खतरनाक मोड पर पहुंचा रूस यूक्रेन युद्ध और दुनिया फिर भी चुप है

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अशोक मधुप

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग के शुरू होने पर लगा था कि लड़ाई एकतरफा है। रूस के सामने यूक्रेन नहीं टिक पाएगा, किंतु हुआ सोच के विपरीत। डेढ़ साल बाद भी यूक्रेन मजबूती के साथ रूस के सामने खड़ा है। सूचनाएं आ रही हैं कि यूक्रेन अब बढ़त ही ओर है।

रूस−यूक्रेन युद्ध से हो रहे और होने वाले मानव जाति को महाविनाश से बचाने के लिए अभी रूस-अफ्रीका फ़ोरम प्रयास कर रहा है, आज जबकि इस युद्ध को रुकवाने में संयुक्त राष्ट्र संघ की भूमिका का कोई महत्व नहीं, ऐसे में इस युद्ध को रुकवाने के लिए पूरी दुनिया को आगे आना चाहिए। सबको अपने प्रयास करने चाहिए। डेढ़ साल से चल रहा ये युद्ध किसी भी समय परमाणु हमले की जद में आ सकता है। इस युद्ध में हिरोशिमा−नागासाकी के बाद फिर से मानव जाति के महाविनाश की कहानी लिखी जा सकती है। इसकी खास बात ये होगी कि इस बार महाविनाश हिरोशिमा नागासाकी से कई गुना भारी होगा, क्योंकि अब परमाणु बमों की क्षमता पहले से बहुत अधिक है।

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग के शुरू होने पर लगा था कि लड़ाई एकतरफा है। रूस के सामने यूक्रेन नहीं टिक पाएगा, किंतु हुआ सोच के विपरीत। डेढ़ साल बाद भी यूक्रेन मजबूती के साथ रूस के सामने खड़ा है। सूचनाएं आ रही हैं कि यूक्रेन अब बढ़त ही ओर है। यूकेन का रूस पर बढ़त लेना बहुत ही खतरनाक संकेत है। रूस अपने को परास्त होता देख अपने सम्मान और हनक की खातिर परमाणु शस्त्रों का प्रयोग करने से कभी नहीं चूकेगा और यदि ऐसा हुआ तो मानव जाति का महाविनाश हो सकता है।

रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। इससे पहले भी रूस और यूक्रेन के बीच इस क्षेत्र को लेकर काफी तनाव बना हुआ था। ऐसा इसलिए क्योंकि सोवियत संघ ने इस क्रीमिया क्षेत्र को तोहफे के रूप में यूक्रेन को सौंपा था। साल 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने मध्यस्थता करते हुए रूस और यूक्रेन में शांति समझौता करवाया था। यूक्रेन और रूस में समझौते के बाद यूक्रेन पश्चिमी देशों से अपने अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अच्छे बनाने में जुट गया, यह रूस की मर्जी क विरुद्ध था। रूस नहीं चाहता था कि यूक्रेन के संबंध किसी भी पश्चिमी देश का अच्छे हों, यूक्रेन चाहता था कि वह नाटो देशों के समूह में शामिल हो। यूक्रेन रूस से सटा देश है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसके खिलाफ थे। वे नहीं चाहते थे कि नाटो की सेना की आमद उसकी सीमा तक हो जाए। यूक्रेन के न मानने पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध का निर्णय लेना पड़ा।

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ही नहीं, पूरी दुनिया मान रही थी कि रूस का मुकाबला यूक्रेन के लिए संभव नहीं, किंतु यूक्रेन भारी नुकसान के बाद भी युद्ध का मुकाबला करता रहा। शुरुआत में उसका कुछ भाग रूस के कब्जे में चला गया। रूस-यूक्रेन का सबसे ज्यादा असर यूक्रेन के आम लोगों पर पड़ रहा है। इसका कारण यह है कि युद्ध यूक्रेन की जमीन पर हो रहा है। इस युद्ध के चलते एक अनुमान के अनुसार यूक्रेन में 8000 से अधिक आम लोगों की मौत हो चुकी है। 80 लाख से अधिक लोगों ने यूक्रेन छोड़ दिया जबकि करीब 1.4 करोड़ लोगों को विस्थापित होना पड़ा। इस युद्ध में अब तक रूस के एक लाख 45 हजार से अधिक सैनिकों की मौत हो चुकी है, वहीं यूक्रेन को भी अपने एक लाख सैनिकों की जान से हाथ धोना पड़ा है। युद्ध के चलते यूक्रेन में करीब 138 अरब डॉलर का इन्फ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। यूक्रेन के 1100 से ज्यादा अस्पताल और 1,49,300 रिहायशी इमारतों को नुकसान पहुंचा है। यूक्रेनी राष्ट्रपति के आर्थिक सलाहकार ओलेग उस्तेंको के मुताबिक, यूक्रेन को युद्ध की वजह से एक ट्रिलियन डॉलर (करीब आठ लाख करोड़ रुपये) का नुकसान हो चुका है। दूसरी तरफ रूस अब तक युद्ध में करीब 8,000 अरब रुपये फूंक चुका है। दूसरी तरफ अमेरिका और यूरोप मिलकर यूक्रेन की मदद के नाम पर युद्ध में 12,520 अरब रुपये झोंक चुके हैं। भोजन और ईंधन की बढ़ी हुई कीमतें, बाधित आपूर्ति श्रृंखला, महंगाई और बेरोजगारी जैसे कारकों को शामिल कर देखा जाए, तो युद्ध की वजह से पूरी दुनिया पर करीब 24 लाख करोड़ रुपये (तीन ट्रिलियन डॉलर) का बोझ पड़ा है।

