प्रधानमंत्री श्री मोदी ने लालकिले की प्राचीर से लगातार अपना 10 वां भाषण दिया है। वह देश के ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं जिन्हें निरंतर 10 बार लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अबसे पहले कांग्रेस के पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने लगातार 17 बार लालकिले की प्राचीर से लोगों को संबोधित किया। उसके बाद उनकी बेटी श्रीमती इंदिरा गांधी ने लाल किले की प्राचीर से 16 बार देशवासियों को संबोधित किया था। नेहरू गांधी परिवार से अलग के कांग्रेस के प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह ने भी देश को लालकिले की प्राचीर से लगातार 10 बार संबोधित किया है। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई देश के ऐसे पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने जिन्होंने लगातार छह बार लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित किया।
नेहरू ने 14 अगस्त की मध्यरात्रि में वायसराय हाउस ( आजकल हम राष्ट्रपति भवन के रूप में जानते हैं) से अपना पहला भाषण स्वाधीन भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में दिया था। उनके इस भाषण को इतिहास में ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ नाम से याद किया जाता है। उस समय उन्होंने सदियों की गुलामी से अलसाये हुए लेकिन नए जोश में भरे भारत को साथ लेकर आगे बढ़ने का संकल्प लिया था। उनके उस समय के भाषण के संकल्प प्रस्तावों को कई लोगों ने उस समय भी यही कहकर आलोचित किया था कि नेहरू केवल सपने बेच रहे हैं। हमारा मानना है कि नेता वही होता है जो सपने लेता भी है और सपने दिखाता भी है। इससे भी बढ़कर उसकी विशेषता यह होती है कि वह अपने सपनों के लिए न केवल अपने आप पुरुषार्थ करता है बल्कि राष्ट्र को भी पुरुषार्थी बनाता है। यदि नेता स्वयं पुरुषार्थी है और राष्ट्र को वह अपने साथ पुरुषार्थी बनाने में सफल हो जाता है तो उसका नेतृत्व वास्तव में सराहनीय हो जाता है। यही कारण है कि हर प्रधानमंत्री सपने लेता भी है और सपने दिखाता भी है। इसके बाद प्रयास करता है कि संपूर्ण राष्ट्र उसके साथ पुरुषार्थी होकर आगे बढ़े।
वायसराय हाउस से पंडित नेहरू ने अपने भाषण की शुरूआत की थी। उन्होंने कहा था- “कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया है जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे। पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है। आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी तब भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरूआत करेगा।
ये ऐसा समय होगा जो इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है। पुराने से नए की ओर जाना, एक युग का अंत हो जाना,अब सालों से शोषित देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है। यह संयोग है कि हम पूरे समर्पण के साथ भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं। इतिहास की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपनी खोज शुरू की और न जाने कितनी सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं।
समय चाहे अच्छा हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से नजर नहीं हटाई, कभी अपने उन आदर्शों को नहीं भुलाया जिसने आगे बढ़ने की शक्ति दी। आज एक युग का अंत कर रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ भारत खुद को खोज रहा है। आज जिस उपलब्धि की हम खुशियां मना रहे हैं, वो नए अवसरों के खुलने के लिए केवल एक कदम है। इससे भी बड़ी जीत और उपलब्धियां हमारा इंतजार कर रही हैं। क्या हममे इतनी समझदारी और शक्ति है जो हम इस अवसर को समझें और भविष्य में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करें?”
