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कविता

अध्याय … 54 जाति बंधन छोड़ दो ……

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भोगों का उपभोग भी, ना कर पाते लोग।
भरथरी कह कर गए , भोग रहे हैं भोग।।
भोग रहे हैं भोग, पल-पल हम मरते जाते।
जितना चाहें निकलना,उतना फंसते जाते।।
बीत जाए यूं ही जीवन, नहीं समझते लोग।
जीवन में नहीं कर पाते, भोगों का उपभोग।।

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जाति बंधन छोड़ दो, यही मनुज का धर्म।
देश हित जीवन धरो, यही है उत्तम कर्म।।
यही है उत्तम कर्म, और धर्म हमारा है यही।
देश हमारा ‘देव’ है, पवित्र हमारी है मही।।
सब की जाति एक है, जाति से मुंह मोड़।
जाति में न बांट नर को, जाति बंधन छोड़।।

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साहस ,शौर्य , वीरता, सैनिक के गुण तीन।
देश सुरक्षित सोवता , कभी ना हो गतिहीन।
कभी ना हो गतिहीन , देश की होए तरक्की।
पड़ोसी देश जला करता, बात यही है सच्ची।।
जिओ देश की खातिर, बिखराओ सर्वत्र शौर्य।
शत्रु अपनी भूले चाल, देख साहस और शौर्य ।।

दिनांक : 19 जुलाई 2023

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