202
सुख आया तो दु:ख गया, दु:ख आए सुख जाय।
यही सनातन खेल है, मनवा समझ न पाय।।
मनवा समझ न पाय , करता रहा ठिठोली।
समझा वही , जिसकी आंख विधाता ने खोली।।
समझदार ना विचलित होता, जब आता है दु:ख।
समत्व भाव से जीवन जीता , ना भटकाता सुख।।
203
भूमि शय्या प्रेम की , मुनियों को सुख देय।
तकिया बाहु को बना, नींद चैन की लेय।।
नींद चैन की लेय , जगत में इज्जत पाते।
चित्त निर्मल होता उनका, नाम प्रभु गुण गाते।।
आकाश बनाते चादर , विरक्ति बनती त्रिया।
राजा से गहरी नींद लेते, बनाकर भूमि शय्या।।
204
धैर्य रख, बन संयमी, अधरम से मन रोक।
त्याग द्वेष की भावना, लगा राग पर रोक।।
लगा राग पर रोक , मन को धर्म से जोड़।
बुद्धि बढ़ा, विद्वान बन, दूर कर निज क्रोध।।
सत्य का कर आचरण, बात मेरी पल्लू में रख।
क्रोध करेगा वही मिटेगा,बात मान,तू धैर्य रख।।
दिनांक: 23 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत