कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी को अब प्रणव मुखर्जी के मंत्रिमंडल से हट जाने के बाद प्रमुख जिम्मेदारी देते हुए मनमोहन सरकार में सम्मिलित करने की कवायद तेज हो गयी है। वैसे तो यह मांग पहले से ही चलती आ रही थी लेकिन सोनिया गांधी और राहुल स्वयं अभी नहीं चाहते थे कि मंत्रिमंडल में जिम्मेदारी ली जाए। वैसे यदि कांग्रेस को अपने युवराज को आने वाले समय में प्रधानमंत्री बनाना ही है तो यह देश के लिए तथा स्वयं कांग्रेस के लिए भी हितकर ही होगा कि राहुल गांधी को सरकार में शामिल किया जाए। स्व. इंदिरा गांधी भी लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री रही थीं। यद्यपि उनको नेहरूजी के समय से ही राजनीति का अनुभव था लेकिन फिर भी उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का काम संभाला। बाद में यह उनके लिए सरकार में शामिल होने पर बड़ा काम आया। जबकि इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तो स्वभाव से सरल और हृदय से निष्छल राजीव गांधी अनुभव शून्यता के कारण ऐसी चण्डाल चौकड़ी से घिरे कि उसने ही संगठन का सत्यानाश करा दिया और कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गयी। आज कांग्रेस सत्ता से लगता है कि फिर बेदखल होने जा रही है। पार्टी की गिरती शाख को बचाने के लिए तथा अपने कृतित्व से देश की सेवा करने के लिए राहुल मंत्रिमंडल में शामिल होंगे तो इससे उनकी प्रतिभा से देश जहां परिचित होगा वही उन्हें राजनीति का एक और पाठ पढऩे को मिलेगा। यदि वह फिर किंग मेकर की भूमिका में रहना पसंद करेंगे तो इससे उनकी अब किरकिरी ही होगी। वह नदी के किनारे किनारे चलने की बजाए लहरों में कूद पड़ें तो ही अच्छा है देश की जनता उनका व्यावहारिक स्वरूप देखना चाहती है।
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