अध्याय … 67 आई और आकर गई ,……
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चंदन को ज्यों ज्यों घिसें, सुगंधि बढ़ती जाय ।
सोने से कुंदन बने, कीमत बढ़ती जाय।।
कीमत बढ़ती जाय , ईख से रस भी निकले।
चमक बढ़े तप से सदा,जाने जो इस पथ चले।।
तपता चल, जपता चल, बन जा तू भी कुंदन।
मूल्यवान बन जा तू इतना, लोग बना लें चंदन।।
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पागल हाथी वश करे, शेर को लेय दबोच।
काम के प्रबल वेग से, दुर्बल पड़ती सोच।।
दुर्बल पड़ती सोच , हार गए बड़े सूरमा।
काम के आघात से, निकला सब का चूरमा।।
जिसने जीता काम को, हुआ न उससे घायल।
वही है असली सूरमा, शेष सभी हैं ‘पागल’।।
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आई और आकर गई, वही जवानी होय।
देख बुढापा रो रहा, उपचार मिला नहीं कोय।।
उपचार मिला नहीं कोय, जगत में खाते धक्के।
धावा बोल दिया रोगों ने, हम हैं हक्के – बक्के।।
फूटे घड़े से पानी रिसता, उम्र भी ढलती भाई।
लगे रहे हम दुष्कर्मों में,ना बात समझ में आई।।
दिनांक : 23 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत