सोनिया गांधी के दामाद का फर्जीवाड़ा
रॉबर्ट वाड्रा ने सैकड़ों करोड़ की संपत्ति अर्जित की है। कहां से आए इतने पैसे? पिछले चार सालों में रॉबर्ट वाड्रा ने एक के बाद एक 31 संपत्तियां खरीदी हैं जिसमें से अधिकांश दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में हैं। इन संपत्तियों को खरीदने में वाड्रा को करोड़ो रुपए चुकाने पड़े हैं।
रॉबर्ट वाड्रा और उनकी मां ने पांच कंपनियों का गठन 1 नवंबर 2007 के बाद किया। उन कंपनियों के बही-खातों और ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि इन कंपनियों की कुल शेयर पूंजी मात्र 50 लाख रुपए थी। इन कंपनियों के पास आय का एकमात्र वैध स्रोत था डीएलएफ द्वारा मिला ब्याज मुक्त कजर्। इसके अलावा इन कंपनियों की आय का कोई वैध स्रोत नहीं है। फिर भी 2007 से 2010 के दौरान इन कंपनियों ने 300 करोड़ से अधिक की संपत्ति अर्जित की जिसकी कीमत आज 500 करोड़ से ऊपर पहुंच चुकी है।
इन कंपनियों ने जो जानकारी दी उसके मुताबिक इतनी बड़ी संपत्ति अर्जित करने के लिए धन की व्यवस्था उन्होंने डीएलएफ लिमिटेड द्वारा मिले ब्याज मुक्त ऋण (65 करोड़ से अधिक) से ही की। इस संपत्ति का बड़ा हिस्सा डीएलएफ से ही खरीदा गया है लेकिन कीमतें बाजार भाव से बहुत कम पर दिखाई गई हैं। इस तरह डीएलएफ गुडग़ांव के मैग्नोलिया अपार्टमेंट के 7 फ्लैट वाड्रा की कंपनियों ने कुल मात्र 5।2 करोड़ रुपए में खरीद लीं जबकि प्रत्येक फ्लैट का बाजार भाव खरीद के समय में 5 करोड़ से ऊपर था। आज एक-एक फ्लैट की कीमत 10-15 करोड़ रुपए तक जा पहुंची है।
उसी तरह गुडग़ांव के डीएलएफ अरालियाज आपार्टमेंट में 10,000 वर्ग फीट के एक फ्लैट की खरीद कीमत केवल 89 लाख रुपए दिखाई गई है जबकि खरीद के समय यानी 2010 में इसका बाजार भाव 20 करोड़ था जो आज 30 करोड़ तक जा पहुंचा है। इतना ही नहीं डीएलएफ ग्रुप के दिल्ली के साकेत में स्थित एक होटल (डीएलएफ हिल्टन गार्डेन इन) का 50 फीसदी शेयर की खरीद केवल 32 करोड़ में दिखाई जबकि इसका बाज़ार भाव 150 करोड़ से ऊपर था। इन संपत्तियों का ब्योरा और उनके अधिग्रहण से जुड़ी जानकारियां संलग्न नोट में है। यह नोट इन कंपनियों की बैलेंस शीट और ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया है जिसके लिए सूचनाएं रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज (आरओसी) के पास से जुटाई गई हैं।
देश की सत्ता पर काबिज एक राजनीतिक परिवार के दामाद द्वारा इतनी ज्यादा संपत्तियों का अधिग्रहण कई सवालों को जन्म देता है:
1. डीएलएफ ने रॉबर्ट वाड्रा को इतना बड़ा ब्याज मुक्त कर्ज क्यों दिया होगा?
2. डीएलएफ लिमिटेड वाड्रा को औने-पौने दाम पर अपनी संपत्तियां क्यों बेच रहा था जिसके लिए पैसे भी खुद डीएलएफ ही दे रहा था?
3. यह बात किसी से छुपी नहीं है कि हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने डीएलएफ को गुडग़ांव में मैग्नोलिया प्रोजेक्ट (जिसमें सात अपार्टमेंट वाड्रा को मिले हैं) के लिए 350 एकड़ जमीन दी है। इसके अलावा भी डीएलएफ को कांग्रेस सरकारों ने हरियाणा और दिल्ली में कई और जमीनें तथा दूसरे फायदे पहुंचाए हैं। क्या वाड्रा को सैकड़ों करोड़ की इन संपत्तियों को खरीदने के लिए धन मुहैया कराकर, डीएलएफ कांग्रेस सरकार के अहसान चुका रहा था?
4. यह साफ है कि वाड्रा की इन संपत्तियों को हासिल करने में बेहिसाब काले धन का इस्तेमाल हुआ है। इस धन का स्रोत क्या है? क्या कांग्रेस पार्टी का काला पैसा सत्ताधारी दल के दामाद की अकूत सपत्तियां अर्जित करने में लगाया जा रहा है?
5. ऊपर बताई गई संपत्ति तो केवल उस संपत्ति का ब्योरा है जो रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के पास जमा किए गए विवरण से प्रकाश में आया है औऱ यह तो एक छोटा सा नमूना भर हो सकता है। प्रारंभिक सूचना इस बात की ओर इशारा करती है कि ऐसी औऱ भी बहुत सी संपत्तियां होगीं जो इसी तरह हासिल की गई होंगी। यहां यह बताना भी जरूरी हो जाता है कि वाड्रा ने 2012 में छह नई कंपनियों का पंजीकरण कराया है। ऊपर बताए गए तथ्य इस बात का संकेत देते हैं कि इस लेन-देन में भ्रष्टाचार निरोधी कानून और आयकर कानूनों के मुताबिक कुछ भारी गड़बडिय़ा हो रही हैं। इसकी जांच क्यों नहीं कराई गई? इन प्रश्नों का उत्तर एक निष्पक्ष व स्वतंत्र जांच से ही मिलेगा। सवाल यह है कि क्या ऐसी जांच होगी और होगी तो कौन करेगा जांच? क्या यह जांच भी वही सरकारी एजेंसी करेगी जिस पर एक तरह से सत्ताधारी परिवार का ही नियंत्रण है? हम इसी कारण एक स्वतंत्र लोकपाल की मांग कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि क्या वे लोग कभी ऐसा लोकपाल बनाएंगे जिसके गठन से खुद उनके ही जेल जाने का खतरा मंडराने लगे