मुझे मिला है सुकूने दिल, तेरे फैसले से ऐ मालिक,
मेरी इंतजार की घडिय़ों को, तूने कितनी समझदारी से समेटा है।
सारे विश्व में भारत की न्यायपालिका की निष्पक्षता की धाक है। इस निर्णय को देने में चाहे भले ही कुछ देर हुई है लेकिन कानून के शासन में इतनी देर होना कोई बड़ी बात नही है। अपने आपको निर्दोष सिद्घ करने के लिए कसाब को अवसर मिलना ही चाहिए था।
न्यायालय के इस निर्णय पर अब देखना ये है कि भारत की सरकार किस प्रकार अमल करती है। भारत के लोगों को शिकायत भारत की न्यायपालिका से नही है अपितु भारत की कार्यपालिका से है। भारत सरकार की ढिलाई का ही परिणाम होता है कि यहां आतंकी घटनाएं बार-बार होती हैं। घटनाओं में संलिप्त अपराधियों को सजा देना तो न्यायालय का काम है, लेकिन घटनाओं को रोकना सरकार का काम है। पर यहां सरकार की कार्यप्रणाली को देखकर ऐसा लगता है कि वह घटनाओं का इंतजार करती है कि घटनाएं हों और घटनाओं में संलिप्त लोगों को न्यायालयों के हवाले कर दिया जाए। बुराई लेना न्यायालयों का काम है, बुराई को होने देना सरकार का काम है और बुराई को झेलना जनता का काम है। सम्राट अशोक से लेकर गांधीजी की अहिंसा तक से हमने संभवत: यही सीखा है। निश्चय ही यह प्रवृत्ति हमारा राष्ट्र धर्म नही हो सकती। सरकार यदि पोटा जैसे कानून का निर्माण करे, तथा सुरक्षाबलों को कुछ विशेषाधिकार प्रदान करे तो स्थिति में परिवर्तन आ सकता है। सुरक्षाबलों को विशेषाधिकार देने का अर्थ मानवाधिकारों का उल्लंघन कराने की छूट देना कदापि नही है, जैसा कि माना जाता है, अपितु यह छूट तो मानवाधिकारों की सुरक्षार्थ आवश्यक है। आतंकी लोग नित्यप्रति कितने लोगों के मानवाधिकारों का सौदा करते हैं, और उससे कितने लोग जिंदा लाश बनकर चलते फिरते हैं? सुरक्षा बलों को दिये जाने वाले विशेषाधिकार उन असहाय और निरीह प्राणियों की रक्षार्थ आवश्यक है। सम्राट अशोक और महात्मा गांधी की करूणा भी असहाय और निरीह लोगों की सुरक्षार्थ हमारा साथ देने को तैयार है। इन दोनों महामानवों का चरित्र राष्ट्र धर्म के समिष्टवादी स्वरूप से निर्मित है और यह समष्टिवाद ही भारत के राष्ट्रधर्म का प्राणतत्व है। परंतु इस समष्टिïवादी रश्ज्त्रधर्म की व्याख्या को इतना लचीला बना देना कि उससे आतंकी लाभ उठायें और शांतिप्रिय लोग उससे भयभीत होने लगें तो यह स्थिति आत्मप्रवंचना ही कही जाएगी। शासन की नीतियों में कठोरता और लचीलेपन का सम्मिश्रण होना चाहिए। केवल कठोरता का प्रदर्शन शासन को तानाशाह बना देता है और जनता उससे दूर हो जाती है जबकि केवल लचीलापन शासन को दुर्बल बना देता है।
कठोर शासन में भले लोग आतंकित रहते हैं, तो लचीले शासन में भले लोग चोर बनने लगते हैं। क्योंकि तब वह भ्रष्टïाचारियों को भ्रष्टïाचार के बल पर मौज करते देखते हैं और सोचते हैं कि जब इनका कुछ नही बिगड़ रहा तो हमारा क्या बिगड़ेगा? इसलिए क्यों न भ्रष्टाचार के सागर में गोते लगाकर मोतियों की खोज की जाए। भारत में वर्तमान में जो स्थिति बनी हुई है उसके लिए भारत के दुर्बल शासन की लचीली नीतियां ही उत्तरदायी हैं।
कसाब जैसे लोग भारत में प्रवेश करें और यहां निरपराध लोगों की हत्याएं करें-उन हत्याओं को आतंकी को फांसी की सजा पूरा नही कर सकती। पड़ोसी देशों को आतंकित करना भी हमारा उद्देश्य नही हो सकता। परंतु पड़ोसी देशों को हमारी एकता और अखण्डता से खेलने का अधिकार भी नही हो सकता और यदि वह ऐसा कर रहे हैं और बार-बार कर रहे हैं तो हमें अपनी विदेश नीति की समीक्षा करनी ही होगी। कसाब का हिसाब तो न्यायालय ने कर दिया है लेकिन फिर कोई कसाब ना हो ये देखना तो सरकार का ही काम है। सरकार कसाब को जल्दी फांसी दे। देश अब ये ही चाहता है।