181
फटी पुरानी गूदड़ी , और चिंता जिससे दूर।
भिक्षा ले भोजन करे, आनंद करे भरपूर।।
आनंद करे भरपूर , नाम ईश्वर का भजता।
नींद लेय बड़ी मस्ती से, मस्त सदा ही रहता।
राग द्वेष से मुक्त , कटे जिसकी जिंदगानी।।
वह गूदड़ी बड़ी कीमती, बेशक फटी पुरानी।।
182
उदय – अस्त हो सूर्य, उमर भी घटती जाय ।
पल पल बीता जा रहा, बात समझ ना आय।।
बात समझ ना आय ,डोल रहा सिर पर काल।
दिन ,सप्ताह, पक्ष, मास,और बीत रहे साल।।
बचपन, यौवन फेर बुढ़ापा, करें हमारा क्षय ।
रोज सूर्य आकर कहता , जब भी होय उदय।।
183
मदिरा पीकर सो रहा, नशा चढ़ा भरपूर।
आग लगी घर आपुने , मालिक खड़ा है दूर।।
मालिक खड़ा है दूर , हो गया प्रमादी पूरा।
घर जलकर राख हुआ, सोय रहा पीव धतूरा।।
क्या लाभ लिया मानव ने, दुनिया में जीकर।
अमृत पीने आए थे , चल दिए मदिरा पीकर।।
दिनांक : 21 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत