अध्याय … 64 , शरीर सिकुड़कर झुक गया……
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शरीर सिकुड़कर झुक गया, धीमी पड़ गई चाल।
दांत टूट कर गिर गए, आंख – नाक बेहाल।।
आंख – नाक बेहाल, कान से ऊंचा सुनता।
मुंह से लार टपकती रहती, व्यर्थ में सिर धुनता।।
धर्मपत्नी रहती दूर, कभी बेटा ना बांधे धीर।
कहे, बुढ़ापा कितना बैरी ? डगडग हिले शरीर।।
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जब तक तन में उर्जा,और बुढ़ापा दूर।
शरीर प्राण सब स्वस्थ हैं, मुख पे झलके नूर।।
मुख पे झलके नूर , उमर अभी शेष दीखती।
चेत समय पे मनवा मेरे ,जाए उमरिया बीती।।
जागे जो सही समय पर,करता कुछ जीवन में।
क्रियाशील रहो सदा ,जान है जब तक तन में।।
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पिता है जिसका धैर्य , क्षमा है जिसकी मात।
शांति जिसकी भार्या, मीत सत्य है साथ।।
मीत सत्य है साथ दया है जिसकी बहना।
संयम जिसका भाई,भूमि शय्या होवे गहना।।
वसन बनी दिशाएं, ज्ञानामृत भोजन जिसका।
कभी नहीं भय मानेगा,धैर्य पिता है जिसका।।
दिनांक :22 जुलाई 2023