हाल ही में कई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों ने भारत के भविष्य में होने वाले आर्थिक विकास को लेकर प्रतिवेदन जारी किए हैं। वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आने वाली आर्थिक मंदी की आशंकाओं के बीच इन प्रतिवेदनों में भारतीय अर्थव्यवस्था को पूरे विश्व के लिए भविष्य का एक चमकता सितारा बताया गया है।
अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज संस्था मॉर्गन स्टैनली का कहना है कि भारत निश्चित ही विकास की एक लम्बी लहर के शुरुआती दौर में पहुंच गया है, और विकास की यह लहर लम्बे समय तक चलने वाली है। उक्त संस्था का मानना है कि भारत के मैक्रो संकेतक लचीले बने हुए हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था इस वर्ष 6.2 प्रतिशत की विकास दर हासिल करने की ओर दृढ़ता से आगे बढ़ रही है। संस्था ने भारत का स्टेट्स ‘अंडरवेट’ रेटिंग के बाद ‘बराबर’ रेटिंग से भी आगे बढ़ाते हुए ‘ओवरवेट’ रेटिंग में कर दिया है। क्योंकि, संस्था को उम्मीद है कि भारत की अर्थव्यवस्था भविष्य में भी बेहतर प्रदर्शन करती रहेगी। संस्था की प्रक्रिया में भारत पूरे विश्व में अपने 6ठवें स्थान से पहिले स्थान पर पहुंच गया है।
अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर एक प्रतिवेदन जारी किया है। जिसमें, बताया गया है कि वित्त वर्ष 2030-31 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 6.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा, वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का है। वित्तीय वर्ष 2023-24 से लेकर वित्तीय वर्ष 2030-31 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 6.7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से आगे बढ़ेगी। इस विकास दर के चलते भारतीय नागरिकों की प्रति व्यक्ति आय वर्तमान के स्तर 2,500 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष से बढ़कर वर्ष 2031-32 तक 4,500 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष हो जाएगी। हालांकि इसके लिए देश की अर्थव्यवस्था में मातृशक्ति की भागीदारी बढ़ाने की बात की गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत के कुल वर्कफोर्स में मातृशक्ति की भागीदारी केवल 24 प्रतिशत थी। प्रतिवेदन में आगे यह भी कहा गया है कि भारत के लिए सेवा क्षेत्र से निर्यात आर्थिक विकास के लिए सबसे बड़ा इंजिन साबित होने जा रहा है।
एसएंडपी ग्लोबल के अनुसार, वर्ष 2030 तक स्टार्टअप के क्षेत्र में वेंचर कैपिटल फंडिंग वर्तमान की तुलना में दोगुनी हो जाएगी। इलेक्ट्रिकल व्हीकल्स, स्पेस टेक्नोलोजी, आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, ड्रोंस रोबोटिक्स और क्लीन टेक्नोलाजी जैसे नए क्षेत्रों में भारत को सबसे अच्छा लाभ मिलने वाला है। इन क्षेत्रों में होने वाला पूंजी निवेश वर्तमान में चालू दशक के अंत तक भारत की औसतन 6.7 प्रतिशत की विकास दर में 53 प्रतिशत की हिस्सेदारी करने वाला है। साथ ही, भारत के उपभोक्ता बाजार का आकार भी वर्ष 2022 के 2.3 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की तुलना में वर्ष 2031 बढ़कर 5.2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा, अर्थात वर्तमान की तुलना में दुगने से भी अधिक आकार का।
वैश्विक सलाहकार संस्था अर्नस्ट एंड यंग (ई वाय) ने “इंडिया एट 100: रीयलाईजिंग द पोटेंशियल आफ 26 ट्रिलियन डॉलर इकानोमी” नाम से जारी एक विशेष प्रतिवेदन के माध्यम से बताया है कि कोरोना महामारी, रूस यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध एवं वैश्विक आर्थिक संकट के बीच भी, भारत के अमृत काल के दौरान, वर्ष 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 26 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। शीघ्र ही, वर्ष 2028 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं वर्ष 2036 में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो जाएगा। उक्त रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2047 में प्रत्येक भारतीय की प्रति व्यक्ति वार्षिक औसत आय 15,000 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगी, ये आज के स्तर से 7 गुना से भी अधिक है। वर्ष 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी और जापान की अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगी। दरअसल भारत में भारी क्षमताएं मौजूद हैं और आगे आने वाले समय में भारत की आर्थिक प्रगति पूरे वैश्विक आर्थिक मंच को प्रभावित करने जा रही है।
