केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम पुन: विपक्ष सहित टीम अन्ना के निशाने पर आ रहे हैं। स्पेक्ट्रम पर गठित मंत्री समूह (जीओएम) की अध्यक्षता हेतु केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के पैर खींचने के बाद पी चिदंबरम को इसका मुखिया बना दिया गया है। हालांकि सरकार ने इस नए मंत्रिमंडल समूह के अधिकार कम कर दिए हैं। इस समूह को अब स्पेक्ट्रम का मूल्य और नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य पर सिर्फ सिफारिश करने का ही अधिकार है जबकि अंतिम निर्णय का अधिकार केंद्रीय कैबिनेट को दिया गया है। ट्राई ने देशव्यापी स्पेक्ट्रम के लिए 18 हज़ार करोड़ रुपये की राशि सुझाई है जिसका इंडस्ट्री विरोध कर रही है। विवाद के बावजूद यह सारी कवायद दरअसल 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के बाद केंद्र सरकार की हुई फजीहत का ही परिणाम है कि जीओएम के अधिकारों को सीमित किया गया है ताकि पूरी प्रक्रिया पर कोई उंगली न उठा सके। गौरतलब है कि इससे पहले वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्री समूह को इन विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया था। ऐसे में निश्चित रूप से अव्वल तो यह चिदंबरम के लिए ही शर्मनाक है कि वे ऐसे मंत्री समूह का नेतृत्व करने जा रहे हैं जिसके पास नाममात्र के ही अधिकार हैं, दूसरे यदि सारे अंतिम निर्णय केंद्रीय कैबिनेट को करने हैं तो मंत्री समूह के गठन का क्या औचित्य है? इस मंत्री समूह में रक्षा मंत्री ए के एंटोनी, दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद, प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायण सामी व योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया शामिल हैं। यह भी काबिलेगौर है कि इनमें से अधिकाँश किसी न किसी वजह से विवादित रहे हैं। ऐसे में दाद देनी होगी शरद पवार की राजनीतिक समझ की जिन्होंने मंत्री समूह से स्वयं को दूर कर विवादों से बचने का तरीका ढूंढ लिया। चूँकि मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी के बाद शरद पवार ही वरिष्ठ के क्रम में आगे थे लिहाजा उनपर यह जिम्मेदारी लेने का भारी दबाव था किन्तु बड़ी ही आसानी से उन्होंने स्वयं को विवादों से दूर कर लिया। जहां तक बात चिदंबरम के चयन की है तो इसकी भी आशंका है कि सरकार ने बड़े ही असमंजस में उनके अध्यक्षीय कार्यकाल पर फैसला लिया होगा। हालांकि जब कोई भी मंत्री इस जिम्मेदारी को निभाने से स्वयं को दूर कर रहा था तब चिदंबरम ने ही यह जिम्मेदारी निभाने पर अपनी रजामंदी दी और सरकार की मुश्किल आसान की किन्तु सरकार के समक्ष यह तथ्य भी होगा कि 2 जी स्पेक्ट्रम में चिदंबरम पर अपने बेटे के एयरसेल-मैक्सिस सौदे में कथित संलिप्तता को जानते हुए उसे लाभ पहुंचाने का आरोप लग चुका है। हाँ, सीमित विकल्पों के चलते चिदंबरम को जिम्मेदारी सौंपना यह साबित करता है कि अंदरखाने सरकार भी असहज है। अब जबकि मंत्री समूह की बैठक 10 जुलाई के बाद कभी भी हो सकती है और जल्द ही मानसून सत्र भी शुरू होने वाला है, चिदंबरम को लेकर सरकार दोराहे पर आ खड़ी हुई है। चिदंबरम के खिलाफ 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने, सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग, वोटिंग मशीनों से छेड़छाड़, दोबारा मतगणना में गड़बड़ी जैसे आरोप लगे हैं। हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी लोकसभा सदस्यता को चुनौती देने वाली याचिका रद्द करने की अपील ठुकरा दी थी। इससे उन्हें 2009 में छल से लोकसभा चुनाव जीतने के आरोप में निचली अदालत में ट्रायल का सामना करना पड़ेगा। हाँ, चिदंबरम को उच्च न्यायालय ने इतनी राहत अवश्य दी थी कि उनपर मतदाताओं को धमकाने एवं पैसे बांटने के अलावा बेटे कार्ति को एजेंट बनाने के आरोप रद्द कर दिए गए थे। इस मामले पर विपक्ष ने जमकर चिदंबरम पर निशाना साधा था। पूर्व में भी चिदंबरम हिन्दू आतंकवाद, नक्सलवाद जैसे मुद्दों पर अपनी बेबाक टिप्पडिय़ों को लेकर विवादित रहे हैं। फिर 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उनका नाम आना और जनता पार्टी के सुब्रमण्यम स्वामी का हाथ धोकर उनके पीछे पडऩा, चिदंबरम सहित सरकार की पेशानी पर बल डालता रहा है। ऐसे में इस बार भी चिदंबरम को लेकर गहमागहमी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। चिदंबरम के सामने विपक्ष से निपटने की चुनौती तो है ही, साथ ही टीम अन्ना भी चिदंबरम के खिलाफ उतर आई है। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने टीम अन्ना के बेमियादी अनशन को दिल्ली के जंतर-मंतर मैदान पर अनुमति देने से मना कर दिया था। इसके पीछे जो बात निकलकर आई वह यह कि टीम अन्ना जिन 15 भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू करने जा रही है उसमें एक नाम चिदंबरम का भी है और चूँकि दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन कार्य करती है लिहाजा चिदंबरम के इशारे पर ही टीम अन्ना की अर्जी को नामंजूर किया गया। फिर टीम अन्ना का यह अनशन भी उसी वक्त होना है जबकि संसद में मानसून सत्र चल रहा होगा। यानी चिदंबरम दोनों ओर से निशाने पर रहते। अत: टीम अन्ना को अनशन की अनुमति न देकर दिल्ली पुलिस ने एक हिसाब से चिदंबरम का बचाव ही किया जिसपर टीम अन्ना का कहना था कि यदि उन्हें अनशन की अनुमति नहीं मिली तो प्रस्तावित अनशन जेल भरो आंदोलन में तब्दील हो जाएगा। चौतरफा हमलों के बाद आखिरकार दिल्ली पुलिस ने टीम अन्ना को पांच दिनों के अनशन की अनुमति तो दी है लेकिन देखना होगा कि टीम अन्ना का पूरे मामले पर क्या रुख रहता है? कुल मिलाकर चिदंबरम सरकार में ऐसा विवादित मुद्दा बन गए हैं कि न तो वे सरकार को छोड़ सकते हैं और न ही उनकी 10 जनपथ से नजदीकियों को देखते हुए सरकार उन्हें छोडऩा चाहती है। राष्ट्रपति चुनाव, ममता की खिलाफत, आर्थिक मोर्चों पर नाकामी जैसे मुद्दों के इतर चिदंबरम भी सरकार के लिए ऐसा मुद्दा बन गए हैं जहां उनका बचाव करती सरकार को हमेशा बैकफुट नसीब होता है। भाजपा सहित तमाम विपक्षी दलों व टीम अन्ना की ओर से तो चिदंबरम के नए अध्यक्षीय कार्यकाल के विरुद्ध मोर्चा खोला जा चुका है, देखना यह है कि चिदंबरम और सरकार, एक दूसरे का कितना साथ देते हैं?