शिव का तांडव*
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Dr DK Garg
पौराणिक मान्यता :
महादेव को जब क्रोध आता है, तो वे तांडव नृत्य करते है, तांडव नृत्य जब महादेव करते हैं, उस समय उनकी आंखें क्रोध से लाल, हो जाती है, पूरा ब्रह्मांड कांपने लगता है, उस समय किसी की क्या मजाल जो उनके सामने आ सके।
अन्य मान्यता के अनुसार जब शिव क्रोधित होते हैं तब बिना डमरू के तांडव नृत्य करते है और इसमे इनका तीसरा नेत्र खुल जाता है और जो भी सामने होता हैं भस्म हो जाता हैं । दुसरी स्थित मे जब तांडव नृत्य करते है तब वो डमरू भी बजाते हैं तब प्राकृतिक आनंद की बारिश होती हैं।
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार माता सती भगवान शिव के साथ अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित हवन में हिस्सा लेने आई थीं. वहां भोलेनाथ का अपमान होता देख, माता सती ने अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया. इस घटना से महादेव इतने क्रोधित हो गए कि उन्होंने रुद्र तांडव शुरू कर दिया. उस तांडव के चलते पूरी सृष्टि पर प्रलय जैसी परिस्थिति उत्पन्न हो गई.
विश्लेषण: जैसा आपको स्पष्ट है की शिव नाम ईश्वर का है जो कल्याणकारी है और सभी का रक्षक है। ईश्वरीय नियम अटल है वे अच्छे और बुरे का परिणाम देते है और किसी की पाप को छमा नहीं करते और ना ही किसी को कर्म से मुक्त करते है जब तक की उसके कर्म मोक्ष्य लायक ना हो।
मनुष्य को जीवन यापन करने और कर्म करने में सहायता देने के लिए ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण किया लेकिन प्रकृति से छेड़खनी करने का अधिकार नहीं दिया ,हमारे वेद शाश्त्रो में प्रकृति के सदुपयोग और उसके रखरखाव की बात कही है और साम वेद में आयुर्वेद चिकित्सा का उल्लेख प्रचुर मात्रा में है। इसके अतिरिक्त प्रकृति को बनाये रखने के लिए यज्ञ की महत्ता समझायी गयी है , इसका पहला लाभ देवपूजा ही बताया गया है।
शतपथ ब्राह्मण में यज्ञो वै श्रेष्ठतम कर्मः अर्थात यज्ञ संसार का श्रेष्ठतम् कर्म है यज्ञ की महिमा, वेद, उपनिषद,ब्राह्मण ग्रन्थ,मनुस्मृति, गीता आदि सभी शास्त्रों में प्रतिपादित की गई है। अथर्ववेद में कहा गया है . उतिष्ठ ब्रह्मणस्वते देवान यज्ञेन बोधय। आयु प्राण प्रजां पशुं कीर्ति यजमानं च वर्धय।
हे ज्ञानी उठ ! यज्ञ के द्वारा अपने अन्दर देवभावों को जगा दो। अपनी आयु,प्राण,प्रजा,पशु, कीर्ति,सब यज्ञ करने वालों को बढ़ा दो। इसी प्रकार ऐतरेय ब्राह्मण में भी उल्लेख है कि यज्ञोऽपि तस्मै जनतायै कल्पते अर्थात जनता के सुख के लिए यज्ञ होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में कथन है कि यज्ञ शिष्टाशिनः सन्तो मुण्यते सर्व किल्विषैः अर्थात यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेष्ठ पुरुष पापों से छूट जाते हैं।
जैसा की आप जानते है की ईश्वरीय नियमो की अवहेलना का परिणाम मनुष्य को भयंकर बीमारियों ,अनायास मृत्यु के रूप में भुगतना पड़ता है इनको देविक शूल कहते है । इसी तरह प्रकृति से छेड़खानी के दुष्परिणाम बड़े भयंकर होते है जैसे की बाड़ , सूखा, ,भूकंप ,तूफान आदि इनको अधिभौतिक शूल कहा गया है।
ईश्वर बार बार हमको अपने डमरू की आवाज से जगह जकार्ता रहता है ,फिर भी हम नहीं मानते।
इसका परिणाम भुगतना पड़ता है,जैसे की भयंकर तूफान , नदियों में उफान,बाढ़, जमीन पहाड़ को हिलाकर बहुमंजिला भवन एक क्षण में गिरा देने वाले भूकंप आदि आते है तब मनुष्य पूरी तरह असहाय हो जाता है और मूकदर्शक बना देखता है। इस विषम परिस्थिति में उसको केवल ईश्वर की याद आती है तब ऐसा लगने लगता है की ईश्वर ने ये क्रोध में ये तांडव किया है।
इस स्थिति को सटीक रूप में समझाने के लिए नाटककारों और कवियो ने इस विषम परिस्थिति को शिव ने तांडव की उपमा दी है।
कोई अन्य अर्थ ना निकाले।