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संपादकीय

भारत में अविश्वास प्रस्तावों का रहा है रोचक इतिहास

लोकतंत्र में सरकार की तानाशाही को रोकने के लिए अनेक प्रबंध किए जाते हैं। यद्यपि सिरों की गिनती का खेल लोकतंत्र की वास्तविक पवित्र भावना को बिगाड़ देता है। किसी भी सरकार के विरुद्ध लाया जाने वाला अविश्वास प्रस्ताव एक ऐसा ही हथियार है, जिसे विपक्ष कभी भी अपनाकर सरकार को यह आभास करा सकता है कि उसके तानाशाही दृष्टिकोण से देश की जनता खुश नहीं है। हमारे देश में स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात से अब तक 26 बार केंद्र में शासन करती रहीं विभिन्न पार्टियों की सरकारों के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाये गये हैं। अब केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के विरुद्ध 27 वां अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। अविश्वास प्रस्ताव के लिए यह आवश्यक होता है कि यदि उसे आधे से अधिक सदस्यों का समर्थन प्राप्त हो जाता है तो केंद्र में काम कर रही सरकार गिर जाती है।
आचार्य जे0बी0 कृपलानी ने पहली बार केंद्र की नेहरू सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाने का साहस किया था। आचार्य जे0बी0 कृपलानी कई मुद्दों पर नेहरू सरकार में रहकर भी नेहरू से असहमत रहे थे। अपनी इसी प्रकार की छवि के चलते उन्होंने अंत में नेहरू से अलग होने का निर्णय लिया और अपनी नई पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। उस समय नेहरू जी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाना बहुत बड़ी बात थी। उन्हें कांग्रेस के नेता “बेताज का बादशाह” कहा करते थे। आचार्य जे0बी0 कृपलानी का वह अविश्वास प्रस्ताव अपने पक्ष में मात्र 62 मत ही प्राप्त कर पाया और नेहरू सरकार को मिले 347 मतों के समक्ष औंधे मुंह गिर गया। यद्यपि इसके उपरांत भी एक बात स्पष्ट हो गई कि आचार्य जे0बी0 कृपलानी ने आने वाले समय के लिए विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया से अवगत करा दिया और प्रत्येक प्रधानमंत्री को भी यह संदेश दे दिया कि उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।
इसके पश्चात जब लाल बहादुर शास्त्री ने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला तो उनके विरुद्ध भी विपक्ष ने आक्रामक दृष्टिकोण अपनाया। लाल बहादुर शास्त्री जी की छवि बहुत ही ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ और विनम्र प्रधानमंत्री की होने के उपरांत भी विपक्ष को एक जिद थी कि कांग्रेस किसी प्रकार सत्ता से दूर हो। बस, अपनी इसी जिद के चलते विपक्ष ने अपनी भड़ास निकालने के लिए उनके विरुद्ध एक बार नहीं, तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाने का कार्य किया। उनके 18 महीने के शासनकाल में तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाना विपक्ष की गैर जिम्मेदाराना हरकत ही मानी जाएगी। शास्त्री जी के साथ भी बहुमत था, इसलिए विपक्ष द्वारा लाया गया तीनों बार का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। उस समय विपक्ष को यह उम्मीद थी कि कांग्रेस के नेता लाल बहादुर शास्त्री को उस प्रकार अपना नेता नहीं मानेंगे जैसे नेहरू को माना करते थे। इसका परिणाम यह होगा कि कांग्रेस की फूट के चलते सरकार गिर जाएगी। पर कॉन्ग्रेस अपने नेता के साथ खड़ी रही और विपक्ष के मंसूबे पूरे नहीं हो पाए।
शास्त्री जी के पश्चात जब इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो उनके शासनकाल में उनकी सरकार के विरुद्ध विपक्ष के द्वारा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए। अब तक के इतिहास में इंदिरा गांधी पहली प्रधानमंत्री थीं जिनके विरुद्ध सबसे अधिक बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इन्दिरा गांधी जब देश की प्रधानमंत्री बनी थीं तो उस समय विपक्ष को और कांग्रेस के भीतर के नेताओं को भी यह उम्मीद थी कि वह सरकार चला नहीं पाएंगी। कांग्रेस के भीतर के ऐसे नेताओं में मोरारजी देसाई का नाम सबसे अग्रगण्य है। मोरारजी देसाई इस बात से आहत थे कि नेहरू के पश्चात उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। इसी प्रकार शास्त्री जी की मृत्यु के उपरांत जब उन्हें दूसरा अवसर मिला तो उस समय भी इंदिरा गांधी बाजी मार गई और वे देश की प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गई। इंदिरा गांधी ने राजनीति में तिकड़मबाजी के खेल को भरपूर प्रोत्साहित किया था। वह एक कुशल राजनीतिज्ञा थीं। अपनी इसी कला का परिचय देते हुए वह हर बार अविश्वास प्रस्ताव को असफल करने में कामयाब रहीं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रहे ज्योति बसु सबसे अधिक बार अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के विरुद्ध चार बार अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत किया था। यह अलग बात है कि उनका कोई भी प्रस्ताव कभी सफल नहीं हो पाया। मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी के विरुद्ध लाए गए प्रत्येक अविश्वास प्रस्ताव में बढ़-चढ़कर भाग लेते रहे थे। उन्हें प्रधानमंत्री बनने की बहुत इच्छा थी। यह एक संयोग ही है कि जब वह स्वयं देश के प्रधानमंत्री बने और उनके विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव आया तो उनकी अपेक्षाओं के विपरीत उनके लिए संसद में पर्याप्त बहुमत उनके साथ नहीं था।
इस प्रकार अविश्वास प्रस्ताव लाने में उनके द्वारा जिस प्रकार अब तक बढ़-चढ़कर विपक्ष को सहयोग दिया जाता रहा था, वह उनके स्वयं के लिए ही घातक साबित हुआ। उनके विरुद्ध विपक्ष के द्वारा दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। पहले अविश्वास प्रस्ताव को तो वह गिराने में सफल हो गए थे, परंतु जब दूसरी बार उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तो उनकी सरकार के घटक दलों में फूट पड़ चुकी थी। जिसका अनुमान लगाकर उन्होंने स्वयं ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
पी0वी0 नरसिम्हाराव की सरकार के विरुद्ध भी विपक्ष की ओर से तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। वह तीनों बार ही अपनी सरकार को बचाने में सफल हो गए थे। यद्यपि उस समय अपनी सरकार को बचाने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देकर तोड़ने के उन पर गंभीर आरोप लगे थे।
कभी विपक्ष में रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी भी सरकारों के विरुद्ध दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश कर चुके थे। जब वह स्वयं देश के प्रधानमंत्री बने तो यह एक संयोग ही था कि उनके विरुद्ध भी दो बार ही अविश्वास प्रस्ताव आए। पहले अविश्वास प्रस्ताव में उनकी सरकार गिर गई थी, जबकि दूसरी बार वह अपनी सरकार को बचाने में सफल हो गए थे। यह 1999 की घटना है जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार मात्र एक मत से गिर गई थी। उन्होंने इस समय मत विभाजन से पूर्व ही अपना त्यागपत्र दे दिया था। अगली बार उनके विरुद्ध 2003 में फिर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, पर इस बार उन्होंने 312 मत प्राप्त कर विपक्ष को केवल 186 मतों तक समेट दिया था।
2008 में केंद्र की मनमोहन सरकार ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया तो इसको लेकर देश में राजनीति गरमा गई थी । तब उनके विरुद्ध भी अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, पर वह प्रस्ताव भी गिर गया था। इसके पश्चात केंद्र की मोदी सरकार के विरुद्ध 2018 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। उस समय विपक्ष को यह भली प्रकार पता था कि उसकी पराजय निश्चित है, पर फिर भी उसने अविश्वास प्रस्ताव लाने के अपने अधिकार का प्रयोग किया और पराजित भी हुआ। उस समय विपक्ष को 126 मत अपने अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में प्राप्त हुए थे। जबकि मोदी सरकार को 325 मत प्राप्त हुए थे।
अब 27 वां अविश्वास प्रस्ताव आ रहा है। मोदी सरकार के विरुद्ध यह दूसरा प्रस्ताव है। देखना होगा कि इस प्रस्ताव की अंतिम परिणति क्या होती है ? यद्यपि विपक्ष स्वयं स्वीकार कर चुका है कि उसके प्रस्ताव का गिरना निश्चित है।

डॉ राकेश कुमार आर्य

(लेखक प्रख्यात इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)

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