अनन्या मिश्रा
भीकाजी रुस्तम कामा एक ऐसी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थी। जिन्होंने पहली बार साल 1907 में विदेशी धरती पर भारतीय झंडा फहराया था। भीकाजी कामा एक उत्साही स्वतंत्रता कार्यकर्ता होने के साथ ही महिला अधिकारों के लिए आवाज उठाने और आगे आने वाली महिला थीं। बता दें कि भीकाजी कामा को ‘भारतीय क्रांति की जननी’ के तौर पर भी जाना जाता है। आज ही के दिन यानी की 13 अगस्त को भीकाजी रुस्तम कामा ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर भीकाजी रुस्तम कामा के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
सोराबजी फ्रामजी पटेल और उनकी पत्नी जयजीबाई सोराबाई पटेल के घर 24 सितंबर 1861 को भीकाजी कामा का जन्म हुआ था। उनके पिता जयजीबाई सोराबाई पटेल पेशे से व्यापारी थे। वह पारसी समुदाय के प्रभावशाली सदस्य होने के साथ ही कानून के भी जानकार थे। भीकाजी ने अपनी पढ़ाई एलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन से पूरी की थी। वह एक मेहनती और मेधावी छात्रा थीं। वहीं साल 1885 में भीकाजी की शादी रुस्तम कामा से हो गई।
भीकाजी कामा अपना अधिकतर समय सामाजिक कार्यों को करने में व्यतीत करती थीं। वह अपनी लंदन यात्रा के दौरान श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आईं। श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय राष्ट्रवादी थे, साथ ही वह अपने भाषणों के लिए काफी ज्यादा फेमस थे। भीकाजी कामा श्यामजी कृष्ण वर्मा से प्रभावित हुईं। वहीं भीकाजी पेरिस भी गईं, जहां पर उन्होंने पेरिस इंडियन सोसाइटी की स्थापना की थी।
साल 1907 में भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विनाशकारी प्रभावों के बारे में चर्चा की। बता दें कि इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के टुक़ड़-टुकड़े कर दिए गए थे। इस घटना के दौरान ही भीकाजी ने विदेशी धरती पर भारतीय तिरंगा फहराया था। भीकाजी कामा और साथी कार्यकर्ता विनायक दामोदर सावरकर ने भारतीय ध्वज को डिजाइन करने का काम किया था।
साल 1909 में जब विलियम हट कर्जन वायली की हत्या कर दी गई तो लंदन के अधिकारियों ने वहां निवास करने वाले भारतीयों पर नकेल कसनी शुरू कर दी। उस दौरान भीकाजी पेरिस में थी। उन्होंने यात्रा कर-कर के लंदन, जर्मनी और अमेरिका में भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने के काम शुरू किया। वहीं साल 1896 में जब मुंबई में लोग प्लेग बीमारी से पीड़ित थे, तो उन्होंने मरीजों की सेवा की। लेकिन इसी दौरान भीकाजी को लकवा मार गया।
हालांकि काफी इलाज कराए जाने के बाद वह लकवा की बीमारी से ठीक हो गई। लेकिन उन्हें आराम किए जाने की सलाह दी गई थी। साथ ही आगे के इलाज के लिए भीकाजी को यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। वहीं इलाज के दौरान पारसी जनरल अस्पताल में 13 अगस्त 1936 को 74 साल की उम्र में भीकाजी कामा का निधन हो गया।
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