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डॉ डी के गर्ग
पौराणिक मान्यता : उनके 24 अवतार अब तक पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। इन 24 अवतार में से 10 अवतार विष्णु जी के मुख्य अवतार माने जाते हैं। यह है मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार. कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार।
भगवान विष्णु की 4 भुजाएं होती हैं।ये परमेश्वर का चतुर्भुज स्वरूप सुगम है।
हर युग में उन्होंने अलग-अलग रूप धारण करके हमारा उद्धार किया है। पृथ्वी पर जब-जब कोई संकट आता है, तो भगवान अवतार लेकर उस संकट को दूर करते हैं। शिव जी और विष्णु जी ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिया है।
विश्लेष्ण: एक विद्वान के बताया कि विष्णु के दो खास अर्थ है- 1. विश्व का अणु और 2. जो विश्व के कण-कण में व्याप्त है।
ईश्वर सर्वशक्तिशाली और सर्वांतर्यामी है उसको अवतार लेने की जरूरत नहीं .विष्णु की चार भुजाएं बताते हैं, परन्तु जो नाम विष्णु के अवतार बताए है इनमे किसी के भी चार हाथ नही है।चार मुंह का मतलब है चहूं ओर।
जिस तरह विष्णु के अवतारों की सूची तैयार की गई है वो तुक्का मार है ,किसने बनाई है ये भी नहीं मालूम ,सिर्फ आंख बंद करके स्वीकार करते जा रहे है।
किसी भी मान्यता या सिद्धांत को समझने के लिए उसके विषय में गहराई से अध्ययन करना चाहिए , अज्ञानी की तरह से नहीं ,अंधविश्वास नही।
विष्णु किसे कहते है ,सृष्टि की रचना किसने की और २४ अवतार की सच्चाई को गहराई को समझना चाहिए।
1.परमात्मा के अनेको नाम है ,जिनमे एक नाम विष्णु भी है। प्रश्न हो सकता है की परमात्मा को विष्णु क्यों कहते है ?
इसका उत्तर महर्षि दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में दिया है —
(विष्लृ व्याप्तौ) इस धातु से ‘नु’ प्रत्यय होकर ‘विष्णु’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘वेवेष्टि व्याप्नोति चराऽचरं जगत् स विष्णुः’ चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम ‘विष्णु’ है।
2.आगे ये जिज्ञासा होनी स्वाभाविक है की चर और अचर रूप जगत् किसे कहते है ? इसका मतलब है की ईश्वर सामान रूप से जड़ और चेतन जगत् में व्याप्त है। ये तभी संभव है की जब ईश्वर ने इनकी रचना की हो। ईश्वर एक है ,ये पूरे विश्व के सभी धर्म , पंथ और मजहब स्वीकार करते है।
3. कार्यो के आधार पर ईश्वर की विवेचना करे तो ईश्वर के मुख्य तीन उपनाम यानि स्वरूप है -ब्रह्मा का अर्थ है सबसे महान जिसने श्रृष्टि की रचना की है, विष्णु का अर्थ है सर्वव्यापक, और महेश का अर्थ है सब (जड़ और चेतन ) का ईश अर्थात स्वामी ।ईश्वर अनन्त शक्ति वाला है और अपने सभी काम वह स्वयं ही करता है, उसका कोई सहायक नही है ।
4.यहाँ एक बात समझना आवश्यक है कि जो सृष्टि की रचना करता है, उसका पालन करता है और अन्त में सृष्टि का संहार करता है ये तीनों सत्ताएं अलग-अलग नहीं हैं ,एक ही महान सत्ता है। इस भ्रान्ति को दूर करना आवश्यक है ।
5.ईश्वर एक है,अद्वितीय है, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है।संक्षेप में मुख्य रूप से परमात्मा के पांच कार्य है ।
(१ ) : सृष्टि की उत्पत्ति करना
(२) : सृष्टि का पालन करना
(३ ) : वेदों का ज्ञान देना
(४) : सृष्टि का विनाश (प्रलय) करना
( ५) जीवों के अच्छे-बुरे कर्मों का फल देना (अर्थात न्याय करना)
साधारणत लोग परमात्मा के तीन कार्य जानते हैं। परमात्मा के तीन कार्य नही है परन्तु पांच कार्य है । परमात्मा अपने इन कार्यों में किसी की सहायता नही लेता इसलिए उसे सर्वशक्तिमान कहते हैं।
6.यद्धपि ब्रह्म, विष्णु और महेश ये तीनों उसी एक परम पिता परमेश्वर के ही गौणिक नाम है परन्तु परमात्मा का मुख्य नाम ओ३म् है, यजुर्वेद के चालीसवे अध्याय के सतरहवे मंत्र में ईश्वर ने स्वयं अपना नाम ओ३म् बताया है। ” ओ३म् खं ब्रह्म ” अर्थात में ब्रह्म आकाश के समान व्यापक, गुण, कर्म स्वभाव की दृष्टि से सबसे बड़ा हूँ (ओ३म्) में सब जगत् का रक्षक ओ३म हूँ, ऐसा जानो।
7.विष्णु का अर्थ है सर्वव्यापक है ,तो इसका मतलब स्पष्ट है की विष्णु एक निराकार ईश्वर है ,शरीरधारी नहीं है तो फिर उसने बिना शरीर का होने के बावजूद सृस्टि की रचना कैसे की ? और कैसे विष्णु रुपी परमेश्वर चर और अचर में व्याप्त है ?
