संतोष पाठक
मुंबई की यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है क्योंकि इस बैठक के बाद विपक्षी गठबंधन को एक ठोस फैसले के साथ देश की जनता के सामने आकर यह बताना होगा कि विपक्षी गठबंधन में तमाम मुद्दों को लेकर सहमति बन चुकी है और अब कोई गतिरोध नहीं बचा है।
महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में 31 अगस्त और 1 सितंबर को होने जा रही विपक्षी गठबंधन आई.एन.डी.आई.ए. की बैठक विपक्षी एकता के भविष्य के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। विपक्षी नेताओं के लिए मुंबई की यह बैठक फैसला लेने वाली बैठक है क्योंकि अब किंतु-परंतु या अगर-मगर से बात नहीं बनने वाली है। विपक्षी नेताओं को अब एक ठोस स्वरूप में देश की जनता के सामने आना होगा, उन्हें देश की जनता को यह बताना होगा कि वह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में किस तरह से मिलकर चुनाव लड़ेंगे ? चुनाव लड़ने का फॉर्मूला क्या होगा ? विपक्षी गठबंधन का संयोजक कौन होगा ? और अगर विपक्षी आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन समितियां का गठन करता है तो इन समितियों की रूपरेखा क्या होगी ? इन समितियों का नेतृत्व कौन करेगा ? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि विपक्षी गठबंधन का मुद्दा क्या होगा ? क्या विपक्षी गठबंधन एक संयुक्त घोषणापत्र या मिनिमम कॉमन प्रोगाम के आधार पर चुनावी मैदान में नरेंद्र मोदी के खिलाफ हुंकार भरेगा या फिर यह गठबंधन एक ढीला-ढाला गठबंधन होगा जो सीट शेयरिंग तक ही सिमट कर रह जाएगा बल्कि कई सीटों पर भाजपा के खिलाफ आपस में ही फ्रेंडली फाइट लड़ता हुआ नजर आएगा ?
एक बात तो बिल्कुल साफ है कि विपक्षी गठबंधन अभी इस हालत में नहीं है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रधानमंत्री पद के लिए किसी एक चेहरे को सामने रख पाए लेकिन इसके बावजूद यह बात भी बिल्कुल सत्य है कि अगर विपक्षी गठबंधन को नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर नेता और भाजपा जैसे मजबूत राजनीतिक दल के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरना है तो उनके पास एक ठोस चुनावी रणनीति और सीट शेयरिंग का एक सॉलिड फॉर्मूला होना चाहिए और सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी ऐसा जिसमें कोई किंतु-परंतु की गुंजाइश न हो। दरअसल, विपक्ष के कई नेता भाजपा के खिलाफ सिर्फ एक उम्मीदवार खड़ा करने की वकालत कर रहे हैं और मुंबई की बैठक में आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन में शामिल सभी विपक्षी राजनीतिक दलों को इस बात का फॉर्मूला तैयार करना होगा कि भाजपा के खिलाफ लड़ाई में किस राज्य में कौन-सा नेता नेतृत्व करेगा और वह नेता या राजनीतिक दल बाकी राजनीतिक दलों को अपने प्रभाव वाले राज्य में सीट शेयरिंग के किस फार्मूले के आधार पर एडजस्ट करेगा ?
दरअसल, पटना और बेंगलुरु की बैठक के बावजूद विपक्षी खेमे में अभी तक कई मुद्दों को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा के बावजूद, एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब के बाद अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है जहां कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला होना है। वहीं इसके साथ ही आम आदमी पार्टी ऐसा संकेत भी दे रही है कि वह बिहार में भी चुनाव लड़ सकती है जहां नीतीश कुमार और लालू यादव अन्य दलों के सहयोग से भाजपा के विजयी रथ को थामना चाहते हैं। अगर आम आदमी पार्टी अपने इस स्टैंड पर अड़ी रही तो निश्चित तौर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा और बिहार में थोड़ा बहुत ही सही लेकिन जेडीयू और आरजेडी, दोनों को ही नुकसान झेलना पड़ेगा और इन विपक्षी दलों की आपसी लड़ाई का सबसे ज्यादा फायदा उसी भाजपा को मिलेगा जिसके खिलाफ इन विपक्षी दलों ने मिलकर आई.एन.डी.आई.ए. गठबंधन बनाया है।
इसलिए मुंबई की यह बैठक काफी अहम मानी जा रही है क्योंकि इस बैठक के बाद विपक्षी गठबंधन को एक ठोस फैसले के साथ देश की जनता के सामने आकर यह बताना होगा कि विपक्षी गठबंधन में तमाम मुद्दों को लेकर सहमति बन चुकी है और अब कोई गतिरोध नहीं बचा है। सभी दल मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे क्योंकि अगर इन तमाम मुद्दों पर आपसी सहमति नहीं बन पाती है तो फिर देश की जनता में विपक्षी गठबंधन को लेकर एक नकारात्मक राजनीतिक संदेश जाएगा और इसका असर आने वाले दिनों में विपक्षी एकता की मजबूती पर भी नकारात्मक रूप से पड़ता नजर आएगा।
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