वीवी गिरी : रेलवे यूनियन से राष्ट्रपति बनने तक का सफर
अनन्या मिश्रा
आज के दिन यानी की 10 अगस्त को देश के पूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरी का जन्म हुआ था। उन्होंने देश के मजदूर वर्ग को एक नई आवाज देने का काम किया था। इसके साथ ही देश की आजादी की लड़ाई में वी वी गिरी ने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
अगर आज हमारे देश में श्रम को महत्व और अधिकार मिल रहा है, अगर हर मजदूर अपने हक के लिए आवाज उठा रहा है, तो इसके लिए सिर्फ एक इंसान को धन्यवाद देना चाहिए। उनका नाम है वी वी गिरी। बता दें कि वी वी गिरि ने देश के मजदूर वर्ग को एक नई आवाज देने का काम किया था। उन्होंने मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी। इसी कारण मजदूर को उनका अधिकार मिल रहा है। वैसे तो वह लॉ में अपना कॅरियर बनाना चाहते थे। लेकिन बाद में वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। आज ही के दिन यानी की 10 अगस्त को पूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरी का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर वी वी गिरी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
जन्म और शिक्षा
ओडिशा के ब्रह्मपुर में 10 अगस्त 1894 को स्वतंत्र भारत के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम वी.वी. जोगिआह पंतुलु था, जो पेशे से वकील होने के साथ ही कांग्रेस के एक्टिव मेंबर भी थे। वी. वी. गिरी की शुरूआती शिक्षा ब्रह्मपुर से पूरी हुई। साल 1913 में वह वकालत की पढ़ाई के लिए आयरलैंड चले गए। वहां पर गिरि ने साल 1913-16 तक डबलिन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की थी।
इस दौरान वी वी गिरी की मुलाकात डी वलेरा से हुई। डी वलेरा एक फेमस ब्रिटिश विद्रोही दे। वी वी गिरी उनसे प्रभावित हुए और आयरलैंड की स्वतंत्रता के लिए चल रहे ‘सिन फीन आंदोलन’ से जुड़ गए। इस स्वतंत्रता की लड़ाई में अपना योगदान दिया। जिसके परिणाम स्वरूप वी वी गिरी को आयरलैंड से बाहर निकाल दिया गया। वहीं आयरलैंड की स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी मुलाकात इमोन दे वलेरा, माइकल कॉलिंस,डेस्मंड,जेम्स कोन्नाली आदि जैसे महान सेनानियों से हुई। इन लोगों से प्रबावित होकर वी वी गिरी साल 1916 में भारत वापस लौट आए।
वी वी गिरी कॅरियर
भारत लौटने के बाद गिरी ने मद्रास हाईकोर्ट ज्वॉइन कर लिया और कांग्रेस पार्टी के मेम्बर बन गए। इस दौरान उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उन्होंने गिरी को यह एहसास दिलाया कि भारत की आजादी भारत वासियों के लिए कितनी जरूरी है। इसके बाद वह श्रमिक और मजदूरों के लिए चल रहे आंदोलन में जुड़ गए। उन्होंने बंगाल-नागपुर रेलवे एसोसिएशन की स्थापना रेलवे कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से की थी।
वी वी गिरी को अखिल भारतीय व्यापार संघ और अखिल भारतीय रेलवे कर्मचारी संघ के अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। साल 1934 में वह इम्पीरियल विधानसभा के सदस्य नियुक्त हो गए। वहीं साल 1936 में वी वी गिरी को मद्रास आम चुनावों में कांग्रेस की ओर से खड़ा किया गया। जिसमें गिरि ने जीत हासिल की। वहीं साल 1937 में वी वी गिरी को मद्रास कांग्रेस पार्टी द्वारा बनाए गए श्रम एवं उद्योग मंत्रालय में मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया।
इसके बाद साल 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। इसके लिए उन्हें कई बार जेल यात्रा भी करनी पड़ी। वहीं साल 1947 में जब देश को आजादी मिली तो श्रीलंका के सिलोन में वी वी गिरी को भारत के उच्चायुक्त पद से नवाजा गया।
राजनैतिक सफ़र
साल 1952 में पाठापटनम सीट से लोकसभा का चुनाव जीत कर वी वी गिरी सांसद बन गए। इस दौरान उन्होंने 1954 तक कार्य किया। जिसके लिए वी वी गिरी को साल 1975 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। बता दें कि वह उत्तर प्रदेश, मैसूर एवं केरल के राज्यपाल भी रहे। जब साल 1967 में जाकिर हुसैन राष्ट्रपति बने तो इस दौरान वी वी गिरी को उपराष्ट्रपति बनाया गया। वहीं जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद वी वी गिरी को राष्ट्रपति बनाया गया। वहीं 6 महीने बाद साल 1969 में जब राष्ट्रपति के चुनाव हुए तो देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी द्वारा राष्ट्रपति पद के लिए फिर से वी वी गिरी को नियुक्त किया गया। इस दौरान वह साल 1979 से 1974 तक राष्ट्रपति पद पर बने रहे।
मृत्यु
वी वी गिरी को 23 जून 1980 को चेन्नई में 85 वर्ष की आयु हार्ट अटैक आया। जिसमें उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि श्रमिकों के उत्थान और देश की स्वतंत्रता के लिए वी वी गिरी द्वारा किए गए योगदान को देश सदैव याद रखेगा।