नाटो देश इस युद्ध में सीधे तो शामिल नहीं हुए किंतु वह यूक्रेन की सैन्य मदद कर रहे हैं। यूक्रेन का उत्साह बढ़ाने को अमेरिका सहित कुछ देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने यूक्रेन का दौरा भी किया। यूक्रेन को युद्ध में प्रत्येक प्रकार की सैन्य सहायता का वायदा नहीं किया अपितु सैन्य अस्त्र−शस्त्रों की आपूर्ति बढ़ाई। इन्हीं अस्त्र−शस्त्रों के बल पर यूक्रेन रूस के आगे टिका है। हाल ही में अमेरिका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने यूक्रेन को क्लस्टर बम सौंप दिए। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर यूक्रेन ने रूस के खिलाफ इस हथियार का इस्तेमाल किया तो वह भी इसका कड़ा जवाब देंगे। दरअसल क्लस्टर बम एक बेहद खतरनाक हथियार है। यह कई सारे छोटे-छोटे बमों का समूह होता है, जिन्हें एक खोल के अंदर रखा जाता है। इस बम को जमीन या हवा दोनों जगह से दागा जा सकता है। इस बम का प्रयोग किसी बड़े क्षेत्र को एक साथ खत्म करने के लिए किया जाता है। जब क्लस्टर बम को दागा जाता है तो यह जमीन पर पहुँचने से पहले ही खुल जाता है। इसके बाद इसके अंदर मौजूद बम अलग-अलग जगह बिखरकर उस पूरे इलाके को तबाह कर देते हैं। क्लस्टर बम को जब दागा जाता है तो इसमें मौजूद छोटे बमों में से 10 से 40 फीसदी बम फटते ही नहीं हैं। यह मिट्टी के नीचे दबे होते हैं। ऐसे में जब सालों बाद कोई आम आदमी उस जगह पर पहुंचता है तो इसकी चपेट में आ जाता है। अर्थात इन बमों से सालों तक तबाही होती रहती है।

साल 2008 में दुनिया के 120 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के एक सम्मेलन में क्लस्टर बम पर बैन लगाने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें फ्रांस और ब्रिटेन जैसे अमेरिका के सहयोगी देश भी हैं। हालांकि अमेरिका, रूस और यूक्रेन ने अब तक क्लस्टर बम पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। जहां यूक्रेन को नाटो देश सैन्य साजो−सामान और अन्य सहायता उपलब्ध करा रहे हैं, वहीं उन्होंने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया हुआ है। अंतराष्ट्रीय न्यायालय ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को यूक्रेन पर हमला करने का अपराधी घोषित किया हुआ है। ऐसी हालात में रूस के राष्ट्रपति पुतिन का झल्लाना स्वाभाविक है। इसी झल्लाहट में वह कुछ भी निर्णय ले सकते हैं। हाल में पुतिन के स्पेशल एडवाइजर और रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने यूक्रेन को परमाणु हमले की धमकी दी है। मेदवेदेव ने कहा है कि अगर यूक्रेन इसी तरह जवाबी हमले करता रहा और उसने नाटो के साथ मिलकर हमारी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की तो फिर हमें मजबूरी में न्यूक्लियर वेपन्स इस्तेमाल करने पड़ेंगे। रूस की तरफ से यूक्रेन पर एटमी हमले की धमकी पहली बार नहीं दी गई है। फरवरी और अप्रैल में खुद पुतिन कह चुके हैं कि अगर अमेरिका और नाटो यूक्रेन की मदद करते रहे तो रूस एटमी हथियारों समेत तमाम ऑप्शंस इस्तेमाल करेगा। इतना ही नहीं उसने अपने परमाणु शस्त्र तैनात भी कर दिए हैं।

