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Dr D K Garg
नाग पंचमी भारत में मनाया जाने वाला एक पर्व है जो सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
प्रचलित मान्यता: इस दिन कहीं-कहीं सर्प को दूध पिलाते हैं कि नाग देवता खुश होकर उनको आशीर्वाद देंगे। इस दिन वाराणसी (काशी में नाग कुआँ नामक स्थान पर बहुत बड़ा मेला लगता है, किंवदन्ति है कि इस स्थान पर तक्षक गरूड़ जी के भय से बालक रूप में काशी संस्कृत की शिक्षा लेने हेतु आये परन्तु गरूड़ जी को इसकी जानकारी हो गयी और उन्होंने तक्षक पर हमला कर दिया परन्तु अपने गुरू जी के प्रभाव से गरूड़ जी ने तक्षक नाग को अभय दान कर दिया उसी समय से यहाँ नाग पंचमी के दिन से यहाँ नाग पूजा की जाती हैयह मान्यता है कि जो भी नाग पंचमी के दिन यहाँ पूजा अर्चना कर नाग कुआँ का दर्शन करता है उसकी जन्मकुन्डली के सर्प दोष का निवारण हो जाता है।
नाग के इस डर से नागपूजा शुरू हुई होगी, ऐसा कई लोग मानते हैं
प्रचलित कथा का विश्लेषण:
जो कहानियां इस पर्व को लेकर शुरु की गयी हंै वे सभी असत्य और बिना प्रमाण के हंै। गाय, बैल, कोयल इत्यादि का पूजन करके उनके साथ आत्मीयता साधने का हम प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वे उपयोगी हैं। लेकिन नाग हमारे किस परन्तु यह मान्यता हमारी संस्कृति से सुसंगत नहीं लगती।
नाग पंचमी के नाम पर अंधविश्वास व अधर्म :
भारत मे नाग पंचमी के दिनों सांपो को दूध पिलाने की परंपरा चालू हो गयी है जो कि वैदिक सिद्धान्तों और वैज्ञानिक आधार के प्रतिकूल है।
’सांप एक वन्य जीव है और उसका भोजन चूहे छिपकली आदि जीव है, दूध नही।’
विज्ञान के अनुसार भी सांप दूध नही पीता है न ही उसे अच्छा लगता है। किंतु कुछ लोगों ने अपना पेट भरने के बहाने उसे दूध पिलाने का गलत रिवाज चालू कर दिया है। शरीर विज्ञान कहता है कि सांप को दूध पीना नही आता, और उसको जबर्दस्ती दूध पिलाने से उसकी श्वास नली बाधित हो जाती है और उससे उसकी मौत भी हो जाती है दूध पीने से उसको अनेक रोग भी हो जाते हैं। फिर भी बलात उसे दूध पिला कर सपेरे अपना व्यवसाय करते हैं ।
अपने व्यापार के लिए उनको जंगलों से ढूंढ-ढूंढ कर पकड़ते है, उसको कई दिनों तक भूखा प्यासा रखते है, उसके विष के दांत निकाल देते हैं और फिर उस असहाय सड़को के किनारे दूध पिलाने का नाटक करके नादान लोगों से अंध भक्तों से पैसे ऐंठते है।ये सब पाप नही तो क्या है?
सांप को दूध पिलाने से अच्छा है हम वन्य जीवों का संरक्षण करें और दूध किसी गरीब बेबस लाचार बच्चों को पिलाये तो हमें पुण्य मिलेगा और समाज का उत्थान भी होगा।
पूजा का अर्थ: पूजा का अर्थ किसी भी वस्तु का सही सही ज्ञान और उसका यथायोग्य उपयोग होता है यहां हम प्रकृति व विज्ञान के विरुद्ध आचरण करते हैं और उसको पूजा मानते हैं जो कि सरासर गलत है। अतः हमें ऐसे ढोंग अंधविश्वास व पाखण्डों से बचना चाहिए और समाज को बचाना चाहिए।
वास्तविकता: नाग शब्द के अनेक अर्थ हो सकते है और यहाँ सही अर्थ का प्रयोग ना करके अज्ञानियों ने अनर्थ कर दिया है।नाग शब्द संस्कृत से लिया जिसको प्राण वायु के लिए प्रयोग किया गया हैं।
नाग पंचमी पर ये पांच नाग कौन से है ?
1. काम, 2. क्रोध, 3. लोभ, 4. मोह, 5. अहंकार।
इन पांचों भयंकर नागों को वश में करना हर किसी के वश की बात नहीं है। बहुत बड़ी साधना और आत्मशक्ति की आवश्यकता होती है जब जाकर यह पांच नाग वश में होते हैं। इनमें से कोई सा एक भी यदि मनुष्य पर हावी प्रभावी हो जाए तो वह ही उसकी मौत का कारण बन जाता है।
संसार से जितने भर भी लोग जा रहे हैं वह सभी इनमें से किसी न किसी एक नाग के दंश लेने से ही जा रहे हैं । कहने का अभिप्राय है कि किसी के अंदर काम अधिक है, किसी के अंदर क्रोध, किसी के अंदर मद तो किसी के अंदर मोह या लोभ अधिक है। बस, थोड़ी सी अधिक मात्रा होने से ही इनमें से कोई सा एक नाग मनुष्य की मौत का कारण बन जाता है। अमरत्व की प्राप्ति के लिए इन सब के ऊपर बैठ जाना ,इनको वश में कर लेना इसके बाद साधना की सफलता की घोषणा करते हुए उत्सव की स्थिति वास्तविक नाग पंचमी है।
साधना की सफलता इसी में है कि इन पांचों नागों को शांत करके अपने वश में किया जाए। विद्वान लोग अपने भीतर उठतेए मचलतेए तूफानों के बादलों को शांत करते हैं और अपने आप देखते हैं कि कौन सा नाग या कौन सा विकार हावी होकर उसके बनते हुए काम को बिगाड़ने में योगदान दे रहा है ।इसलिए वह शांत साधना के माध्यम से अपने बिगड़े हुए नाग को अथवा विकार को शांत करता है। संसार में सार्थक जीवन की साधना इसी प्रकार की शांतिपूर्ण मनःस्थिति से ही संभव है।
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