यदि प्रधानमंत्री नेहरू जी के इस भाषण को देखें तो उन्होंने देश के भविष्य को संभालने के प्रति नई आशा का संचार किया था। किसी भी नेता से यही अपेक्षा की जा सकती है कि वह नई संभावनाओं और नई आशाओं को जगाने का काम निरंतर करता रहे। हमने देखा कि पंडित नेहरू जी ने अपने समय में “आराम हराम है” का नारा देकर लोगों को पुरुषार्थी बनने का संकल्प दिलाया था।
अब हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री ने देश के 76 वें स्वाधीनता दिवस के अवसर पर लालकिले की प्राचीर से अपने 90 मिनट के भाषण में जिस प्रकार लोगों के सामने कुछ अपने संकल्प प्रस्ताव रखे हैं तो उन्हें लेकर भी उनके विरोधी कह रहे हैं कि यह चुनावी भाषण है और केवल सपने दिखाने का काम प्रधानमंत्री ने किया है। विचारधारा में जमीन आसमान का अंतर होने के उपरांत भी हम देखते हैं कि पंडित नेहरू जिस प्रकार “आराम हराम है” कहकर राष्ट्र को प्रगतिशील और पुरुषार्थी बना रहे थे वैसे ही वर्तमान प्रधानमंत्री भी अपने आचरण और कार्यशैली से निरंतर देश को पुरुषार्थी बनाने का काम कर रहे हैं।
महत्वपूर्ण यह नहीं है कि कोई नेता कैसे सपने दिखाता है या कैसा भाषण देता है ? महत्वपूर्ण यह है कि वह अपनी कार्य शैली से क्या संकेत दे रहा है और लोगों को किस प्रकार आगे बढ़ने या पुरुषार्थ बनाने में दिन-रात एक कर रहा है ? यदि नेहरू जी ने दिखाए हुए सपनों के अनुसार आगे बढ़ाना उचित नहीं माना या उनके वे संकल्प प्रस्ताव केवल लफ्फाजी बनकर रह गए तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वह ढोंगी और पाखंडी प्रधानमंत्री थे। वैसे ही यदि वर्तमान प्रधानमंत्री भी इसी प्रकार की कार्य शैली पर कम कर रहे हैं तो उनके लिए भी यही विशेषण उपयुक्त होंगे। पर ऐसा कहने से पहले हमें ईमानदारी से कार्यशैली के वांछित परिणामों की ओर भी विचार कर लेना चाहिए।
प्रत्येक राजनीतिक दल और प्रत्येक सरकार को यह संवैधानिक अधिकार है कि वह सत्ता में लौटने के लिए लोगों को अपने साथ बांधे रखने के कोई न कोई ऐसे उपाय करती रहे जिससे उन सबके आकर्षण का केंद्र वह बनी रहे। कुछ राजनीतिक दल या सरकार में बैठे लोग ऐसे होते हैं जो लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हैं और उन्हें मुक्त की रेवड़ियां देने का प्रयास करते हैं। ऐसे लोगों को तात्कालिक लाभ मिल सकता है पर दूरगामी परिणामों पर यदि विचार करें तो इस प्रकार के राजनीतिक आचरण से राष्ट्र का अहित होता है। हमने पूर्व में भी ऐसे ही दलों को झेला है और आज भी झेल रहे हैं। पूर्ण निष्पक्षता के साथ यदि कहें तो चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो वह इस प्रकार के आचरण को न्यूनाधिक प्रयोग में ला रहा है।
पर सच यह है कि भारत के राजनीतिक दलों का यह राष्ट्रीय अब संस्कार बन चुका है। इसके लिए अच्छी बात यही होगी कि सभी राजनीतिक दल राजनीतिक आचार संहिता के संबंध में कानून लाने के लिए अपनी सहमति प्रदान करें । निरर्थक रूप में जनता को बरगलाने या पागल बनाने से बेहतर है कि व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया जाए। हो सकता है कि प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीन से राजनीतिक भाषण दिया हो और ऐसा करके उन्होंने गलती की हो प्रदेश की राजनीति तो इस समय गलतियों के महासागर में समाधि जा रही है। क्या कोई भी राजनीतिक दल आगे आकर यह कहेगा कि वह राजनीति को अब अधिक नहीं गरकने देगा ?
सपने बेचना बुरी बात नहीं है बुरी बात है देश के आयकर दाताओं की खून पसीने की कमाई को वोटों के लालच में लोगों में मुफ्त में बांट देना।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक प्रख्यात इतिहासकार एवं भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)