अध्याय … 57
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परहित के लिए त्याग दें, अपना सब धन माल।
सत्पुरुष होते वही, गीत गाय संसार।।
गीत गाय संसार , करें सब वंदन उनका।
आत्मकल्याण, जग उत्थान, धर्म हो जिनका।।
जगहित करे सो उत्तम, मध्यम करे अपना हित।
नीच करे दूजों को हानि, सबसे उत्तम परहित।।
170
वाणी मीठी बोलिए, गहना सबसे श्रेष्ठ।
फीके हीरे भी पड़ें, जो चमक में सबसे ज्येष्ठ।।
जो चमक में सबसे ज्येष्ठ, आभूषण हीने लगते।
तेल, इत्र, स्नान, पुष्प, सभी ही फीके लगते।।
वाणी ही सम्मान दिलाती, कभी पिटवाती वाणी।
वाणी से ही पुष्प बरसते,पत्थर फिंकवाती वाणी।।
171
विद्या से शोभित बने, मनुज पाय सम्मान।
सुख और यशदायिनी, है विद्या की पहचान।।
है विद्या की पहचान, यह गुरु की गुरु कहाई।
परदेश में परिजन के सम,विद्या बन जाय सहाई।।
सम्मान दिलाती परदेशों में,जिनके पास है विद्या।।
सभा बीच झुकता है राजा,देख सामने विद्या।।
दिनांक : 20 जुलाई 2023