इसका उत्तर समझने के लिए सृष्टि की उत्पत्ति और जीव आदि के विषय में समझना जरुरी है।
उपरोक्त प्रश्न का उत्तर हमें वेद में मिलता है।
सत्व रजस्तमसा सामयावस्था प्रकृतिः प्रकृतेर्महान् महतोऽहंकारोऽहंकारात् पञ्चतन्मात्राण्युभयमिन्द्रियं पञ्चतन्मात्रेयः स्थूल भूतानि पुरुष इति पञ्च विंशतिर्गण।।
अर्थ- सत्व, रज और तम रूप शक्तियाँ हैं। इन शक्ति रूपों की समावस्था, निश्चेष्ठावस्था प्रकट रूपावस्था को प्रकृति कहते हैं। प्रकृति के तीन गुण से ( सत्त्व , रजस् और तमस् ) सृष्टि की रचना हुई है । ये तीनों घटक सजीव-निर्जीव, स्थूल-सूक्ष्म वस्तुओं में विद्यमान रहते हैं । इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है। किसी भी पदार्थ में इन तीन गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उस का चरित्र निर्धारित होता है।
ऋग्वेद में सृष्टि उत्पत्ति परमेश्वर ने इस प्रकार की है- ब्रह्मणस्पतिरेता सं कर्मारइवाधमत्। देवानां पूर्व्ये युगेऽसतः सद जायत।। – ऋ. 10.72.2 प्रकृति और ब्रह्माण्ड के स्वामी परमेश्वर ने दिव्य पदार्थों के परमाणुओं को लोहार के समान धोंका, अर्थात ताप से तप्त किया है। वास्तव में इसी को वैज्ञानिकों ने भयंकर विस्फोट Big Bang कहा है। इन दिव्य पदार्थों के पूर्व युग, अर्थात् सृष्टि के प्रारमभ में अव्यक्त (असत्) प्रकृति से (सत्) व्यक्त जगत् उत्पन्न किया गया है।
तैत्तिरीयोपनिषद् ब्रह्मानन्दवल्ली के प्रथम अनुवाक में सृष्टि उत्पत्ति का क्रम भी बताया गया है-
तस्माद्वा एतस्मादात्मन आकाशः समभूतः। आकाशाद्वायुः। वायोरग्निः। अग्नेरापः। अद्भ्यः पृथिवी।
पृथिव्या ओषधय। ओषधीयोऽन्नम् अन्नाद् रेतः। रेतसः पुरुषः। स वा एष पुरुषोऽन्नरसमयः।।
अर्थात् परम पुरुष परमात्मा से पहले आकाश, फिर वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी उत्पन्न हुई है। पृथ्वी से ओषधियाँ, (अन्न व फल फूल) ओषधियों से वीर्य और वीर्य से पुरुष उत्पन्न हुए, इसलिए पुरुष अन्न रसमय है। पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य में से छिटक कर हुई है, इस पर कहा गया है-
भूर्जज्ञ उत्तानपदो भूव आशा अजायन्त | अदितेर्दक्षो अजायत दक्षाद्वदितिः परि।। – ऋ. 10.72.4
अर्थ- पृथ्वी सूर्य से उत्पन्न होती है। पृथ्वी से पृथ्वी की दशा को बताने वाले भेद उत्पन्न होते हैं। प्रातःकालीन उषा से आदित्य उत्पन्न होता है, अर्थात् दृष्टि गोचर होता है और सांय कालीन उषा आदित्य से उत्पन्न होती है।
ये तो रहा सृष्टि की उत्पत्ति जो ईश्वर ने की है और अब समझे सृष्टि का निर्माण जो कि 24 तत्वों से मिलकर हुआ है .क्या हैं ये 24 तत्व? ये है–
पांच ज्ञानेद्रियां –आंख,नाक, कान,जीभ,त्वचा
पांच कर्मेन्द्रियां –गुदा,लिंग,हाथ,पैर,वचन
तीन अंहकार -सत, रज, तम
पांच तन्मात्राएं -शब्द,रूप,स्पर्श,रस,गन्ध
पांच तत्व -पृथ्वी , आकाश,वायु, जल, अग्नि
और एक मन शमिल है इन्हीं चौबीस तत्वों से मिलकर मानव शरीर बना है ,जिन पदार्थों को जानना, समझना अत्यंत आवश्यक है।
ईश्वर, इस संसार में जितने भी ऋतु व सत्य पदार्थ है सब आपके बनाए हुए है | आप ही सूर्य चन्द्र आदि नक्षत्रो को अनादि काल से बना कर धारण कर रहे है |
ये हमारे ऋषियों द्वारा दिया गया अनूठा ज्ञान है जिन्होंने बताया की ईश्वर विष्णु जिसने इन सभी २४ तत्त्व द्वारा सृष्टि का निर्माण किया है। वह सभी में 24 घंटे यानी हर समय विराजमान है ,धारण किये हुए है। इसी तथ्य को अलंकार की भाषा में संक्षेप में कह दिया की भगवान् विष्णु के 24 अवतार है। जिसको समझना चाहिए ,इस गूढ़ भाषा का अन्य कोई अन्य भावार्थ नहीं है। इसलिए धर्म के विषय में विवेक का प्रयोग जरुरी है।