स्वामी दयानंद जी महाराज और आर्योद्देश्यरत्नमाला
60 वर्ष की अल्पायु में महर्षि दयानंद ने अनेकों पुस्तकें तथा ग्रंथों की रचना की।
एक एक पुस्तक को अलग-अलग पढ़ें तो आभास होता है कि प्रत्येक पुस्तक में ज्ञान की अमृत वर्षा की हुई है। हम पर बहुत ऋण है महर्षि दयानंद का।
लेकिन आज मैं आर्योंदेश्यरत्नमाला पर आपका ध्यान आकर्षित कराना चाहूंगा जो एक बहुत ही छोटी सी पुस्तक है ,परंतु रत्नभरी है।
आर्यों के उद्देश्यों की रत्नों की माला एक साथ गूंथकर प्रस्तुत कर दी गई है।
आर्योंदेश्यरत्नमाला के अनुसार कुछ बिंदुओं पर विचार करते हैं।
प्रश्न—आर्योंदेश्यरत्नमाला में महर्षि दयानंद ने धर्म की क्या परिभाषा की है?
उत्तर– जो परिभाषा दी है वह कहीं अन्यत्र नहीं मिलेगी।
यथा” जो कि प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से सुपरीक्षित होता है। जिसमें धर्माचरण दर्शनों के, वेदों के विपरीत नहीं होता। जिसमें विरोध नहीं होता। जैसा प्रत्यक्ष प्रमाण कहता है कि अग्नि गर्म है वही अनुमान प्रमाण भी कहेगा। तब समझो वास्तविकता है। इसके अतिरिक्त कर्म जो वेदों के विरुद्ध हो वह अधर्म है। यह धर्म ही चारों वेदों में ईश्वर की आज्ञा है।
प्रश्न –वेद क्या है?
उत्तर—वेद ईश्वर का संविधान है ,क्योंकि वेद ईश्वरीय पुस्तक है, क्योंकि वेद अपौरुषेय हैं। वेदोक्त होने से ही वही धर्म है।
प्रश्न -न्याय दर्शन के अनुसार प्रमाण कितने प्रकार के होते हैं।
आर्योंदेश्यरत्नमाला में न्याय दर्शन के निम्न 8 प्रमाणों का संक्षेप में उल्लेख महर्षि दयानंद ने किया है।
1 प्रत्यक्ष प्रमाण , 2 अनुमान प्रमाण, 3 उपमान प्रमाण 4 शब्द प्रमाण 5 इतिहास प्रमाण 6 अर्थापत्ति प्रमाण 7 संभव प्रमाण 8 अभाव प्रमाण।
1—प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते हैं?
उत्तर–जो इंद्रियों से प्रत्यक्ष प्राप्त ज्ञान है जिसमें भ्रांति अथवा संशय न हो। वह प्रत्यक्ष प्रमाण है।
2—प्रश्न—अनुमान प्रमाण किसे कहते हैं?
उत्तर–एक वस्तु को देखकर दूसरी वस्तु की उपस्थिति का भान कर लेना अथवा मान लेना अनुमान प्रमाण है। जैसे कि धुआं के उठने पर अग्नि की उपस्थिति मान लेना।
3—प्रश्न —उपमान प्रमाण किसे कहते हैं?
उत्तर– किसी वस्तु के विषय में उपमा देकर बताना उपमान प्रमाण कहा जाता है
4- —प्रश्न शब्द प्रमाण किसे कहते हैं?
उत्तर—किसी सत्यवादी आप्त पुरुष का वचन शब्द प्रमाण कहा जाता है। जैसे ईश्वर तथा ऋषि आप्त होते हैं। आप्त का अर्थ कुशल व्यक्ति से है, जो अपनी कला में निष्णात है। जैसे हलवाई द्वारा मिठाई बनाने के विषय में उसको आप्त होना कहा जाता है। जैसे दर्जी को कपड़े सिलने में आप्तता अर्थात सिद्धहस्तता या, विशेष पूर्ण ज्ञान ( महारत )हासिल होती है।
5 प्रश्न —इतिहास प्रमाण क्या होता है?
