संसद का मानसून सत्र अब समाप्त हो गया है। पर भाजपा का ‘सड़क सत्र’ अब चलने वाला है, भाजपा के नेताओं में जोश है और वह परिस्थितियों को समझ गये लगते हैं कि अपने पक्ष में बने माहौल को भुना लिये जाने में ही समझदारी है। कहावत है कि संसार में कुछ लोगों को जब समय मिलता है तो समझ नही मिलती है और जब समझ मिलती है तो उस समय, समय नही मिलता। वे लोग सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें समय और समझ एक साथ मिल जाते हैं और वो उनका सदुपयोग अपने पक्ष में कर लेते हैं। इसी को लोग संयोग कहा करते हैं। भाजपा को कांग्रेस ने अवसर समय के रूप में उपलब्ध कराया है और भाजपा ने समय का सही प्रकार स्वागत किया है। उसने समझ लिया है कि लोगों ने इस सरकार की पूर्णाहुति देने का संकल्प तो ले लिया है लेकिन वह विकल्प तलाश रही है। इसलिए उसने बिना समय गंवाए और अपने भीतरी कलेशों को बड़ी सावधानी से समेटे हुए नेतृत्व के संकट को यूं दिखा दिया है कि जैसे यहां कुछ भी नही है और सब कुछ सामान्य है। अब भाजपा ने जैसी लड़ाई संसद में लड़ी, वैसी ही लड़ाई को सड़क पर लडऩे की घोषणा की है। भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज आदि सड़क पर लड़ाई लडऩे के मूड में नजर आते हैं। भाजपा के लिए ही नही बल्कि पूरे देश के लिए अब जरूरी हो गया है कि कांग्रेस की भ्रष्ट मनमोहन सरकार को जितनी जल्दी चलता कर दिया जाए उतना ही अच्छा होगा। पर भाजपा को इतने से ही संतुष्ट ना रहना होगा उसे अपना नेता नरेन्द्र मोदी को घोषित करना चाहिए, दूसरे अपनी नीतियों को स्पष्ट करना चाहिए। विशेषत: इस समय देश आर्थिक नीतियों के प्रति सशंकित है। अत: भाजपा को घोषित करना चाहिए कि वह देश के संसाधनों का दुरूपयोग और दोहन नही करेगी, अपितु अपनी कंपनियों में तैयार शुदा माल को ही निर्यात करेगी। कांग्रेस के शासनकाल में संसाधनों की जो खुली लूट मची है, उससे सिद्घ हो गया है कि देश के नेतृत्व को इस समय किसी भी कीमत पर देश की अस्मिता की चिंता नही है, मंत्री अपनी जेबें या तिजोरियां भरने में नही बल्कि सात पुश्तों के लिए कोठियां भरने पर लगे हैं। उन्हें ना तो गरीब की चिंता है और ना ही गरीबी की।
वैसे ऐसी स्थिति तभी आती है जब छोटे स्तर के लोग हमारे जनप्रतिनिधि बन जाया करते हैं, या बना दिये जाते हैं।हमारे अधिकांश राजनीतिक दल इस समय एक बीमारी से ग्रस्त हैं कि ये उन्हीं लोगों को विधानमंडलों में लाना चाहते हैं जो आड़े वक्त में इनके लिए रबर स्टांप का काम करें और संसद या राज्य विधानमंडलों में नही बोले जो इन्हें इनके नेता बता दें। संसद में बोलने की हर सांसद की नही होती। रबर स्टांप सांसद तभी सक्रिय होते हैं जब उन्हें पार्टी के नेता के लिए या पार्टी की नीतियों के लिए शोर मचाने का संकेत मिलता है, अन्यथा अधिकांश समय में ये लोग संसद में बैठे-बैठे ऊंघते हैं या सोते हैं।
भाजपा को चाहिए कि वह इस बात की पक्की व्यवस्था करे कि जो लोग राष्ट्रवादी हैं, ईमानदार हैं, हर प्रकार से देश की समस्याओं के प्रति गंभीर है और राष्ट्रदेव की आराधना ही जिनका जीवनोद्देश्य हैं उन्हें आगे लाकर पार्टी का सांसद या विधायक बनाए। राष्ट्रदेव की आराधना को ही भाजपा अपना सांस्कृतिक राष्ट्रवाद घोषित करे। राष्ट्रदेव की आराधना ही सच्ची राष्ट्रभक्ति है और यही वास्तविक हिंदुत्व भी हैं। भारत का जिस शानदार विरासत की वारिश भाजपा बनना चाहती है, उसके लिए वह अतीत की गलतियों से सबक ले और अपनी कथनी और करनी में साम्यता स्थापित करे। देश की जनता यदि कांग्रेस सरकार को हिंद महासागर में लने जाकर पटकने के लिए अपना निर्णय ले चुकी है तो भाजपा याद रखे कि यदि उसमें कांग्रेस की कार्बन कॉपी बनाने का प्रयास किया तो वह उसे प्रशांत महासागर में भी लेकर पटक सकती है इसलिए भाजपा को निरंतर सजग और सचेत रहना होगा।
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