने दरबार परिषद में विचार किया था। दरबार के सभासदों व पंडितों ने राम सिंह जी को सभा के गठन पर विचार से मना कर दिया। कहा इससे धर्म की हानि होगी ।जयपुर के निर्मल राज्य कल पर कलंक लगेगा। वहां की पंडित मंडली ने जयपुर पति के मत को परिवर्तित कर दिया था।
इस लेखमाला के अगले भाग में हम जयपुरपति राम सिंह द्वितीय के जीवन पर कुछ प्रकाश डालेंगे जिन्हें फोटोग्राफर राजा भी कहा जाता था।
आर्य सागर खारी 🖋️