“शिव-शक्ति प्वाइंट” हिंदू प्रेरणा के हस्ताक्षर हैं, चंद्रमा पर!
ब्रह्माण्ड में शिव और शक्ति अध्यात्म की ही नहीं वरन भौतिक जीवन की गतिशीलता की असीम ऊर्जा का स्रोत है। यही सत्य है और सुंदर भी है। शिव शक्ति से ब्रह्माण्ड चलित होता हैं। सांख्य दर्शन के अनुसार, जहां शिव पुरुष का प्रतीक हैं, वहीं शक्ति प्रकृति का। इन दौनो के संतुलन से ही पूरा ब्रह्माण्ड संतुलित है। पुरुष और प्रकृति के मध्य सामंजस्य स्थापित होने से ही यह सृष्टि सुचारू रूप से चल पाती है। यदि यह सामंजस्य न हो सृष्टि का कोई भी कार्य भली भांति संपन्न नहीं हो सकता। पुरुष और प्रकृति के बींच असामंजस्य आंतुलन पैदा करता है और यह असंतुलन सृष्टि को प्रलय की ओर ले जाता है।
भारत के चंद्रयान-३ अभियान में जिस प्रकार महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने स्त्री शक्ति के रूप में अपनी सहभागिता निभाई है। वह किसी से कम नहीं है। इन्हीं में से एक कल्पना के तो इस महत्वाकांक्षी अभियान की डिप्टी डायरेक्टर भी थीं। इस प्रकार नारी शक्ति ने दिखा दिया है कि वे किसी से कम नहीं हैं और भविष्य की अन्य अनेक चुनौतियों का निर्वहन कर सकने में सक्षम हैं। यद्यपि यह पहली बार नहीं है कि इसरो के किसी अभियान में महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने अपना योगदान दिया हो। विश्वभर में चर्चित रहे मंगलयान अभियान को सफल बनाने में भी स्त्री शक्ति का योगदान रहा है। इस प्रकार ये महिला विज्ञानी और इंजीनियर्स उस अवधारणा को खारिज़ करती हैं कि विज्ञान, तकनीकी, शोध और अनुसंधान जैसे जटिल विषय और चुनौती भरे काम को कर सकने में असमर्थ हैं। इसके विपरीत ये हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लिखित “शिव- शक्ति” की अवधारणा को साक्षात करती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान ३ के टच डाउन प्वाइंट को “शिव शक्ति नाम बस ऐसे ही नहीं दिया है। इसके पीछे बहुत बड़ा संदेश और निहितार्थ छुपा है। जो भारत ही नहीं विश्व को भारत की आध्यात्मिक, धार्मिक और विज्ञानी अवधारणा को जानने समझने को प्रेरित करता रहेगा। भारत में इस्लामी आक्रमणों के बाद जिस प्रकार नारी के अस्तित्व, स्वाभिमान और उसकी प्रतिष्ठा में कमी आई थी। उसकी काली छाया से निकलने में हिंदुस्तानियों ने पाश्चात्य सोच को अपनी प्रेरक शक्ति के रूप में अपनाकर एक नई किस्म की मानसिक गुलामी को ओढ़ना शुरू किया था। जबकि हिंदू धर्म शास्त्रों में ऐसे अनेक उदाहरण और ऐतिहासिक प्रमाण विद्यमान है जो कथित रूप से अबला माने जाने वाली महिला को “सबला और शक्ति के स्रोत” के रूप में प्रकट करते हैं। यदि आजादी के बाद से भारत का नेतृत्व हिंदुत्व सोच का रहा होता तो जो परिणाम हम आज देख रहे हैं, वह वर्षों पहले हो चुका होता।
यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उसका नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति और सोच ने किया, जो “भारत को एक खोज” और स्वयं को “एक्सीडेंटल हिन्दू” मानकर मुगलों और अंग्रेजों की मानसिक गुलामी से बाहर नहीं निकल पाया। उसका दृढ़विश्वास था कि अपनी शिक्षा से वह अंग्रेज और संस्कृति से वह एक इस्लामी है। और इसी मानसिक गुलामी को उसने पूरे भारत पर थोपा। इस प्रकार उसने भारत को, उसके सामर्थ्यवान लोगों को एक अदृश्य मानसिक बेड़ियों में जकड़ा दिया था। अपनी हर समस्या के समाधान के लिए ऐसा भारतीय बाहर पश्चिम की ओर ही देखता था।
लेकिन आज मोदी के नेतृत्व में विश्व देख रहा है कि भारत जब अपने “स्व” को जानकर, समझकर उठ खड़ा हुआ है तो दुनिया उसे अपना नेता मानने में गौरवान्वित महसूस कर रही है। इसी “स्व” के प्रकटीकरण का बोध कराता है, उन महिला वैज्ञानिकों की वेशभूषा भी। जो चंद्रयान- ३ के सफल होने पर पारंपरिक साड़ी पहने, लगे में मंगलसूत्र पहने और मांग में सिंदूर लगा कर पूरे आत्मविश्वास से उत्साहित होकर एक दूसरे को बधाई देते दिखाई दीं। अन्यथा “नेहरु सिंड्रोम” का शिकार हमारा उच्चवर्ग साड़ी, सिंदूर और मंगलसूत्र को पिछड़ा, गंवार, दकियानुसी और अवैज्ञानिक मानकर एक अलग ही मानसिक गुलामी में जी रहा था। और शेष समाज को भी ऐसे ही जीने को प्रताड़ित भी कर रहा था। लेकिन इसरो की महिला वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने अपनी इस विजय और उसके पारंपरिक हिंदू वेशभूषा में उत्साह से भारत में खासकर महिलाओं के बींच स्त्रीत्व के पाश्चात्य कु- प्रभाव को धक्का तो मारा ही है। इसका प्रमाण महिला वैज्ञानिकों को सोशल मीडिया पर पारंपरिक हिन्दू वेशभूषा में देख कथित बुद्धिजीवियों (कुबुद्धिजीवी), के उद्वेलित होने से स्पष्ट है। चाहे जो भी हो “शिव -शक्ति” प्वाइंट के रूप में भारत ने स्त्री- पुरुष समानता की अपनी हिंदू अवधारणा के हस्ताक्षर तो कर ही दिए हैं।
युवराज पल्लव
धामपुर।
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