154
पांच कोश का पींजड़ा , जा में पंछी बंद।
पांच प्राण और इंद्रियां, भवन चाक-चौबंद।।
भवन चाक- चौबंद, इंद्रिय संख्या ग्यारह।
संचालक बन आत्मा, इनको बैठ निहारै।।
सतोगुणी बुद्धि रहै , तब इंद्रियां हों निर्दोष।
समझ खेल का खेल है, देह के पांचों कोश।।
155
भ्राता की दशा देखकै , मन में उठे उमंग।
भाई होता है वही , कष्ट में देवे संग।।
कष्ट में देवे संग , साथ बाजू बन रहता।
बांह पकड़ साथ लगा, बढ़ने को कहता।।
पीर भगावै भाई की, भय भाई का हरता।
परमेश्वर का रूप है,कहते जिसको भ्राता।।
156
उदारता की खान है ,प्रेम का अक्षय स्रोत।
स्नेह प्रेरणा देत है , भाई ऐसा होत।।
भाई ऐसा होत, कपट ना राखे दिल में।
प्रतिमूर्ति भाई की, बात ना राखे मन में।।
भाई सच्चा सखा सहाई, देय हौसला दान।
विद्वानों ने हमें बताया, उदारता की खान।।
दिनांक : 16 जुलाई 2023
Dr Rakesh Kumar Arya sampadak ugta Bharat
मुख्य संपादक, उगता भारत