मेदवेदेव ने कहा है कि जरा सोचिए, अगर हमारे सैनिकों को पीछे हटना पड़ा तो क्या होगा। यूक्रेन को अमेरिका और नाटो की तरफ से खुली मदद मिल रही है। अगर वो हमारी जमीन छीनने की कोशिश करते हैं या रूस के टुकड़े करने की कोशिश करते हैं तो हमें न्यूक्लियर वेपन्स इस्तेमाल करने ही होंगे। मेदवेदेव का बयान इस बात की पुष्टि करता है कि जंग अगर यूक्रेन के फेवर में जाने लगी तो रूस उस पर एटमी हमला करेगा। यहां ये जान लेना भी जरूरी है कि मेदवेदेव रूसी सिक्योरिटी काउंसिल के चेयरमैन भी हैं। मेदवेदेव ने कुछ महीने पहले अमेरिका को भी सीधी धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि अगर यूक्रेन से जंग में रूस की हार हुई तो अमेरिका में सिविल वॉर छिड़ जाएगा और इसके बाद न्यूक्लियर वॉर भी होगा। ऐसा कोई हथियार नहीं है, जो रूस के पास न हो। हमने अब तक खतरनाक हथियारों का यूज किया ही नहीं, रूस आज भी जंग को चंद दिनों में खत्म कर सकता है, लेकिन हम अपनी जिम्मेदारी समझते हैं। उधर हाल में यूक्रेन के प्रेसिडेंट जेलेंस्की ने कहा कि हमने जीत की डगर पर कदम बढ़ा दिए हैं। बहुत जल्द हमारी फौज उन इलाकों को हासिल कर लेगी, जिन पर रूस ने कब्जा किया है।

जुलाई महीने की शुरुआत से ही रूस आक्रामक है। पुतिन मानो खुद फ्रंटफुट पर अमेरिका और यूरोप के खिलाफ बैटिंग कर रहे हैं। रूस खुद को काला सागर अनाज समझौते से अलग कर चुका है। रूस 17 मई को इस समझौते को 60 दिनों के लिए बढ़ाने पर सहमत हुआ था। इस डील के एक हिस्से की वजह से रूस असंतुष्ट था और जुलाई में आखिरकार उसने इसके खत्म करने का ऐलान कर दिया। उधर यूक्रेन ने घोषणा कर दी कि वह रूस के बंदरगाहों से दूसरे देशों को हो रही तेल की आपूर्ति नहीं होने देगा।

बीते डेढ़ साल से कई बार समझौते की बात चली। रूस और यूक्रेन दोनों ने यही कहा है कि वो बिना शर्तों के शांति वार्ता के लिए बातचीत की मेज़ तक नहीं आएंगे। यूक्रेन का कहना है कि वो अपनी ज़मीन का कोई हिस्सा रूस को नहीं देगा। वहीं रूस का कहना है कि यूक्रेन को “नई ज़मीनी सच्चाई” को स्वीकार करना होगा। बीते साल फरवरी के आख़िर में रूस ने यूक्रेन के ख़िलाफ़ “विशेष सैन्य अभियान” छेड़ दिया था। बीते वक्त के दौरान रूस ने यूक्रेन के दक्षिण और पूर्व में कई हिस्सों पर कब्ज़ा कर लिया है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि यूक्रेन को लेकर शांति वार्ता के आइडिया को वो खारिज नहीं करते। सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहे रशिया-अफ़्रीका फ़ोरम के दौरान अफ़्रीकी देशों के नेताओं से बातचीत के बाद उन्होंने कहा कि चीन की तरफ की गई पेशकश या अफ़्रीका की तरफ से की जा रही कोशिश शांति वार्ता करने का आधार बन सकती हैं। लेकिन पुतिन ने ये भी कहा कि संघर्ष विराम तब तक नहीं हो सकता जब तक यूक्रेन की सेना उन पर हमले करना जारी रखेगी।

पुतिन ने कहा, “अगर वो हम पर हमला करेंगे तो हम जवाबी कार्रवाई क्यों नहीं करेंगे। कुछ लोग चाहते हैं कि शांति वार्ता की बात हो। हमने इससे इंकार नहीं किया है। आपको पता ही है कि मैंने पहले भी कहा है कि हम शांति वार्ता से इंकार नहीं करते।”

कुछ भी हो हालत बहुत नाजुक है। अपने को हारता देख पुतिन कुछ भी कर सकते हैं। परमाणु बम भी उसका ही एक विकल्प है। ऐसी हालत में पूरी दुनिया को यह प्रयास करना चाहिए कि महाविनाश की ओर जा रही यह लड़ाई किसी तरह से रुके। आज जबकि इस युद्ध को रुकवाने में संयुक्त राष्ट्र संघ पूरी तरह असफल रहा है। दोनों में से युद्धरत कोई भी देश उसकी बात मानने को तैयार नहीं, आज समझौते की बात रशिया-अफ़्रीका फ़ोरम कर रहा है। यह प्रयास सभी को करने चाहिए। पूरी दुनिया को करने चाहिए। भारत भी इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकता है, इसीलिए उसे युद्ध की समाप्ति के लिए प्रयास तुरंत शुरू कर देने चाहिए।

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