136
प्राण, अपान और व्यान हैं, संग में समान, उदान।
पांच प्राण बतलाए दिए, तू जान सके तो जान।।
तू जान सके तो जान , नाग, कूर्म और कृकल ।
पांच ही उप प्राण हैं , साथ में देवदत्त धनंजय।।
प्राण होवें जिसके वश में, हुआ उसका कल्याण।
प्राण जाने से पहले, तू भी कर वश में प्राण।।
137
ऐश्वर्यवान धर्मात्मा , यशस्वी और श्रीमान।
ज्ञानी बैरागी बने , मनुज होय भगवान।।
मनुज होय भगवान, कहलाता पुरुषोत्तम।
इन छ: गुणों के कारण, जीवन बनता उत्तम।।
पुरुषोत्तम श्री राम और श्री कृष्ण से भगवान।
दिव्य गुणों से भूषित होकर, रहे ऐश्वर्यवान।।
138
इंद्र, अग्नि ,मित्र से, और बृहस्पति सोम ।
ऐश्वर्य संपन्न है , निकट है उसके ओ३म।।
निकट है उसके ओ३म , धन धान्य हो पूरा।
घोड़े, हाथी, गायें होवें, ना सपना कोई अधूरा।।
धर्मात्मा हृदय से होवे , और ऊंचा होय चरित्र।
ऐश्वर्यवान के साथी होते, इंद्र, अग्नि, मित्र ।।
दिनांक: 15 जुलाई 2023
मुख्य संपादक, उगता भारत