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चारों वेदों के चार व्याख्या ग्रंथ, जिनको ब्राह्मणग्रंथ कहते हैं (१) ऐतरेय (२) तैत्तरीय (३) शतपथ (४) गोपथ |
इन ब्राह्मणग्रंथों को इतिहास, कल्प, गाथा, नाराशंसी, पुराण के नाम से भी पुकारा जाता है | ये ग्रंथ ऋषियों के प्रमाणिक इतिहास को बताते हैं और वेदों का तात्पर्य सटीक ढंग से समझाते हैं | इन्हीं ब्राह्मणग्रंथों में विज्ञानपूर्वक सभी वैदिक सिद्धान्तों का समावेष है, जिसमें अप्रमाणिक कुछ भी नहीं है | स्वयं तैत्तरीय आरण्यक २:९ में लिखा है कि,
“ब्राह्मणानीतिहासान् पुराणानि कल्पान् गाथा नाराशंसीरिति” |
आर्य समाज इन १८ पुराणों को नहीं मानता है :-
ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण, शिवपुराण, भागवतपुराण, नारदपुराण, मार्कण्डेयपुराण, अग्निपुराण, भविष्यपुराण, ब्रह्मवैवर्तपुराण, लिंगपुराण, वाराहपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्यपुराण, गरुड़पुराण, ब्रह्माण्डपुराण, सुर्यपुराण |
इन १८ नवीन ग्रन्थों को सनातन समाज पुराण नाम से मानता है | और आर्य समाज इसलिए नहीं मानता है, क्योंकि प्रथम तो इनका उल्लेख किसी प्रमाणिक शास्त्र में नहीं है और इनमें हमारे महापुरुषों के बारे में अश्लील और निंदायुक्त बातें मिलती है, जिन्हें पढ़कर कोई भी मनुष्य भ्रम में पड़़ जाये | इन्हीं के कारण हमारे वैदिक धर्म में अनेकों कुरीतियाँ, जैसे कि एक सच्चे ईश्वर के स्थान पर अनेकों मिथ्या देवी देवताओं की उपासना, भूत प्रेतों की पूजा, मूर्तीपूजा, मूर्तियों पर निर्दोष पशु और मानवों की बलि, मृतक श्राद्ध में मांसाहार का विधान, देवी देवताओं की मूर्तियों पर शराब चढ़ाना आदि प्रचलित हुई |
इन १८ ग्रंथों को प्रमाणित करने के लिए इन्हें व्यास जी द्वारा लिखा प्रचारित किया जाता है जो कि सत्य नहीं है | इन १८ पुराणों को लगभग २८०० वर्ष के कालखंड में लिखा गया है, सभी पुराणों में अपने अपने देवों की स्तुति और अन्य देवों की निंदायुक्त कथाएँ हैं | इन्हीं कथाओं का सहारा लेकर विधर्मी मुसलमान, ईसाई, अंबेदकरवादी आदि सनातन समाज की खूब खिल्ली उड़ाते हैं और इन्हीं कथाओं को दिखाकर हिंदू युवाओं और युवतियों के मन में उनके देवों और महापुरुषों के प्रति भ्रम उत्पन्न करके उनको मुसलमान, ईसाई, वामपंथी या नास्तिक आदि बना देते हैं |
इसी कारण आर्य समाज इन १८ पुराण नामक कपोल्कल्पित ग्रंथों को नहीं मानता है |