गाजियाबाद के भागीरथ पब्लिक स्कूल में “परिवार की समस्याएं व समाधान” विषय पर हुई विचार गोष्ठी संपन्न
गाजियाबाद ( अजय कुमार आर्य /अमन आर्य)। यहां स्थित भागीरथ पब्लिक स्कूल में परिवार की समस्या व समाधान विषय पर विचार गोष्ठी संपन्न हुई। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे प्रोफेसर डॉ सुरेन्द्र पाठक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान समय में अनेक प्रकार की विसंगतियां , कुंठाएं और तनाव के चलते परिवारों की स्थिति दिन प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है। उन्होंने कहा कि संबंधों के प्रति उदासीनता और नीरसता का मनोभाव इस प्रकार की कुंठा ,तनाव और दुष्चिंताओं को निरंतर बढ़ाता जा रहा है। ग्लोबल पीस फाउंडेशन इंडिया के सलाहकार के रूप में काम कर रहे डॉ सुरेंद्र पाठक ने कहा कि इस समय हमें परिवारों की स्थिति को सुधारने के लिए विशेष कार्य करना होगा।
उन्होंने कहा कि आज की परिस्थितियों और परिवेश में वसुधैव कुटुंबकम का आदर्श केवल आकांक्षा और कामनाओं में बनकर रह गया है। इसे व्यवहारिक स्वरूप देना समय की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि वर्तमान समय में एक ही परिवार के नीचे रहकर भी लोग एक दूसरे से बात करना उचित नहीं मान रहे हैं। जिससे भारत की सांस्कृतिक विरासत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली परिवार जैसी संस्था नष्ट होती जा रही है। इस संबंध में उन्होंने अपनी व्यापक कार्ययोजना पर भी प्रकाश डाला। अपने विस्तृत अध्ययन और शोध को स्पष्ट करते हुए डॉक्टर पाठक ने कहा कि हमें इस समय संबंधों में तनाव पैदा करने वाले सूक्ष्म तत्वों को खोज खोज कर उनका उपचार करने की आवश्यकता है। ज्ञात रहे कि श्री पाठक एक योद्धा की भांति इस क्षेत्र में संघर्ष कर रहे हैं। उनके अथक गंभीर प्रयास भविष्य में कितना रंग लाते हैं यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, परंतु अपने लक्ष्य के प्रति उनका समर्पण का भाव निश्चित रूप से प्रशंसनीय है।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता डॉ राकेश कुमार आर्य ने पंचतंत्र के एक श्लोक की व्याख्या करते हुए कहा कि यह मेरा है यह तेरा है ,यह एक संकीर्ण मानसिकता को प्रकट करने वाली सोच है। उदार चरित्र वाले लोग तो सारी वसुधा को ही अपना परिवार मानते हैं। श्री आर्य ने कहा कि जब संपूर्ण वसुधा को ही परिवार मानने का भाव विकसित हो जाता है तो व्यक्ति और भी अधिक गंभीरता और संस्कारशीलता के साथ कार्य करता है।
संस्कार आधारित शिक्षा प्रणाली पर जोर देते हुए डॉ आर्य ने कहा कि पिता से हमें धैर्य, माता से क्षमा, पत्नी से शांति, मित्र से सत्य, बहन से दया और भाई से संयम की शिक्षा लेनी चाहिए। जिन परिवारों में इस प्रकार के दिव्य भाव उत्पन्न हो जाते हैं वहां शांति अपने आप ही विकसित हो जाती है और वह परिवार स्वर्ग के समान हो जाता है। इसलिए हमें धर्म की गंभीरता को समझ कर उसके साथ जुड़ कर कर्तव्य कर्म पर ध्यान देना चाहिए ।यही गीता का निष्काम कर्म योग है। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण जी ने कहा है कि भूमंडल पर धर्म की व्यवस्था बनी रहे इसलिए मैं बार-बार जन्म लेना उचित मानूंगा। वास्तव में श्री कृष्ण जी का लोक सेवक का यह भाव बहुत अनुकरणीय है । हमें धरती को धर्म धरा बनाए रखने के लिए अपने आपको श्री कृष्ण जी के इस लोक सेवक के स्वरूप के साथ संबंधित करना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में ही उपस्थित रही सुश्री आशा मोहिनी ( अध्यक्षा संभावना संगठन ) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित कर के हम परिवारों की बिगड़ती हुई व्यवस्था को सुधार सकते हैं। उन्होंने इस बात पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि इस समय माता पिता और संतानों के बीच में एक शमशान की सी शांति पसर गई है। इस प्रकार के ठंडे और पूर्णतया हताशा को प्रकट करने वाले व्यवहार से आज उबरने की आवश्यकता है।
पूर्व मंत्री बालेश्वर त्यागी ने अपने संबोधन में कहा कि भारत एक ऐसा देश है जिसने संपूर्ण वसुधा को परिवार मानने का उदात्त भाव प्रदान किया है। आज उसी उदात्त भाव को प्रदान करने वाली शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता है।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे श्री कृष्ण कुमार दीक्षित ने अपने विद्वता पूर्ण संबोधन में कहा कि परिवार की विरासत सबसे बड़ी विरासत होती है। माता-पिता के दिए गए संस्कार जीवन भर काम आते हैं। यदि आज इस विरासत में घुन लग रहा है तो यह निश्चय ही हम सबके लिए चिंता और चिंतन का विषय है। उन्होंने कहा कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में गंभीर कमियां हैं। जिनको दूर करने की आवश्यकता है । तभी हम वास्तव में आदर्श और संस्कार युक्त समाज की स्थापना करने में सफल होंगे। उन्होंने कहा कि परिवारों में तेजी से बढ़ती तनाव की स्थिति हमारी सांस्कृतिक विरासत को तेजी से खा रही है। इसे पुनर्स्थापित करने के लिए हमें अपने शास्त्रों की नैतिक शिक्षा को बालकों के पाठ्यक्रम में लगाना चाहिए।
कार्यक्रम का समापन करते हुए श्री राजेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि मनु के अनुसार वेद का अभ्यास, तप, ज्ञान, इंद्रियों का निग्रह, धर्मक्रिया तथा आत्मा का मनन आदि ये सत्वगुण के लक्षण बताए हैं। तम का प्रधान लक्षण ‘काम’, रज का प्रधान लक्षण ‘अर्थ’ कहलाता है तथा सत्व का प्रधान लक्षण ‘धर्म’ हैं। इनमें सत्व या धर्म सबसे श्रेष्ठ हैं। इसके बाद क्रमशः रज (अर्थ) तथा तम (काम) का स्थान हैं, इसलिए मनुष्य को अधिकाधिक उन कर्मों को करना चाहिए, जो कि धर्म के अनुकूल हैं या जो सत्वगुण वाले हैं, क्योंकि मनु के अनुसार सात्विक कर्म वाले को देवत्व गति प्राप्ति होती हैं जबकि राजस और तामस कर्म करने वाले को क्रमशः मनुष्यत्व गति और निकृष्ट गति या तिर्यक वृक्ष, पशु, पक्षी आदि की योनि प्राप्त होती हैं। उन्होंने कहा कि मनु महाराज ने प्रत्येक वर्ण के लिए कर्तव्य कर्म निश्चित किए हैं माता-पिता के संतान के प्रति और संतान के माता पिता के प्रति कर्तव्य कर्म अर्थात धर्म का निश्चय किया है। यदि आज उनको सब ईमानदारी से पालन करें तो सारी व्यवस्था सुव्यवस्थित हो सकती है।
बहुत अच्छी खबर लिखी है
मान्यवर पाठक साहब हार्दिक धन्यवाद