अध्याय … 63 जोबन चढ़ती वासना…..
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सत्व ,रज और तम से बना, चित्त उसी का नाम।
जब तामस इसमें बढ़े, करता उल्टे काम।।
करता उल्टे काम, अधर्म और अनीति लावै ।
उल्टी देता सीख मनुज को, अज्ञान बढ़ावै।।
विषयों में जा फंसता मानव, छा जाता है तम।
बताए प्रकृति के तीन गुण, सत्व ,रज और तम।।
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वासना के भूत से, जीव हुआ लाचार।
ज्ञान किरण मिलती नहीं, बीच खड़ी दीवार।।
बीच खड़ी दीवार, नहीं कुछ दिखलाई देता।
मनोरथ पूरे करने को अब ना अंगड़ाई लेता।।
विक्षिप्तावस्था मानव की ,खूब बढ़ाती वासना।
है असंभव, विषय से हो तृप्त कभी वासना।।
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जोबन चढ़ती वासना, देती नाव डुबोय।
जहरीली इतनी बनी, बच ना पाया कोय।।
बच ना पाया कोय, मारे पटक पटक कर।
जो आया चपेट में, गया भटक भटककर।।
भवसागर की नदिया में,नाव कहीं पे भटकी।
पटक मारती वासना ,जब भी जोबन चढ़ती।।
दिनांक : 22 जुलाई 2023
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लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है