अध्याय … 55 क्रोधी व्यक्ति जब मिले ……
![IMG-20230806-WA0018](https://i0.wp.com/www.ugtabharat.com/wp-content/uploads/2023/08/IMG-20230806-WA0018.jpg?fit=485%2C1280&ssl=1)
163
कामवासना रोग है, दुखदाई हो जाय।
मोह भयंकर है रिपु, बंधन लोभ बताय ।।
बंधन लोभ बताय , क्रोध भयंकर अग्नि।
जो इनमें फंस गया, राह मौत की पकड़ी।।
कामी फंसे काम में, लज्जा उड़ाए वासना।
ऋषियों ने ऐसा कहा, रोग है कामवासना।।
164
धन चाहिए तो नींद का, करना है परित्याग।
तंद्रा , भय और क्रोध को, लगा दीजिए आग।।
लगा दीजिए आग, आलस्य भी दूर भगाओ।
ना काम देर से कीजिए, गुण को गले लगाओ।।
दोषों को दूर भगा कर ,पुरुषार्थ करना चाहिए।
पुरुषार्थ उसको है प्रिय, जिसको धन चाहिए।।
165
क्रोधी व्यक्ति जब मिले, कीजिए प्रेम अपार।
कंजूसों को दान दो, दुष्टों को उपकार।।
दुष्टों को उपकार , यही बात बांध लो गांठ।
झूठे को तुम सत्य से, सदा लीजिए हांक।।
सही रास्ते पर आ जाते, होते बड़े विरोधी।
सत्पुरुषों के प्रेम के आगे ,पानी भरते क्रोधी।।
दिनांक : 20 जुलाई 2023
![](https://i0.wp.com/www.ugtabharat.com/wp-content/uploads/2024/07/Dr.-Rakesh-Kumar-Arya.jpg?resize=100%2C100&ssl=1)
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है