214
झूठ कपट को छोड़कर, कर ली ऊंची सोच।
अंतः सुख जो हो गया, मिला उसी को मोक्ष।।
मिला उसी को मोक्ष, सब आना-जाना छूटा।
पाया ब्रह्मानंद उसी ने, मधुरस जिसने लूटा।।
झूठी दुनिया छोड़ी जिसने करी नाम की लूट।
मिले शरण उसी को, छोड़ दिया जिसने झूठ।।
215
काया, मन, बुद्धि सभी, हों योगी के पास।
त्याग करे संसार का, करे मुक्ति की आस।।
करे मुक्ति की आस, चपलता छोड़े मन की।
पाता है ऐसा योगी , मंजिल को जीवन की।।
अकर्त्ता रहकर जिसने, जीवन का फल पाया।
आना रहा सार्थक उसका, धन्य हो गई काया।।
216
जग में जो कुछ कर रहा, कर दिया सबका त्याग।
जगत झमेला छोड़कर, रब में लगाया राग।।
रब में लगाया राग , अब ना कुछ और सूझता।
वैराग्य लिया जीवन से, हर पल अभ्यास सूझता।।
सर्वस्व समर्पण किया उसे, जो पाया दुनिया में।
सर्वत्र पाया अभिनंदन, जो विरक्त रहा था जग में ।।
दिनांक: 25 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत