गंंगा शिव की पुत्री*
Dr DK Garg
पौराणिकमान्यताये :एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल का जल गंगा नामक युवती के रूप में प्रकट हुआ था।
एक अन्य (वैष्णव) कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने विष्णुजी के चरणों को आदर सहित धोया और उस जल को अपने कमंडल में एकत्र कर लिया।
एक तीसरी मान्यता के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री हैं, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी हैं।
विश्लेष्ण— गंगा नदी के उदगम को लेकर और इसके विषय में अनेको पौराणिक कथाये प्रचलित है।जिसके जो मन में आया लिख दिया,और पौराणिक कथाकार तो और भी आगे है वे संगीत की धुन के साथ इस तरह से वर्णन करते है की जैसे उनके सामने गंगा नदी का उदय हुआ हो। कोई गंगा नदी को एक अप्सरा के रूप में वर्णित करता है कि ये देव-लोक में विचरण करती हैं। कहीं उन्हें आकाश-गंंगा के रूप में चिन्हित किया गया है, जो विष्णु के पद-प्रहार से नदी के रूप में धरती पर अवतरित होती हैं। कहीं उन्हें ब्रह्मा के कमंडल से निकली हुई माना गया है और कहीं गंगा को और शांतनु की पत्नी गंगा कहा है।
गंगा नदी ऊंची पर्वतमाला को पार करती हुई नीचे जमीन पर आती है ,ये साहसिक कार्य भगीरथ नाम के राजा के अथक प्रयासों से संभव हुआ,उन्होंने ही पहाड़ों के मध्य चट्टानों को कटकर पानी का बहाव सुगम बनाया ।इसलिए गंगा को भगीरथी भी कहा जाता है; और दुस्साहसी प्रयासों तथा दुष्कर उपलब्धियों का वर्णन करने के लिए “भगीरथी प्रयत्न” शब्द का प्रयोग किया जाता है
गंगा एक जड़ पदार्थ है ,जिसमे जल ही जल है और इस जल से सिंचाई के अतिरिक्त पीने का पानी मिलता है,अन्यथा धरती पर तेजी से खत्म होते जल स्तर के कारण मानव का जीना मुश्किल हो जाता।
गंगा जल में शुद्धता सबसे अधिक होती है।इस आलोक में गंगा जल को अमृत की संज्ञा दी गई है और इसको प्रदान करने वाली गंगा को मां की उपमा दी गई है जो मां की भांति अपने जल से हमारा पालन करती है।इसलिए भाषा की दृष्टि से कवि और साहित्यकारों ने इसे इस्त्री लिंग से संबोधित किया है।जिसने अलंकार की भाषा का प्रयोग किया गया है।
शिव कहते है पर्वत को और इन सबके निर्माणकर्ता ईश्वर को महाशिव कहा है। इसलिए वेद ,उपनिषद आदि धर्म ग्रंथो में ईश्वर को सृष्टि का रचयिता,पिता , माता,बंधु और प्रजापति आदि भी कहा गया है।
गंगा नदी और ये शुद्ध जल ईश्वर की अनुपम कृपा है इसीलिए गंगा हो
कवियों और साहित्यकारों ने गंगा नदी को शिव की पुत्री ,गंगा मां, अप्सरा आदि की उपमा देकर अलंकार की भाषा का प्रयोग किया है।
प्रश्न:1.गंगा यदि शिव की पुत्री है तो गंगाजल शिव लिंग पर क्यों डालते है?
प्रश्न 2.पुत्र या पुत्री के प्रजनन की ईश्वर ने प्रक्रिया बनाई है। ये बात भौतिक रूप से दिखने वाली गंगा के विषय में बिलकुल भी सत्य नही हो सकती।
प्रश्न 3.गंगा नहाने से मोक्ष की बात झूठी और असत्य है।यदि मोक्ष मिलना इतनी आसान बात होती तो सभी लोग गंगा में स्नान कर मोक्ष पा लेते। और जो जंतु गंगा में ही पलते बढ़ते है उनको तो मोक्ष की गारंटी हो जाती।
ये सभी बाते पाखंड और अंधविश्वास की श्रेणी में आती है।
गंंगा एक ही हैं और कथाएं अनेक है। इसलिए गंगा शब्द का आध्यात्मिक अर्थ भी समझना चाहिए।ये कथाएं गप्प और मनोरंजन कथाएं हैं,इसलिए इनसे दूर रहकर वेद,उपनिषद ,दर्शन शास्त्रों का अध्ययन करके अपनी बुद्धि का विकास करना जरूरी है।
गंगा का एक अन्य आध्यात्मिक भावार्थ— जीवात्मा ही गंगा है
इस मानव शरीर में तीन नाड़ियाँ- इड़ा, पिंगला, सुषुम्णा अथवा गंगा, यमुना, सरस्वती नाम से प्रसिद्ध हैं। जब मानव योगाभ्यासी बनकर मूलाधार में ध्यान करके रमण करता हैं। तब उसको मृत्युलोक गंगा का ज्ञान होता है। इसके पश्चात् जब आत्मा नाभिचक्र में और हृदय चक्र में ध्यानावस्था में पहुंचता हैं, तब उसे आकाशगंगा का ज्ञान होता हैं और जब योगाभ्यासी आत्मा समाधि अवस्था में प्राणेन्द्रिय-चक्र में ध्यान लगता हैं, तब वह त्रिवेणी में पहुँच जाता है या त्रिवेण का साक्षातकार करता है। इससे आगे चलकर आत्मा जब ब्रह्मरन्ध में पहुंच जाता है, तब उस योगी को ब्रह्मलोक की गंगा का ज्ञाता होता है।
परन्तु मानव ने इस रूप रेखा को ठीक प्रकार से जाना नहीं इसलिए स्थूल अर्थों की कल्पना द्वारा व्यर्थ भटकता रहता है।
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