उत्तर –जो इति- ह -आस अर्थात ‘इति’ मायने ऐसा , ‘ह ‘ मायने निश्चित रूप से , ‘आस’ मायने था।
जैसे रामचंद्र जी ,कृष्ण जी को इतिहास में हम पढ़ते हैं। जैसे हनुमान जी को बलशाली मानते हैं। भीम को बलि होने का पढ़ते हैं।उनके होने के विषय में ज्ञान प्राप्त करते हैं ।इतिहास वहां प्रमाण है।
6 —अर्थापत्ती क्या है?
उत्तर,–एक बात के कहने से दूसरी बात समझ ली जाए ।उसका अर्थ लगा लिया जाए ।जैसे कोई व्यक्ति कहता है कि मुझे अभी चाय नहीं पीनी है। इसमें अर्थ यह है कि वह व्यक्ति अभी नहीं लेकिन कुछ देर बाद चाय पी लेगा। इसका कदापि तात्पर्य ही नहीं है कि मैं कभी भी चाय नहीं पिएगा।
7 प्रश्न— संभव प्रमाण क्या है?
उत्तर,—सत्य बात जो संभव है। सृष्टि नियम से, गणित से जो संभव है ,वहीं संभव प्रमाण हैं।
जैसे कुंती को कान से करण पुत्र की उत्पत्ति तथा मछली के उदर से मच्छोदरी को संतान की उत्पत्ति नहीं हो सकती, पुत्र प्राप्ति नहीं हो सकती। यह सब असंभव
है और सृष्टि नियम के विपरीत है।
8– अभाव प्रमाण किसे कहते हैं?
जो कोई वस्तु नहीं होती है ।जैसे मटके में पानी नहीं होना, किसी ने मटके में पानी देखना चाहा,मटके में पानी देखा तो उसमें पानी नहीं था, यह पानी नहीं होने का वचन बोलना अभाव प्रमाण है।
प्रश्न —ईश्वर निर्गुण है अथवा सगुण है या दोनों हैं, अथवा दोनों में से कोई सा नहीं है?
उत्तर–ईश्वर निर्गुण भी है और सगुण भी है अर्थात दोनों गुण उसके अंदर हैं।
इसलिए निर्गुण, सगुण दोनों होने का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में भी ईश्वर के नामों की चर्चा करते समय किया है।
परंतु आर्योंदेश्यरत्नमाला नामक पुस्तक में फिर ईश्वर को निर्गुण तथा सगुण बताया है।
प्रश्न —सगुण किसे कहते हैं–
उत्तर—अच्छाई को सगुण कहते हैं ।जैसे किसी व्यक्ति के विषय में कहा जाता है कि वह नियम का पालन करता है। ऐसे ही ईश्वर सृष्टि की रचना करते समय अपने गुणों के अनुसार जैसे पहले सृष्टि बनाई थी उसी के अनुसार दूसरी बार सृष्टि बनाता है। बार-बार विनष्ट एवं सृष्टि रचना करता है ।
लेकिन बुराई को अवगुण कहते हैं जैसे किसी व्यक्ति के विषय में कहा जाता है कि वह बड़ा क्रोधी है ।छली अथवा कपटी है।
शास्त्रों के अनुसार गुण का तात्पर्य अवगुण ,सद्गुण और विशेष गुण होता है।
प्रश्न—निर्गुण उपासना क्या है?
उत्तर—निम्न गुणों अर्थात विशेषताऐं रूप, रस ,गंध, शब्द, स्पर्श प्रकृति के गुणों तथा जीव के गुणों से रहित मानकर जब उपासना करते हैं तो उस प्रभु की निर्गुण उपासना कही जाती है।
निर्गुण उपासना के और भी निम्न उदाहरण हैं।
जैसे ईश्वर अल्पज्ञ नहीं हैं।
ईश्वर का रूप नहीं है।
ईश्वर का शब्द नहीं है।
ईश्वर का रंग नहीं है।
प्रश्न–सगुण उपासना क्या है?
उत्तर–जब ईश्वर में गुणों को विद्यमान एवं युक्त मानकर ईश्वर की उपासना करते हैं तो वह सगुण उपासना कही जाती है। जैसे कि ईश्वर में जो गुण हैं वही मानकर हां करेंगे तो सगुण उपासना है। दूसरे उदाहरण में बल ,दया, परोपकार, सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वनियंता, सर्वांतर्यामी आदि जो ईश्वर के गुण हैं वह सब उसमें मानकर जब उसकी उपासना की जाती है तो यह सगुण उपासना है।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र
चलभाष98118 38317