देश की राजनीति और अटल जी का महान व्यक्तित्व
अनन्या मिश्रा
भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों में पं. जवाहर लाल नेहरू के बाद अगर किसी ने लोकप्रियता का शिखर छुआ है, तो वह नाम अटल बिहारी वाजपेयी का है। राजनीति में वाजपेयी जी के नाम कई अटूट रिकॉर्ड हैं। बता दें कि पं. नेहरू के बाद अटल बिहारी वाजपेयी पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने लगातार दूसरी बार इस पद को प्राप्त किया था। विरोधी पार्टी के नेता भी वाजपेयी जी का लोहा मानते थे। आज ही के दिन यानी की 16 अगस्त को अटल बिहारी वाजपेयी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
मध्य प्रदेश के ग्वालियर के में 25 दिसंबर 1924 को अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्ण बिहारी वाजपेयी था और वह स्कूल में टीचर थे। वाजपेयी जी ने शुरूआती शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर से पूरी की। इसके बाद ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी ग्रेजुएशन किया। इसके बाद कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एमए की डिग्री हासिल की।
अटल जी ने अपने छात्र जीवन से ही राजनीतिक विषयों पर वाद विवाद प्रतियोगिताओं हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। साल 1939 में वह स्वयंसेवक की भूमिका में आ गए। इस दौरान उन्होंने हिंदू न्यूज पेपर में बतौर संपादक काम किया। वहीं श्यामा प्रसाद मुखर्जी से मुलाकात के बाद साल 1942 में वाजपेयी जी ने अपने राजनैतिक सफर की शुरूआत की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आग्रह पर अटल जी ने भारतीय जनसंघ की सदस्यता ली।
साल 1957 में वाजपेयी जी ने उत्तर प्रदेश जिले के बलरामपुर लोकसभा सीट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। जिसके बाद साल 1957 से 1977 तक वह जनसंघ संसदीय दल के नेता के रूप में काम करते रहे। इसके बाद साल 1968 से 1973 तक वह भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को अटल जी ने अपने ओजस्वी भाषणों से प्रभावित किया था। वह अपनी भाषा शैली से सभी पर अपना प्रभाव छोड़ने में सफल हो जाते थे।
अटल जी अपने विनम्र और मिलनसार व्यक्तित्व के कारण जाने जाते थे। इसी कारण विपक्ष से भी उनके मधुर संबंध थे। साल 1975 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तो वाजपेयी जी ने इसका पुरजोर तरीके से विरोध किया। जब साल 1977 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनीं। तो मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार में वाजपेयी जी को विदेश मंत्री का पद मिला। इस दौरान उन्होंने पूरे विश्व में भारत की शानदार छवि निर्मित करने का काम किया। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र में अटल जी ने विदेश मंत्री के तौर पर हिंदी में भाषण दिया था। ऐसा करने वाले वह देश के पहले वक्ता थे।
अटल बिहारी वाजपेयी ने कई बार यह साबित किया कि वह विदेश नीति में माहिर होने के साथ ही प्रभावी राजनीतिज्ञ भी हैं। आपातकाल के दौरान भी वाजपेयी जी ने देश की छवि को सुधारने का काम किया था। साल 1980 में अटल जी ने अपने सहयोगी नेताओं की मदद से भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की। अटल जी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनें। वर्तमान में बीजेपी यानी की भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
बता दें कि 80 के दशक के आखिरी और 90 के दशक के शुरूआत में जब राम मंदिर के मुद्दे को लेकर वाजपेयी जी की पार्टी की छवि कट्टर हिंदूवादी के तौर पर बन रही थी। तब वाजपेयी जी ने पार्टी पर कट्टरपंथ का लगा टैग हटाने का प्रयास किया था। विरोधियों को उनकी पार्टी की नाकारत्मक छवि बनाने का प्रयासों को वह हमेशा अपने तार्किक बयानों से विफल कर देते थे। साल 1996 में जब वाजपेयी जी की 13 दिन की सरकार बनी थी। तब अटल जी के भाषणों ने लोगों के मन में पार्टी के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था। राजनीति जगत में साल 1999 काफी चौंकाने वाला था। यह वह साल था जब जब अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीने की सरकार गिर गई थी। लेकिन 13 महीने में भी अटल सरकार के काम बोलने लगे थे।
साल 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद बिगड़ी छवि के बाद भी अटल जी ने अपना कौशल पूरी दुनिया को दिखाया था। उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत की पहल कर दुनिया को यह संदेश दिया था कि शांति के लिए भारत कितना अधिक गंभीर है। वहीं कारगिल युद्ध में भी अटल जी अपनी विदेश नीति के कारण दुनिया को यह समझाने में सफल हुए कि भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध नहीं कर रहा है। बल्कि भारत पाकिस्तान की घुसपैठ और उसके नापाक मंसूबों को नाकाम करने का प्रयास कर रहा है। यही वह समय था जब वैश्विक स्तर पाकिस्तान अकेला पड़ गया और हार का सामना करना पड़ा।
भारत के दसवें प्रधानमंत्री और राजनीति के कुशल राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 अगस्त 2018 को हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। पिछले कुछ समय से उनकी तबियत ज्यादा खराब थी।