एक थी महान क्रान्तिकारी दुर्गावती देवी
भारत को आजाद कराने व स्वतंत्रता के लिये संघर्ष की जब भी चर्चा होती है तो सबसे पहले महान क्रान्तिकारी शहीद भगत सिंह, राजगुरु, बटुकेशवर दत्त जैसे क्रान्तिकारियो का नाम “लिया जाता है। चन्द्रशेखर आजाद जैसे कुर्बानी देने वाले व अधिकारियों के संगठन का नेतृत्व करने वालों के नाम अमर हैं ।क्रान्ति के इस संग्राम में महिलाओं की भागीदारी भी कम नहीं थी। आजाद हिन्द फौज के लगभग तीन लाख सैनिकों में पचास हजार महिला सैनिक थीं। अनेक महिलाऐं अलग-2 मोर्चो पर अपने साथियों को मदद पहुंचा रही थीं। उन्हीं मे से एक थी दुर्गावती देवी । जिनका जन्म सात अक्टूबर 1907 को इलाहाबाद में एक ब्राहमण परिवार में हुआ था। आगे चलकर इन्होंने जिस प्रकार महान क्रांतिकारी कार्य किए उससे देश का मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया। इनकी देशभक्ति और देश के प्रति समर्पण का भाव आज तक युवाओं के लिए अनुकरणीय बना हुआ है।
छोटी उम्र में ही इनका विवाह लाहौर के भगवती चरण वोहरा के साथ हो गया था। लेकिन बोहरा जी उन दिनो क्रान्तिकारी संगठन के अहम पदों पर थे। यह बात उन्होंने आपनी पत्नि दुर्गावती को बता दी थी। 28 मई 1930 लाहौर में रावी नदी के तट पर अपने साथियों के साथ बम परिक्षण के दौरान दुर्गावती के पति भगवती चरण बोहरा शहीद हो गए । उनकी मृत्यु के बाद दुर्गावती देवी में हौसला नहीं खाया बल्कि अपने पति के संगठन में अपने पति का स्थान लेकर दुर्गा का रूप धर लिया।यहीं से उनका नाम क्रांतिकारियों के संगठन में दुर्गा भाभी पड़ गया ।इसी से जीवन भर उनकी पहचान रही।
9 अक्टूबर 1920 को दुर्गा भाभी ने स्वयं गवर्नर हेली पर गोली चला दी, लेकिन वह इस हमले में बच गया। उस वक्त मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी दुर्गा भाभी ने स्वयं गोली मारी थी। इससे दुर्गा भाभी व उनके साथी यशपाल गिरफ्तार हुए थे । दुर्गा भाभी का दूसरा काम क्रांतिकारियों के लिए हथियार जुटाना भी था। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को शहीद किया था वह दुर्गा भाभी ने ही उन्हें लाकर दी थी। भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त जब केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने निकले थे तो दुर्गा भाभी व सुशीला मोहन ने अपने अंगूठे के खून से दोनों को तिलक लगाकर विदा किया था। बम फेंकने के बाद वह पकड़े गए । उन्हें फांसी की सजा हुई थी।
इसके बाद दुर्गा भाभी अपने पुत्र सचिंद्र के साथ दिल्ली से लाहौर चली गई। वहां वह गिरफ्तार हुई । 3 साल तक उन्हें नजरबंद रखा गया। गिरफ्तारी वेरी हाई का यह मामला 1921 से 1935 तक चला। 15 अक्टूबर 1999 को गाजियाबाद में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
एक याद आज भी जब कहीं उनकी चर्चा होती है हर देशवासी का सिर उनके सम्मान में झुक जाता है । वास्तव में जीना उसी का कामयाब होता है जो देश के काम आता है और जिसको समाज के लोग देर तक याद करने में गर्व की अनुभूति करते हैं। निश्चित रूप से दुर्गा भाभी इसी प्रकार की एक महान शख्सियत थी। लेख के कुछ अंश इतिहास की किताबों से पढ़ कर लिए गए हैं।
रज्जाक अहमद (स्वतंत्र टिप्पणीकार)
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