फायनांशियल टाइम्स के मुख्य अर्थशास्त्री श्री मार्टिन वुल्फ ने भारतीय अर्थव्यवस्था की जमकर तारीफ करते हुए कहा है कि अब यह लगभग निश्चित आभास होने लगा है कि आगे आने वाले लम्बे समय (10 से 20 वर्षों के दौरान) तक भारतीय अर्थव्यवस्था पूरे विश्व में सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। कोरोना महामारी के बाद की विषम परिस्थितियों में भारत सरकार ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को सम्हाला है बल्कि अन्य देशों की मदद के लिए भी इस दौरान अपना हाथ आगे बढ़ाया है। इन्हीं कारणों के चलते वैश्विक स्तर पर कई अर्थशास्त्री भारत की आर्थिक नीतियों की तारीफ करते हुए दिखाई दिए हैं।
एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय निवेश प्रबंधन एवं वित्तीय सेवा कम्पनी मोर्गन स्टेनली के अर्थशास्त्रियों ने भी एक प्रतिवेदन जारी कर कहा है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक विकास की दृष्टि से अगला दशक भारत का होने जा रहा है। इस सम्बंध में उक्त प्रतिवेदन में कई कारण गिनाए गए हैं, जिनके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार वर्तमान स्तर 3.50 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2031 तक 7.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा और इस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिका एवं चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी। इसी प्रकार, भारत का पूंजी बाजार भी अपने वर्तमान स्तर 3.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर पर 11 प्रतिशत की, चक्रवृद्धि की दर से, वार्षिक वृद्धि दर्ज करते हुए अगले 10 वर्षों में 10 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच जाएगा। भारत में घरेलू मांग के लगातार मजबूत होने से एवं भारत में डिजिटल क्रांति के कारण भारतीय नागरिकों की आय में बहुत अधिक वृद्धि होने की सम्भावना के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास का पांचवा हिस्सा भारत से निकलेगा, ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के उक्त विचार सत्य होते भी दिखाई दे रहे हैं क्योंकि सेवा क्षेत्र से जुड़ी सर्विस पीएमआई के माह जुलाई 2023 के आंकड़े बता रहे हैं कि, एसएंडपी ग्लोबल का इंडिया सर्विसेज पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स यानी पीएमआई का स्तर जुलाई 2023 में 62.3 पर रहा है जो कि पिछले 13 वर्षों का उच्च स्तर है और इसके जरिए भारत के सेवा क्षेत्र में हो रहे शानदार विकास का पता चलता है। सेवा क्षेत्र से निर्यात भी बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। सेवा निर्यात संवर्द्धन परिषद (एसईपीसी) ने यह उम्मीद जताई है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत से सेवाओं का निर्यात 400 अरब डॉलर पर पहुंच सकता है। वाणिज्य मंत्रालय के शुरुआती आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत से सेवा क्षेत्र में निर्यात वित्तीय वर्ष 2021-22 के 254 अरब डॉलर से 42 प्रतिशत अधिक अर्थात 323 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। परिषद के चेयरमैन ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए सेवा क्षेत्र से 300 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया था जबकि वास्तव में यह 323 अरब डॉलर का रहा है। भारत के विकास में सेवा क्षेत्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि देश के सकल घरेलू उत्पाद में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सेवा क्षेत्र का ही रहता है एवं रोजगार के नए अवसर उपलब्ध कराने में भी सेवा क्षेत्र का अहम स्थान है।
अब वैश्विक स्तर पर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों – विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, यूरोपीयन यूनियन, एशियाई विकास बैंक, आदि द्वारा लगातार यह कहा जा रहा है कि पूरे विश्व में इस समय सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में केवल भारत ही एक चमकते सितारे के रूप में दिखाई दे रहा है। अब यहां प्रशन्न उठता है कि क्या वर्ष 2023 में भारत वैश्विक स्तर पर अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत सहारा दे सकता है। इसका उत्तर सकारात्मक रूप में ही मिलता नजर आ रहा है। क्योंकि अभी हाल ही में देखा गया है कि न केवल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों बल्कि विदेशी निवेशकों एवं विदेशों में रह रहे भारतीय मूल के नागरिकों का भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्वास लगातार बढ़ता जा रहा है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।