127
प्रेम गली देखी नहीं, करें प्रेम की बात।
जिससे है परिचय नहीं, करते उसकी बात।।
करते उसकी बात, और ना तनिक लजाते।
जीवन करें बर्बाद , प्रेम को समझ न पाते।।
हांसी आती मुझे देख, इन जग वालों का प्रेम।
प्रेमदेवता बनके घूमें, पर समझ ना पाए प्रेम।।
128
मैंने पूछा री सड़क ! कहां है तेरा अंत ?
बोली ! मैं नहीं जानती, क्या होता है अंत ?
क्या होता है अंत ? मैंने लिया बड़ा संकल्प।
अंतिम छोर आने से पहले दूंगी नया विकल्प।।
सीख यही मानव मुझसे, काम किए जा ऊंचा।
सही जवाब मिल गया मुझे , जो था मैंने पूछा।।
129
चढ़ी जवानी देखकै , किए बड़े उत्पात।
चढ़ता सूरज आग से, करता उल्कापात।।
करता उल्कापात , कभी ना अच्छा लगता।
निन्दन को देख सूर्य, सांझ परे है ढलता।।
जग में आकर जो भी , करता है मनमानी।
व्यर्थ चली जाती है, उसकी चढ़ी जवानी।।
दिनांक : 14 जुलाई 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत