अंग्रेजों के शासन से मुक्ति के लिए जिन स्वदेश प्रेमी राष्ट्रभक्तों ने सतत संघर्ष किया-उनमें महात्मा गांधी, महामना पं. मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन की श्रंखला में ही एक विभूति थे लाला हरदेवसहाय। इस महान विभूति ने अपना सर्वस्व स्वदेश, स्वदेशी व स्वाधीनता के लिए जीवन अर्पित कर भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में एक नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ा था। उन्होंने कई बार सत्याग्रह कर जेल यातनाएं सहन की। गांवों में शिक्षा का प्रचार प्रसार किया।
हरियाणा के हिसार जिले के सातरोड खुर्द गांव में 26 नवंबर 1892 को लाला मुसद्दीलाल के पुत्र के रूप में जन्में लाला हरदेवसहाय युवावस्था में स्वाधीनता की लहर से प्रभावित हुए। 1921 के आंदोलन में सत्याग्रह करते हुए पकड़ कर मियांवली पंजाब जेल भेजे गये। आर्य समाजी सन्यासी स्वामी श्रद्घानंद जी ने उन्हें प्रेरणा देते हुए कहा जब तक गांवों के लड़के लड़कियां अंग्रेजी की जगह हिंदी नही पढेंगे, उनके हृदय में भक्ति व स्वदेश निष्ठा की भावना पैदा नही की जा सकती, इसलिए सबसे पहले गांवों में हिंदी स्कूल खोलने के काम में लगो। गौवंश भारत की संस्कृति व अर्थव्यवस्था का प्रतीक है उसकी हत्या न होने पाए ऐसी भावना पैदा करना जरूरी है।
जेल से आते ही उन्होंने गांव गांव में स्कूल खोलने का संकल्प लिया। उन्होंने हिंसार क्षेत्र के गांवों में 66 विद्यालयों की स्थापना कर छात्रों को स्वदेशी निष्ठा के संस्कार दिलाए। हरदेवसहाय ने 1929 में सातरोद गांव लाला लाजपतराय शिल्पशाला की स्थापना की जिसमें ग्रामीणों को सूत की कताई व खादी व कालीनों की बुनाई का प्रशिक्षण दिया जाता था। शिल्पकाला में इतनी अच्छी खादी व अन्य वस्तुएं उत्पादित की जाने लगीं कि उसकी ख्याति दूर दूर तक पहुंची। नेताजी सुभाषचंद्र बोस 19 जनवरी 1946 को नेहरू जी ने भी सातरोद आकर लाला हरदेव सहाय द्वारा किये गये इस अनूठे प्रयोग की सराहना की। हिंदू महासभा के वरिष्ठ नेता डॉ बी.एस. मुंजे, हनुमान प्रसाद पोद्दार आदि विभूतियों ने भी उनकी सराहना की।
लाला हरदेव सहाय ने शिक्षा के प्रचार प्रसार व स्वदेशी वस्तुओं का महत्व प्रतिपादित करने के साथ साथ गौसंवर्धन व गौरक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। जब हिसार क्षेत्र में अकाल पड़ा तो उन्होंने कार्यकर्ताओं के साथ गांव गांव पहुंचकर पीडि़तों की सेवा की। उनके प्रयास से लाखों गांयों व मनुष्यों के प्राण बचे।
विलक्षण विभूति लाला हरदेव सहाय पुस्तक में लेखक पत्रकार, शिवकुमार गोयल ने इस राष्टï्रभक्त विभूति द्वारा गौरक्षा के लिए जीवन पर्यन्त (30 सितंबर 1962 को देहांत) किये गये प्रयासों, संघर्षों का रोचक ढंग से वर्णन किया है। लाला जी कांग्रेस के दो मुंह चेहरे के घोर विरोधी थे। वे हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे। हिन्दू महासभा के नेता वीर सावरकर भाई परमानंद जी के वे परमभक्त थे। लालाजी ने गाय ही क्यों पुस्तक लिखी जिसकी भूमिका राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने लिखी। उन्होंने गौवंश के विषय में अनेक पुस्तकें लिखीं। मासिक गौधन पत्रिका का कई दशकों तक उन्होंने संपादन किया। ग्रामीण परिवेश में जन्में व पले पढ़े इस महान राष्ट्रभक्त की जीवनी से सादगी, सरलता व सात्विकता का जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।
नोट :- लाला हरदेव सहाय जी पर एक शोधात्मक ग्रंथ इस लेखक स्वनाम धन्य परम विद्वान शिव कुमार गोयल जी द्वारा ‘विलक्षण विभूति लाला हरदेव सहाय’ लिखा गया है। जो कि भारत गौ सेवक समाज-3, सदर थाना रोड दिल्ली-110006 द्वारा प्रकाशित किया गया है जिसकी पृष्ठ संख्या 160 और मूल्य 100 रूपये है।
लाला जी कांग्रेस के दोमुंहे चेहरे के घोर विरोधी थे। वे हिंदुत्व के प्रबल समर्थक थे। हिंदू महासभा के नेता वीर सावरकर और देवता स्वरूप भाई परमानंद जी के परमभक्त थे। उन जैसी महान विभूति पर कलम चलाकर लेखक ने आज की युवा पीढ़ी पर सचमुच एक उपकार किया है। लेखक के पिताश्री भक्त रामशरण दास जी के नाम से भला कौन परिचित नही है? उन्हीं की पताका को लेकर एक योग्य पिता के योग्य पुत्र होने का प्रमाण लेखक की उपरोक्त पुस्तक है। साहित्य जगत में लेखक का नाम बहुत अग्रणीय है। -राजकुमार आर्य (सहसंपादक)