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कविता

कुंडलियां … 45 प्रजापति यह यज्ञ है …….

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स्थावर जंगम जगत का, सूर्य आत्मा होय।
वेद यही बतला रहे, ना इसमें संशय कोय।।
ना इसमें संशय कोय, जग विज्ञान से चलता।
छुपके बैठा संचालक , इसमें चाबी भरता।।
बिन सूर्य चल नहीं सकता, काम जगत का।
कहा आत्मा वेद ने, स्थावर जंगम जगत का।।

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प्रजापति यह यज्ञ है, सभी का पालनहार ।
वृष्टि जल को शुद्ध कर, करता जल भरमार।।
करता जल भरमार , शुद्ध करता है वायु।
मानव रहता स्वस्थ, बढ़ाता अपनी आयु।।
जुड़े यज्ञ से जो मानव ,उसकी होवे शुद्ध मति।
देव सभी प्रसन्न रहें, कल्याण करें प्रजापति।।

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बारह मास आदित्य हैं, आते हैं हर साल।
मीन , मेष हैं राशियां, माह चैत्र , वैशाख ।।
माह चैत्र , वैशाख , सभी की संख्या सम है।
धरती करे परिकम्मा, इसकी बात में दम है।।
जड़ देवता जितने भी हैं ,उनमें है सूरज खास।
जीवन चलता सूर से, और बनत हैं बारह मास।।

दिनांक : 15 जुलाई 2023

Dr Rakesh Kumar Arya
sampadak Gupta Bharat

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