178
अनुकूल पति के जो चले, वही है उत्तम नार ।
आज्ञा उसकी मानकर, करत सभी ब्यौहार।।
करत सभी ब्यौहार , कभी ना उल्टी चलती।
करे सहज स्वीकार , यदि हो जाए गलती।।
रखती मीठी वाणी, आचरण करे ना प्रतिकूल।।
मति और गति सब ,रखती स्वामी के अनुकूल।।
179
जिसके मन में लोभ है, दुर्गुण भरे अपार।
चुगलखोरी दिल में बसे, दोषों की भरमार।।
दोषों की भरमार, जगत में फिरता मारा मारा।
जिस देहरी जा कर बैठे, करें लोग धिक्कारा।।
टेर सदा लगी रहती है, ऐसे नर की धन में।
दुर्गति उसकी होती है, लोभ है जिसके मन में।।
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दुष्ट संगति जो करे, शील भंग हो जाय ।
दारूबाज की संगति ,लज्जा को खा जाय।।
लज्जा को खा जाय , लोग ना अच्छा कहते।
मर्यादाहीन जन को, कभी ना सच्चा कहते।।
कुलघाती बन जाए दुष्ट, करता कुल को नष्ट।
देश-धर्म का भक्षक बनता, कहलाता है दुष्ट।।
दिनांक : 21 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत