किसी भी देश के लिए स्टॉक (पूंजी) बाजार में हो रहा उतार चढ़ाव उस देश की अर्थव्यवस्था में भविष्य में होने वाले परिवर्तनों को दर्शाता है। यदि स्टॉक बाजार में तेजी दिखाई देती है तो इसका आशय सामान्यतः यह लगाया जाता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था में सुधार दृष्टिगोचर है। इसके विपरीत यदि स्टॉक बाजार नीचे की ओर जाता दिखाई देता है तो इसका आशय यह लगाया जाता है कि निकट भविष्य में उस देश की अर्थव्यवस्था में कुछ समस्याएं आने वाली हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में आज लगभग किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं है, जिसके चलते भारत का स्टॉक बाजार नित नई ऊंचाईयां हासिल करता दिखाई दे रहा है। इसके ठीक विपरीत अमेरिका, चीन, रूस, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, आदि जैसे लगभग सभी विकसित देशों में आज आर्थिक समस्याओं का अंबार लगा है। मुद्रा स्फीति की समस्या को तो कई विकसित देश अभी भी सम्हाल नहीं पाए हैं। विदेशी निवेशक संस्थानों का भरोसा इसी के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर वापिस बहाल हुआ है और औसतन प्रतिदिन 100 करोड़ रुपए के शेयर विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय स्टॉक बाजार में खरीद रहे हैं।
वर्ष 2014 के बाद से भारतीय स्टॉक बाजार ने जो रफ्तार पकड़ी हैं, वह भारतीय स्टॉक बाजार के इतिहास में पहिले कभी भी नहीं रही है। 7 अप्रेल 2014 को भारत में सेन्सेक्स 22,343 अंकों पर था, जो 26 मई 2014 को 24,700 के आंकड़े को पार कर गया। वर्ष 2019 में चुनावी बिगुल बजने से पहले 10 अप्रेल 2019 को सेन्सेक्स 38,600 अंकों पर पहुंचा। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में स्टॉक बाजार ने लगभग 73 प्रतिशत यानी 16,250 अंको से ज्यादा की छलांग लगाई। वर्ष 2020 में कोरोना महामारी पर नियंत्रण स्थापित करते हुए भारत ने पूरी दुनिया के पटल पर सफलता की एक कहानी लिखी। वर्ष 2020 में भारतीय स्टॉक बाजार ने दुनिया के बाजारों के मुकाबले निवेशकों को 15 प्रतिशत से अधिक का रिटर्न प्रदान किया। मौजूदा समय में भारत में सेन्सेक्स 65,000 के पार पहुंच गया है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में सेन्सेक्स ने 66 प्रतिशत यानी 25,500 अंकों की तेजी दिखाई है। बम्बई स्टॉक एक्स्चेंज का मार्केट केप 7 अप्रेल 2014 को 74.51 लाख करोड़ रुपए था, जो वर्तमान में बढ़कर 294.11 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच चुका है। इस प्रकार, इस दौरान निवेशकों की झोली में 219.59 लाख करोड़ रुपए आ चुके हैं। भारत में पिछले 40 दिनों में सेन्सेक्स ने लगभग 1800 अंकों की छलांग लगाई है।
भारतीय स्टॉक बाजार में वर्ष 2014 से वर्ष 2023 के दौरान विदेशी निवेशकों की अहम भूमिका रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 4,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश भारतीय स्टॉक बाजार में किया है। अप्रेल 2023 से जुलाई 2023 तक विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 1500-1600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश भारतीय स्टॉक बाजार में किया है। जो विदेशी संस्थागत निवेशक जनवरी-फरवरी 2023 में भारतीय कम्पनियों के शेयर बेचकर चीन की कम्पनियों के शेयर खरीद रहे थे परंतु अब मार्च-अप्रेल 2023 के बाद से पुनः वे भारतीय कम्पनियों के शेयर खरीदने लगे हैं। पिछले 9 वर्षों में से केवल 2 वर्ष ही ऐसे रहे हैं जिनमे विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारतीय स्टॉक बाजार में शुद्ध रूप से निवेश ऋणत्मक रहा है।
विदेशी संस्थागत निवेशक आज भारतीय स्टॉक बाजार की ओर इतना अधिक आकर्षित क्यों हो रहे हैं। एक तो भारतीय स्टॉक बाजार ने अपने निवेशकों को बहुत अधिक रिटर्न प्रदान किए हैं। जब हम इस रिटर्न की तुलना अन्य देशों के पूंजी बाजार से करते हैं तो ध्यान में आता है कि विश्व के अन्य कई देशों के स्टॉक बाजार में निवेश पर लगभग 8-9 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है, जबकि भारतीय स्टॉक बाजार में निवेश पर लगभग 15-16 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है। इसी प्रकार, अमेरिका में बांड्ज में निवेश पर केवल 2-3 प्रतिशत अथवा अधिकतम 5 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है और भारत में बैंक में सावधि जमाराशि पर लगभग 6 प्रतिशत का रिटर्न मिलता है, ऋण, कामर्शियल पेपर, बांड्ज आदि पर भी लगभग 6 से 7.5 प्रतिशत तक रिटर्न मिलता है। सोने के निवेश पर भी रिटर्न लगभग 7 से 8 प्रतिशत का ही रहता है, और रियल इस्टेट में निवेश पर लगभग 9 से 11 प्रतिशत तक का रिटर्न मिलता है। जबकि भारतीय स्टॉक बाजार में वर्ष 1980 में सेन्सेक्स 100 अंकों पर था जो आज 67,000 अंकों पर आ गया है। अतः स्टॉक बाजार ने प्रतिवर्ष औसत 16 प्रतिशत की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से अधिक की रिटर्न निवेशकों को दिलाई है। लम्बी अवधि में सामान्यतः केवल स्टॉक बाजार ही मुद्रा स्फीति से अधिक की वृद्धि दर देता आया है।
दूसरे, पिछले लगभग 10 वर्षों के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर में अतुलनीय सुधार हुआ है। हाल ही के वर्षों में भारत में बुनियादी ढांचा को विकसित करने में बहुत अधिक काम सम्पन्न हुआ है और अब भारतीय बुनियादी ढांचा विकसित देशों के बुनियादी ढांचे से टक्कर लेता दिखाई दे रहा है। इसी प्रकार के प्रयास अब विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करने के लिए भी किए जा रहे हैं। ऑटो उद्योग के लिए ‘चिप’ निर्माण करने वाली इकाईयों को अब भारत में ही स्थापित किया जा रहा है, जबकि अभी तक भारत में चिप का आयात किया जा रहा था। सुरक्षा के क्षेत्र में भी विभिन्न उत्पादों का आयात किया जाता था परंतु अब भारत में ही विनिर्माण इकाईयों की स्थापना की जा रही हैं और भारत इस क्षेत्र में आत्म निर्भर बनता जा रहा है। मोबाइल विनिर्माण इकाईयों की स्थापना भारत में हुई है, भारतीय ऑटो उद्योग तो अब विश्व में नम्बर एक उद्योग बनने की ओर आगे बढ़ रहा है। विश्व की कई बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयां भारत में स्थापित करती जा रही हैं। कई देशों के साथ भारत के मुफ्त व्यापार समझौते सम्पन्न हो रहे हैं तथा कुछ देशों के साथ विदेशी व्यापार भी भारतीय रुपए में सम्पन्न किया जाने लगा है, जिससे अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम हो रही है। रूस, ईरान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि कई देशों के साथ रुपए में विदेशी व्यापार प्रारम्भ हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की कीमत बढ़ रही है। इससे भारत में विदेशी निवेश के लिए माहौल बन रहा है। साथ ही इस सबका प्रभाव यह हो रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब प्रतिवर्ष 7 प्रतिशत से अधिक की दर से आगे बढ़ रही है और आगे आने वाली कई दशाब्दियों तक भारतीय अर्थव्यवस्था में इसी प्रकार की तेजी बने रहने की अपार सम्भावनाएं मौजूद हैं। स्टॉक बाजार देश की अर्थव्यस्था का आईना रहता है। भारत में स्टॉक बाजार के तेज गति से बढ़ने का आश्य भी यही है कि भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर आकर्षक बनी रहेगी।
आगे आने वाले समय में भारतीय स्टॉक बाजार में वृद्धि दर और भी तेज होने की सम्भावना इसलिए भी बलवती होती जा रही है क्योंकि आज भी भारतीय स्टॉक बाजार में खुदरा निवेशकों की पैंठ बहुत कम है। 140 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले देश में केवल 14 करोड़ डीमेट खाते खोले जा सके हैं। कोरोना खंडकाल से पहिले भारत में डीमेट खातों की संख्या केवल 4 करोड़ के आसपास थी और कोरोना खंडकाल के दौरान लगभग 7-8 करोड़ नए डीमेट खाते खोले गए हैं। हालांकि अब खुदरा निवेशकों का रुझान तेजी से स्टॉक बाजार की ओर बढ़ रहा है। डिपोजिटरी आंकड़ों के अनुसार खुदरा घरेलू निवेशकों ने भारतीय स्टॉक बाजार में 7 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया है।
एक और महत्वपूर्ण कारण जिसके चलते भारतीय स्टॉक बाजार में तेजी बरकरार रहने की सम्भावना है वह है भारत में जीओ पालिटिकल टेंशन तुलनात्मक रूप से कम है, जबकि अन्य देशों के आपसी सम्बंध बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं। यूरोपीय देश आपस में लड़ रहे हैं तो इधर रूस एवं यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा है। चीन के भी अपने पड़ौसी देशों से सम्बंध बहुत अच्छे नहीं हैं। साथ ही, भारत में राजनैतिक स्थिरता है, विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था भारत में ही मानी जाती है। भारतीय राज्य भी अब आर्थिक विकास के मामले में आपस में प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं। पहिले केवल गुजरात राज्य को ही तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था कहा जाता था। परंतु, अब उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओड़िसा आदि राज्य भी विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं इनमे से कुछ राज्यों ने तो अपनी अर्थव्यवस्थाओं को 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का बनाने की ओर अपने कदम बढ़ा दिये हैं। 19वीं शताब्दी यदि यूरोप की थी और 20वीं शताब्दी यदि अमेरिका की थी तो अब 21वीं शताब्दी भारत की होने जा रही है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झांसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474 009
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।