उन्होंने बातों ही बातों में मुझे एक रोचक प्रसंग सुनाया। वह कहने लगे कि एक बार उन्हें सरकारी अधिकारी के रूप में कानपुर की एक प्रसिद्घ मीट कंपनी का ऑडिट करने के लिए जाना पड़ा। मैंने वहां जाकर सारी पड़ताल नियमानुसार की। तब मैंने अंतिम प्रश्न कंपनी के प्रबंधन तंत्र से किया-आप मुझे ये बतायें कि आपके यहां मृत पशुओं के चमड़े के उस कटपीस का आप कहां उपयोग करते हैं जो जूते आदि बनाने से शेष रह जाता है? मेरे प्रश्न पर सारा प्रबंधन तंत्र हक्का बक्का रह गया। उनमें से एक ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर तो आपको कंपनी मालिक ही दे सकते हैं। तब मैंने कहा कि उन्हें बुलाईए। मेरे अडिय़ल रवैए पर कंपनी मालिक वहां आ गया। तब उसने मेरे प्रश्न को समझकर बात को टालने का प्रयास किया और कहा कि ऐसा प्रश्न अब से पहले तो हमारे सामने नही आया। एक बार अवश्य आया था, तब हमने उस अधिकारी को 25 लाख नजराना दिया था। आप बतायें क्या चाहेंगे? मैंने कहा कि जिनकी बात आप कर रहे हैं उन्हें छोडि़ए, बात मुझसे हो रही है, इसलिए मुझ तक सीमित रहिये। तब कंपनी मालिक कुछ कड़क कर बोला कि जैसे यहां अन्य पशु मारे जाते हैं, वही हाल तुम्हारा भी हो जाएगा। इसलिए संभलकर बात करो। याद रखो कि कहां बैठे हो? उसकी गीदड़ भभकी में न आकर मैंने भी उसे कड़क जवाब दे दिया कि मैं तैयार हूं जो तुम्हें करना है वह कर सकते हो? मैं यह कहकर अपना बैग उठाकर वहां से चल दिया। कंपनी गेट पर आते-आते उस मालिक ने दो व्यक्तियों को मेरे पीछे दौड़ाया और उन व्यक्तियों ने मुझसे आकर कहा कि साहब आप से बात करना चाहते हैं। मैंने कहा कि अपने साहब से कहो, कि वह यहीं कंपनी गेट पर आ जाएं। मेरे कड़े दृष्टिकोण को देखकर वह कंपनी मालिक गेट पर ही आ गया और अपने तेवर ढीले करते हुए बोला कि आप कल आइये हम आपके सवाल का जवाब दे देंगे।
मैं अगले दिन गया तो वह कंपनी मालिक मुझे अपनी उक्त कंपनी से कुछ दूर एक छोटी सी कंपनी में लेकर गया। जहां वह अपने कटपीस चमड़े का अलग से प्रयोग करता था। उन्होंने वहां जाकर मुझे दिखाया कि उस चमड़े को वो लोग सुखाकर पीसते हैं, और इतना बारीक पीसते हैं कि वह बिल्कुल मैदा सा हो जाता है। उस बारीक पिसे हुए चमड़े का रंग कत्थई हो जाता है। तब मैंने उनसे पूछा कि इस का प्रयोग कहां होता है, तो उन्होंने बताया कि इस पिसे हुए चमड़े का प्रयोग पान के साथ (कत्था के रूप में) किया जाता है इसे पान में लगाकर दिया जाता है। उस अधिकारी के कहने का अभिप्राय ये था कि आदमी अपने स्वार्थ के लिए कितना गिर गया है। आदमी स्वयं ही आदमियत से खिलवाड़ कर रहा है।इसलिए वह अधिकारी इस बात से सहमत नही थे कि देश में भ्रष्टाचार रोकने के लिए ऊपरी तौर पर उपचार करके ही कत्र्तव्य की इतिश्री कर ली जाए।
मैं सोच रहा था कि मुंह का कैंसर, आंतों का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, ये सब आदमी की अपनी कार्यशैली में आये बदलाव का परिणाम है। जब आदमी अपने स्वार्थ के लिए चमड़े तक को पीसकर लोगों को खिला रहा हो तो भयंकर बीमारियों का होना तो लाजिमी ही है। आदमी आदमी को मार रहा है। खा रहा है। खत्म कर रहा है। उत्तर प्रदेश के 58 जिलों में पीने का पानी पीने योग्य नही रह गया है। कारण है कि पीने के पानी को ऐसी कंपनियों के द्वारा प्रदूषित कर दिया गया है। कंपनियों का गंदा पानी धरती में उतारा जा रहा है। जिससे लोगों में जानलेवा बीमारियां फैल रही हैं। इन सारी करतूतों को ‘चांदी के बादशाह’ कर रहे हैं, उन्हें चांदी काटनी है और गरीब की आजादी छीननी है। मैं सोच रहा था आखिर आदमी को ऐसे अमानवीय कृत्यों को करने की आजादी किसने दी है? और यह भी कि क्या आदमी की यह आजादी ही उसके लिए आत्मघाती सिद्घ नही होगी? मेरे मुंह से अनायास निकल गया रोको किस ओर जा रहा है आदमी?