पुस्तक समीक्षा विस्थापन की त्रासदी (कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की व्यथा-कथा)
लेखक: डॉ० शिबन कृष्ण रैणा
समीक्षक : हरप्रकाश मुंजाल
कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार व उनके विस्थापन की त्रासदी को शिक्षाविद एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ शिबन कृष्ण रैणा ने बड़े नजदीकी से देखा है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के निष्कासन की व्यथा कथा को अपनी नई किताब ” विस्थापन की त्रासदी” में विस्तार से लिखा है। इस किताब का प्रकाशन इंडिया नेटवर्क्स प्राइवेट लिमिटेड, नोएडा ने किया है।
दरअसल,भारत का स्वर्ग कहलाने वाला कश्मीर हमेशा से ही पाक समर्थित आतंकियों के निशाने पर रहा है हालांकि यह हमेशा से ऐसा नहीं था आजादी से पहले यहां पर काफी सुख शांति और मेलजोल था। शुरुआती समय में कश्मीर में सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडितों की आबादी थी। यह पंडित सारस्वत ब्राह्मण के समूह में आते हैं और घाटी के मूल निवासी हैं। स्वभाव से शांत प्रिया और सहनशील कश्मीरी पंडित दो प्रकार के हैं पहले कश्मीरी पंडित वर्ग को” बानमासी” कहा जाता है इस श्रेणी में उन पंडितों को शामिल किया जाता है जो मुस्लिम शासकों के शासनकाल के दौरान घाटी को छोड़कर चले गए थे और बाद में वापस आकर घाटी में बस गए। वहीं दूसरी श्रेणी में मे “मलमासी “पंडित आते हैं इस श्रेणी में उन पंडितों को गिना जाता है जो मुसलमान शासकों के अत्याचार सहने के बावजूद घाटी को छोड़कर नहीं गए और और यहीं पर हमेशा के लिए बस गए ।इन पंडितों की संख्या में पढ़े लिखे लोगों की संख्या काफी थी, जो राज्य के प्रशासनिक और अन्य विभागो के उच्च पदों पर आसीन थे ।
1947 में जब देश आजाद हुआ तो जम्मू कश्मीर के अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान विवाद बढ़ गया। पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर को अपने अधिकार में करने की बहुत कोशिश की लेकिन जब वह असफल रहा तो उसने घाटी पर कबाइली आक्रमण कराया और कई आतंकवादी संगठन भारत में तैयार करने लगा जिसका बुरा प्रभाव जम्मू कश्मीर के लोगों पर पड़ने लगा।
1990 के आसपास और बाद के वर्षों में और भी अनेक पंडित जिहादियों की बंदूक का निशाने बने। इन पंडितों के बलिदान ने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की त्रासदी को कभी ना भूलने वाला इतिहास बना दिया।
इन बलिदानी पंडितों के अलावा घाटी में इस्लामी जिहादियों द्वारा मारे गए अन्य कश्मीरी पंडितों की हत्याओं का विवरण इस पुस्तक में विस्तार से दिया गया है ।प्रस्तुत पुस्तक में कश्मीरी पंडितों की घाटी से विस्थापन की व्यथा कथा को निबंधों के माध्यम से लिपिबद्ध करने का प्रयास किया गया है।
लेखक परिचय
डॉक्टर शिबन कृष्णा रैना का 22 अप्रैल 1942 को श्रीनगर (कश्मीर) में एक मध्यम वर्ग परिवार में जन्म हुआ। एम। ए।तक की शिक्षा कश्मीरी में हुई। 1962 में एम ए। हिंदी कश्मीर विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में पास की। राजस्थान विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में डिग्री हासिल की और पी-एच-डी० की डिग्री कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ली। इन्होंने आकाशवाणी के लिए कहानी एवं नाट्य लेखन भी किया है। डॉ रैणा को 2015 में भारत सरकार द्वारा विधि एवं न्याय मंत्रालय के हिंदी सलाहकार समिति में सदस्य के रूप में भी नामित किया गया। कुछ समय के लिए कश्मीर विशिष्ट विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में अध्यापन का कार्य भी किया। 1966 में राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा हिंदी व्याख्याता का पद पर चयन हुआ। डॉ रैना हिंदी विभागाध्यक्ष, उप प्राचार्य, प्राचार्य आदि पदों पर भी रहे।
हरप्रकाश मुंजाल, 214, आदर्श कॉलोनी, दाऊदपुर, अलवर। राज।301001
सम्पर्क सूत्र : 9414215603