कांग्रेसियों की सच के साथ सांझ
विगत दिनों कांग्रेसियों ने खुद अपनी पार्टी को जिस प्रकार कठघरे में खड़ा किया है तथा अपने बेबाक बयानों से कांग्रेसी जड़ों में कंपन पैदा किया है, वह काबिले गौर है। ये बयान केवल सुर्खियों में आने के लिए ही नही दिया गया है बल्कि इसमें सच को उगल दिया गया है। व्यक्ति जीवन में केवल दो ही समय झूठ नहीं बोलता है या तो वह बहुत अधिक भयभीत हो या गुस्से में हो। वही स्थिति आज इन कांग्रेसी नेताओं की है जब इनको कांग्रेस की नाव डूबती दिखाई दे रही है तो ये भयग्रस्त हैं कि आने वाले समय में सत्ता के बिना कैसे रहा जाएगा। इसलिए सच को स्वीकार किया जाए कि राहुल गांधी कांग्रेस के लिए चुनाव की वैतरणी को पार कराने में सहायक नहीं हो पाएंगे। लेकिन बड़ी विचित्र परिस्थिति है कि देश की वर्तमान भयावह परिस्थिति कांग्रेस के दिवालियेपन से सब भली प्रकार परिचित हैं, लेकिन कोई कांग्रेसी सच ना कहना चाहता है और ना सुनना चाहता है। जिसने भी सच पर जबान खोली उस पर हाईकमान का ऐसा डंडा चला कि वो 24 घंटे भी अपने बयान पर कायम नहीं रह पाया जबकि केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने अपने साक्षात्कार में स्पष्टï कहा था कि कांग्रेस वैचारिक भटकाव का शिकार हो गयी है। हम अब तक केवल राहुल के विचारों की सिर्फ झलकियां ही देख सके हैं।
वह इन विचारों को बड़ी घोषणाओं में तब्दील नहीं कर पाये हैं सलमान खुर्शीद ने यही नहीं कहा बल्कि उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री के द्वारा देश के हालात को संभालने का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है। आने वाले चुनाव को लेकर कांग्रेस को अभी तक नहीं पता कि पार्टी किस मुद्दे पर चुनाव लडऩे जा रही है। पार्टी के विभिन्न नेताओं के परस्पर विरोधी बयानों को देखकर लगता है कि सरकार के भीतर आपसी तालमेल बेहतर ढंग से नहीं चल पा रहा है। अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग कांग्रेसी नेता अलाप रहे हैं। सरकार की कारगुजारियों को देखकर स्पष्टï हो जाता है कि मनमोहन सरकार केन्द्र की अब तक सारी सरकारों में सबसे अधिक ढुलमुल सरकार है। इसके निर्णय हास्यास्पद और मनोरंजक बनते जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मौन प्राणी बने सारी व्यवस्था को दम तोड़ते हुए उसी तरह देख रहे हैं जिस तरह द्रोपदी के चीरहरण को भीष्म पितामह, कृपा चार्य और द्रोणाचार्य देखते रह गये थे। लेकिन प्रधानमंत्री को आज हम भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य या कृपाचार्य भी नहीं कह सकते। क्योंकि वह सत्ता में बैठकर भी सत्ताधीश नहीं हैं। उन पर किसी अन्य का चाबुक चलता है और वही शक्ति देश को चला रही है। उस शक्ति को देश सोनिया गांधी के नाम से जानता है। सरकार की निर्णय लेने की क्षमताओं पर राहुल गांधी के हस्तक्षेप ने भारी व्यवधान पैदा किया है। अपनी पिछले पारी में मनमोहन सिंह फिर भी बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे। लेकिन इस बार उनका प्रदर्शन कतई नीरस हो चुका है। इसका कारण यही है कि पिछली बार सोनिया गांधी के साथ उनका तालमेल फिर भी बेहतर था। लेकिन राहुल गांधी के हस्तक्षेप से तालमेल कहीं न कहीं गड़बड़ाया है। इसलिए सलमान खुर्शीद ने राहुल गांधी पर जिस प्रकार निशाना साधा है वह एकदम सही है। क्योंकि वही सत्ता में कहीं न कहीं निर्णायक हस्तक्षेप कर रहे हैं, इसलिए यदि कांग्रेस हारती है तो उसके लिए जिम्मेदार मनमोहन और सोनिया से अधिक राहुल गांधी होंगे।