*गणेश स्तुति के लिखे गए श्लोक का भवार्थ*:
Dr D K Garg
श्लोक: *वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
प्रचलित अर्थ – घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली। मेरे प्रभु,(गणेश जी )हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥
वास्तविक भावार्थ: गलत भावार्थ के कारण ये श्लोक शरीरधारी गणेश की मूर्ति को ध्यान में रखकर गाया जाता है। परन्तु इस श्लोक में सूंडधारी गणेश का कही भी उल्लेख नहीं है। ये श्लोक कहाँ से लिया गया है और किसने लिखा है ,ये अज्ञात है। परन्तु ये बहुत प्रसिद्ध है और इस पर तरह- तरह की धुनें और संगीत देखने को मिलता है। इसलिए इस पर गौर करना जरुरी है। पहले कुछ प्रमुख शब्दावली को समझते है।
इस श्लोक में ईश्वर की स्तुति करते हुए भक्त ने ईश्वर के लिए तीन मुख्य बाते कही है —
१ वक्रतुण्ड
२ महाकाय
३ सूर्यकोटि
१ वक्रतुण्ड = वक्र यानी घुमावदार ,गोलाकार,मुड़ी हुई ।
तुण्ड = हाथी की सूंड़ ,मुख
यह टुंड शब्द हाथी की सूंड के लिए प्रयोग नहीं हुआ है क्योकि हाथी की सूंड उसकी इच्छा के अनुसार घूमती रहती है।हाथी की सूंड की सूंघने की शक्ति सबसे प्रबल होती है। यहाँ पर अलंकार की भाषा के प्रयोग द्वारा हाथी की सूंड की उपमा का प्रयोग कवि ने प्रयोग किया है। इसका भावार्थ है हाथी की सूंड की भांति विशाल ,सभी दिशाओं में भ्रमण करने वाले, सभी प्राणियों और प्रकृति पर चहुं ओर ध्यान देने वाले असीमित शक्ति वाले ईश्वर से है।पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी जीवधारियों में हाथी की नासिका यानी सूंड सबसे बड़ी और घुमावदार होती हैं,अन्य किसी जीव की नही।
२ महाकाय =महा+काय । महा अर्थात बड़ा,विशाल,विस्तीर्ण । काय: यानी शरीर।
हे ईश्वर, तू जो कण कण में है। लोक लोकान्तरो में विद्यमान है ,तू महाकाय वाला है ,जिसका आकर भी अकल्पनीय है।
३ सूर्यकोटिसमप्रभ = कोटि कहते हैं करोड़ को ।कोटि पराकाष्ठा को,आधिक्य को ,परमोत्कर्ष को भी कहते हैं।
समप्रभ =समान प्रभा वाले।प्रभा अर्थात प्रकाश, दीप्ति,कान्ति,जगमगाहट, चमक। करोड़ों सूर्य के समान जिनकी कान्ति है ।
सूर्य क्या है ? सूर्य हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा पिंड है और उसका व्यास लगभग १३ लाख ९० हज़ार किलोमीटर है जो पृथ्वी से लगभग १०९ गुना अधिक है। [सूर्य से पृथ्वी की औसत दूरी लगभग १४,९६,००,००० किलोमीटर या ९,२९,६०,००० मील है तथा सूर्य से पृथ्वी पर प्रकाश को आने में ८.३ मिनट का समय लगता है। सूर्य की गुरुत्वाकर्षण फोर्स पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से 27 गुना अधिक है। यदि किसी का वजन पृथ्वी पर 1 kg है, तो सूर्य पर उसका वजन 27 kg होगा। यदि कोई वस्तु सूर्य के 20 लाख 22 हज़ार किलोमीटर के दायरे में आती है, तो अपनी तीव्र गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सूर्य उसे अपनी ओर खींच लेता है।वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि सूर्य के केंद्र का तापमान अनुमानित 150 लाख डिग्री सेंटीग्रेड है। यानि करोडो सूर्य से भी ज्यादा प्रभा वाले ईश्वर ,
उपरोक्त से स्पष्ट है की ये श्लोक शरीरधारी गणेश के लिए नहीं है ,निराकार ईश्वर के लिए है गणेश की सवारी तो चूहा बताते है ,फिर करोडो सूर्य से ज्यादा तेज ,प्रभावशाली कैसे हो सकता है?ये केवल एक निराकार ईश्वर ही हो सकता है।
वेद में ईश्वर को सूर्य भी कहा गया है –
सूर्य्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च’
इस यजुर्वेद के वचन से जो जगत् नाम प्राणी, चेतन और जंगम अर्थात् जो चलते-फिरते हैं, ‘तस्थुषः’ अप्राणी अर्थात् स्थावर जड़ अर्थात् पृथिवी आदि हैं, उन सब के आत्मा होने और स्वप्रकाशरूप सब के प्रकाश करने से परमेश्वर का नाम ‘सूर्य्य’ है।
गणेश जी कौन है– गणेश के दो अर्थ निकलते है -एक गणेश शरीरधारी है जी हिमालय पर्वत के राजा शिव के पुत्र थे ,इनकी माता का नाम पार्वती और गणेश के भाई का नाम कार्तिकेय था। इनकी सवारी चूहा बतायी जाती है। इस अलोक में ये श्लोक शरीरधारी शिव पुत्र गणेश के लिए नही है।
वेद में गणेश : वेद में गणेश शब्द ईश्वर के लिए भी प्रयोग किया है – “गण संख्याने ” इस धातु से ‘गण’ शब्द सिद्ध होता है, इसके आगे ‘ईश’ वा ‘पति’ शब्द रखने से ‘गणेश’ और ‘गणपति शब्द’ सिद्ध होते हैं। ‘ये प्रकृत्यादयो जडा जीवाश्च गण्यन्ते संख्यायन्ते तेषामीशः स्वामी पतिः पालको वा’ जो प्रकृत्यादि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी वा पालन करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘गणेश’ वा ‘गणपति’ है।
अन्य प्रयुक्त शब्दों का भावार्थ:
निर्विघ्नं =विघ्न अर्थात वाधा, हस्तक्षेप, रुकावट, अड़चन । और निर् अर्थात ‘के बिना’।बिना वाधा के।
कुरु = करें,करने की कृपा करें।
मे =मेरे लिये।
देव =देवता ,आदरपूर्ण सम्बोधन।
सर्वकार्येषु = सभी कार्यों मे।
सर्वदा =हमेशा, सब अवस्थाओं, सभी परिस्थितियों में।
संक्षेप में भावार्थ:जो (ईश्वर) वक्रतुण्ड हैं ,जो महाकाय हैं,जो करोड़ों सूर्यों के समान दीप्ति वाले हैं, ऐसे देव! मेरे लिये सभी कार्यों मे ,सभी अवस्थाओं में निर्विघ्नता प्रदान करने की कृपा करें।
उपरोक्त वास्तविक भावार्थ के साथ श्लोक का उच्चारण करें ,अज्ञानियों की तरह नही।