तथाकथित अंबेडकरवादी भाषाविद् और इनकी जमात का मानना है कि बुद्ध के पहले वेद नहीं थे। कारण ? अशोक के शिलालेखों में कहीं भी संस्कृत नहीं है। इसके बाद ही संस्कृत लिपिबध्द हुयी और वेद लिखे गये।अनेक उत्साही अंबेडकरवादी तो यहां तक कह जाते हैं कि वेद सर्वप्रथम पाली में लिखे गये और ततपश्चात ब्राह्मणों ने इसकी संस्कृत में नकल की और रामायण , महाभारत आदि सभी ग्रंथ बुद्ध के बाद ही लिखे गये। हालांकि इनकी प्रत्येक बात का खंडन किया जा चुका है।
जहां एकतरफ बौध्द धर्म के ग्रंथ त्रिपिटक के सुत्तपिटक, दीघनिकाय, के तीसरे सुत्त अम्बष्ठ सुत्त में स्पष्ट रूप से निघंटू, कल्पसूत्र, घनपाठ, जटापाठ, निरुक्त, वैयाकरण, ज्योतिष शास्त्र आदि का उल्लेख है, वहीं बौध्द धर्म के दूसरे महत्वपूर्ण ग्रंथ ललितविस्तर में भी वर्णन है कि जब महामाया ने स्वप्न में.छ: दांत वाले श्वेत हाथी को अपने गर्भ में प्रवेश कर दायें तरफ बैठे देखा तो दूसरे दिन अपने पति राजा शुद्धोधन से कहा,
” साधु नृपति शीघ्रं ब्राह्मणानानयास्मिन्
वेदसुपिनपाठाये गृहेषू विधिज्ञा ।
सुपिनु मम हि येमं व्याकरी तत्वयुक्तं
किमिद मम भवेया श्रेयु पापं कुलस्य।।163।।”
हे राजन, वेदों तथा स्वप्नशास्त्रों एवं ग्रहों की गतिविधि में कुशल ब्राह्मणों को यह़ां शीघ्र सत्कार के साथ यहां बुलाओ, जो मेरे इस स्वप्न का ठीक-ठीक फल बतलायें कि इससे मेरे कुल का शुभ होगा अथवा अशुभ।
यह सुनकर राजा ने उसी क्षण वेदज्ञ (एवं स्वप्न) शास्त्र-पाठी ब्राह्मणों को बुलवाया। माया(देवी) ब्राह्मणों के सामनें खड़ी होकर बोलीं- मैंने यहां स्वप्न देखा है, उसका लक्षण सुनाओ।
“( ब्राह्मणों से स्वप्न परिपृच्छा, मालिनी छन्द )
वचनमिमु शुणित्वा पार्थिवस्तत्क्षणेन
ब्राह्मण कृत वेदनानयन शास्त्रपाठान ।
माय पुरत स्थित्वा ब्राह्मणानामवोचत्
सुपिन मयिक दृष्टस्तस्य हेत़ुं श्रृणोथ।।164।।”
स्वप्न के लक्षण सुनकर ब्राह्मणों को यथोचित दक्षिणा देकर विदा किया गया। यही घटना डा. अंबेडकर अपनी पुस्तक ‘बुध्द और उसका धम्म’ के प्रथम कांड, जन्म से प्रवज्या, में लिखते हुये कहते हैं कि,
” वो आठ ब्राह्मण थे, राम, ध्वज, लक्ष्मण, मंत्री, कोडञ्च, भोज, सुयाम और सुदत्त। और ये ही आठ ब्राह्मण सिध्दार्थ के प्रथम आचार्य हुये।”
डा. अंबेडकर इसी अध्याय में आगे लिखते हैं,
” जो कुछ वे जानते थे, जब वे सब सिखा चुके, तब शुध्दोधन ने उदिच्च देश के उच्च कुलोत्पन्न प्रथम कोटि के भाषाविद् तथा वैयाकरण, वेद, वेदांग तथा उपनिषदों के पूरे जानकार सब्बमित्त को बुला भेजा।यह उसका दूसरा आचार्य हुआ।उसकी अधीनता में सिध्दार्थ ने उस समय के सभी दर्शन शास्त्रों पर अपना अधिकार कर लिया। ”
यहां तक स्पष्ट हो जाता है कि बौध्द धर्म के पहले ही वेद थे जिनका अध्ययन सिध्दार्थ ने महल छोडने से पहले ही कर लिया था।
एक अत्यंत रोचक तथ्य और ! बुध्द ने ना केवल बचपन में ही वेदादि शास्त्रों का अध्ययन किया था बल्कि बारह वर्ष बोधिसत्व होकर तुषित लोक में अपना आखिरी जन्म बुध के रूप में लेने से पूर्व उचित गर्भ(महामाया) की प्रतीक्षा भी की थी। बौध्द धर्म ग्रंथ ललितविस्तर के तृतीय अध्याय ‘कुलशुध्दिपरिवर्त’ में इस अवधि में भी वेद का वर्णन है,
” हे भिक्षुओं, इसप्रकार (चर्चा फैल गयी कि) बारह वर्षों में बोधिसत्व माता (महामाया) की कोख में चले जायेंगे। तब शुध्दवासकायिक देवपुत्र जंबूद्वीप में आकर दिव्य वर्ण अर्थात् देवताओं जैसा रूप छिपाकर ब्राह्मणों के भेष में ब्राह्मणों को वेद पढ़ाते थे। ”
ललितविस्तर के ही अध्याय 5, प्रचलपरिवर्त, में जब तुषित लोक के देवपुत्रों को ज्ञात हुआ कि बोधिसत्व महामाया के गर्भ में चले जायेंगे तब,
” वहां ब्रह्मकायिक देवपुत्र जिसका नाम उग्रतेजा था ने यूं कहा,
‘ जैसा ब्राह्मणों के ब्रह्ममय वेद शास्त्रों में आता है, उसप्रकार के रूप से बोधिसत्व को मां की कोख में प्रवेश करना चाहिये।…वेदशास्त्र तत्वज्ञ ब्राह्मण से ऐसे रूप को सुनकर (अथवा जानकर) बत्तीस (महापुरुष) लक्षणों से युक्त ( बोधिसत्व) होंगे – यह भविष्यवाणी (देवताओं ने) की।”
क्या अब भी बामसेफी वेद को बुध्द के बाद का कहने की धृष्टता करेंगे ?
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