बाबा रामदेव का मिशन स्पष्टï है वह व्यवस्था परिवर्तन को अपना लक्ष्य बनाकर चल रहे हैं। वह शिक्षा में परिवर्तन कर उसे नैतिक मूल्यों पर आधारित संस्कार प्रद बनाना चाहते हैं समान शिक्षा व्यवस्था, समान चिकित्सा व्यवस्था, चुनाव सुधार उनके एजेंडा में हैं। जल, जंगल, जमीन और भूसम्पदाओं की लूट को रोकने के लिए तथा जलप्रबंधन, कचरा प्रबंधन ई-गवर्नेस के लिए राष्टï्रीय स्तर पर एक पारदर्शी एवं जवाबदेह प्रबंधन नीति बनाना उनका लक्ष्य है। वह चाहते हैं कि आज के नेता जिस प्रकार देश की बीस हजार करोड़ की भूसम्पदा को लूटने में लगे हैं, उस पर रोक लगे। भारत की अर्थव्यवस्था पर से एक प्रतिशत लोगों का एकाधिकार समाप्त हो। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय संविधान की प्रस्तावना में जिस भावना से देश की जनता को प्रदान करने की गारंटी हमने दी है उस पर शासक वर्ग खरा उतरे। स्वदेशी न्याय पूर्ण व्यवस्था में लागू हो। वह चाहते हैं कि देश एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो और उसकी सैनिक क्षमता भी ऐसी हो कि जिसका विश्व लोहा माने। एक चिंतन है बाबा रामदेव का। जिसके नीचे अन्ना का जनलोकपाल विधेयक और उसका स्वरूप कहीं दबकर रह गया है। सचमुच देश की जनता जनलोकपाल तो चाहती है परंतु जनलोकपाल को देश की सारी समस्याओं का एक समाधान नही मानती। यदि व्यवस्था वर्तमान स्वरूप में यथावत रहती है तो जनलोकपाल विधेयक भी एक समस्या ही बन जाएगा ना कि एक समाधान। यह अच्छा ही हुआ कि अन्ना हजारे ने स्वयं को बाबा के साथ जोड़ लिया। दोनों शक्तियों का समामेलन देश के लिए निश्चित रूप से शुभ रहेगा। अन्ना टीम में केजरीवाल जैसे अनर्गल बोलने वालों को दूरी बनानी चाहिए। बाबा इस बार एक सधी हुई टीम के साथ दिल्ली आये उनके साथ पिछली साल जून में हुई घटना के बाद अब तक बहुत कुछ अनुभव के रूप में जुड़ा है। उन्होंने देश को विभिन्न दृष्टिïकोणों से समझा है, परखा है और उसकी चिंताओं और दुश्चिंताओं की गहरी पड़ताल की है। परिणामस्वरूप बाबा गहरी योग मुद्रा से उभरकर ऊपर आते लगते हैं। लेकिन बाबा कांग्रेस की तुष्टिïकरण की नीति छदम धर्मनिरपेक्षता और समान नागरिक संहिता धारा 370, कश्मीर नीति, विदेश नीति आदि पर चुप हैं। ये वो चीजें हैं जिन्होंने कांग्रेस को राजधर्म से च्युत किया है। बाबा इन बिंदुओं पर भी स्वयं को स्पष्टï करें। देश में वर्तमान में आसाम में दंगे हुए हैं वहां के मूल निवासियों को बांग्लादेशी घुसपैठियों ने गाजर मूली की तरह काटकर फेंक दिया, इस पर उनका चिंतन क्या है? वीर सावरकर ने आसाम में बांग्लादेशी घुसपैठियों की घुसपैठ को सबसे पहले देश की एकता और अखण्डता के लिए अनुचित माना था। बाबा वीर सावरकर को एक क्रांतिकारी अवश्य मानते हैं लेकिन भारत को सावरकर के सपनों का भारत बनाने के लिए कितने संघर्षशील हैं, और कितने समर्पित हैं, यह अभी तक स्पष्ट नही है। आज देश की फिजाओं में यदि एक आवाहन है एक चुनौती है, एक चैलेंज है तो उसका मूल कारण कांग्रेस की वो नीतियां हैं जिनके कारण देश में मुस्लिम तुष्टिकरण और छदम धर्मनिरपेक्षता की नींव पड़ी और 1947 में एक खण्डित राष्ट्र लेकर हमें संतोष करना पड़ा था। बाबा जिन क्रांतिकारियों की बात करते हैं उनका सपना खंडित भारत की प्राप्ति नही था। फिर बाबा उन सभी क्रांतिकारियों का एक सांझा भारत और एक सांझा समाधि स्थल कैसे बना पाएंगे जिन्हें वह अपना आदर्श मानते हैं। इस पर भी उनका चिंतन स्पष्ट होना चाहिए। बाबा ना तो कांग्रेस के स्थानापन्न हैं और ना भाजपा के, तो फिर उनका अभीष्ट भारत क्या है? अब यह सबको मालूम होना ही चाहिए। बाबा का आंदोलन आज एक नजीर बन रहा है। सचमुच हमारे सामने इतिहास करवट ले रहा है- हम करोड़ों लोग इस घटना के साक्षी बन रहे हैं। कांग्रेस के भीतर खलबली मच गयी है। सारे नेता और राजनीतिक पार्टियां असमंजस में हैं-करें तो क्या करें? बाबा के साथ आने का मतलब है खाई में गिरना और कांग्रेस के साथ जाने का अर्थ है कुएं में गिरना। शत्रु जब अपनी चतुराई और दांव भूलने की स्थिति में आ जाए तभी समझ लेना चाहिए कि हमारा सेनापति कुशल है और उसका आभामण्डल अब सब पर भारी है। उसका प्रारब्ध जाग रहा है और जितने बड़े स्तर पर यह घटना हो रही है उतने बड़े ही परिणाम इसके आएंगे। चारों ओर युवाओं की बढ़ती भीड़ और बाबा का उद्घोष नजर आ रहा है जिसे देखकर यही लगता है कि सचमुच मेरी मां शेरों वाली है।
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है