जिस देश में रोटी-कपड़े का, जब न्याय नहीं हो पाएगा।
सोचो आखिर कब तलक वहां, दीनों का मन सो पाएगा।
दुखियों के अंतर की ज्वाला, जब समाज में भड़केगी।
शोषक-पोषित में जंग छिड़े, आवाज दीन की जब कड़केगी।।
फुटपाथ पै सोने वालों की, जिस देश में नहीं सुनाई हो।
बहुतायत दुखी जनों की हो, बढ़ती निशदिन महंगाई हो।
बेचारा पढ़ा-लिखा युवक, कब तक भूखों रह पाएगा।
महंगाई-भ्रष्टाचार को वह, आखिर कब तक सह पाएगा।
आजाद देश आजाद न हम, आजाद भ्रष्टï महंगाई है।
मुरझाया फूल अधिक मुरझाया, खिले में खुशबू आई है।।
वह दिन भी दूर नहीं है जब, शोषित पांडव बन जाएंगे।
शोषक होंगे कौरव, सैकड़ों, महाभारत ठन जाएंगे।
होगा गर ऐसा तांडव तो, कौरव धूमिल हो जाएगा।
राज करेंगे यहां पंडवा, सुखमय देश कहाएगा।।
महंगाई-भ्रष्टाचार का अब, नारा बुलंद होने वाला।
गाफिल दीनों की आहों से, है नया हिंद होने वाला।