Categories
Uncategorised

अध्याय … 67 आई और आकर गई ,……

      199

चंदन को ज्यों ज्यों घिसें, सुगंधि बढ़ती जाय ।
सोने से कुंदन बने, कीमत बढ़ती जाय।।
कीमत बढ़ती जाय , ईख से रस भी निकले।
चमक बढ़े तप से सदा,जाने जो इस पथ चले।।
तपता चल, जपता चल, बन जा तू भी कुंदन।
मूल्यवान बन जा तू इतना, लोग बना लें चंदन।।

        200

पागल हाथी वश करे, शेर को लेय दबोच।
काम के प्रबल वेग से, दुर्बल पड़ती सोच।।
दुर्बल पड़ती सोच , हार गए बड़े सूरमा।
काम के आघात से, निकला सब का चूरमा।।
जिसने जीता काम को, हुआ न उससे घायल।
वही है असली सूरमा, शेष सभी हैं ‘पागल’।।

          201

आई और आकर गई, वही जवानी होय।
देख बुढापा रो रहा, उपचार मिला नहीं कोय।।
उपचार मिला नहीं कोय, जगत में खाते धक्के।
धावा बोल दिया रोगों ने, हम हैं हक्के – बक्के।।
फूटे घड़े से पानी रिसता, उम्र भी ढलती भाई।
लगे रहे हम दुष्कर्मों में,ना बात समझ में आई।।

दिनांक : 23 जुलाई 2023

Comment:Cancel reply

Exit mobile version