उत्तर प्रदेश की कमान संभाले हुए अखिलेश यादव को अब सात माह से अधिक का समय हो गया है। वह एक युवा हैं और युवा होने के नाते प्रदेश की जनता को विशेष अपेक्षाएं उनसे हैं। युवा बीते हुए कल से कम बंधा होता है, वह आने वाले कल के सुनहरे सपने बुनता है इसलिए उससे अपेक्षा की जाती है कि वह विषैले कल की गलतियों को सुधार कर आने वाले कल के सुनहरे सपनों को जमीन पर उतारकर नये युग की नींव रखेगा। मुलायम सिंह यादव ने प्रदेश को जब अपने युवा बेटे के लिए छोड़ा और स्वयं ने केन्द्र की ओर को रूख कर लिया था, तो लगा था कि हम सचमुच प्रदेश के साथ न्याय कर रहे हैं। एक युवा प्रदेश की सूरत और सीरत बदलेगा और उत्तर प्रदेश उत्तम प्रदेश बनने की डगर पर आगे बढ़ेगा। लेकिन सात माह के शासन काल में प्रदेश में 273 हत्याओं के केस दर्ज हुए हैं, आरक्षण की घटनाएं 2680, लूट की 1812, बलात्कार 1134, डकैती 483 और साम्प्रदायिक दंगे की घटनाएं 9 स्थानों पर हुई हैं। ये आंकड़े बता रहे हैं कि उत्तम प्रदेश बनने के स्थान पर प्रदेश किधर जा रहा है? राजनीति में कोई किसी का नही होता। अपने अपने स्वार्थों की लड़ाई सब लड़ते हैं और स्वार्थ जिसके जिस व्यक्ति के साथ रहकर पूरे होते हों वह उसी के गीत गाता है। राजनीति निर्दयी नही होती लेकिन इसके नियामक और संचालक निर्दयी होते हैं जो स्वार्थ पूरे होते ही व्यक्ति को निर्दयता से कुचल देते हैं। इसलिए हर व्यक्ति अपने दांव पर सजग और चौकन्ना खड़ा रहता है, जैसे ही अगले की गोटी फंसती है, तुरंत वह चीते की सी छलांग अपने शिकार पर मारता है और उसे खत्म कर डालता है। ऐसे चीतों के उदाहरणों से स्वतंत्र भारत की राजनीति भरी पड़ी है। कुछ थके हुए चीते भंी होते हैं जो हताश और निराश होकर अपनी छलांग पर पश्चात्ताप करते हैं, और अपने गुनाहों की माफी के लिए अपनी शक्ल को भोली भाली बनाने का प्रयास करते हैं-कहते हैं गलती हो गयी, वापस बुला लो। कल्याण सिंह भाजपा से और अमर सिंह सपा से अब ये ही टेर लगा रहे हैं। थके हुए ये चीते अपनी छलांग पर पश्चात्ताप कर रहे हैं या कहिए कि पुन: अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ‘अपने परिवार’ में जाने को आतुर हैं। ज्यों ज्यों समय निकल रहा है त्यों त्यों इनकी अकुलाहट बढ़ती जा रही है। उधर सपा में शिकार करने में माहिर कुछ आजम खां और शिवपाल सिंह यादव पहले से ही बैठे हैं। वो अपने ढंग से मुख्यमंत्री को हांकना चाहते हैं और प्रदेश की राजनीति में अपना खुला हस्तक्षेप बनाये रखना चाहते हैं। अखिलेश युवा तो हैं पर उच्छ्रंखल युवा नही हैं, वह बड़ों का सम्मान करना चाहते हैं और प्रदेश की हुकूमत भी चलाना चाहते हैं। शायद यह द्वंद्व भाव ही उनके भीतर के अखिलेश को बाहर नही आने दे रहा है। समय तेजी से निकल रहा है। प्रदेश में दंगों की बढ़ती घटनाएं युवा मुख्यमंत्री के लिए समस्या पैदा कर रही हैं। प्रदेश का बहुसंख्यक हिंदू समाज इस समय खुश नही है जो इस प्रकार की घटनाओं को प्रदेश और समाज के लिए अनुचित मानता है। प्रदेश के पुलिस बल पर शासन की गलत नीतियों के कारण प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। यही कारण है कि कुछ मुस्लिमों द्वारा डासना गाजियाबाद में पुलिस थाने में घुसकर ही उत्पात मचाने का प्रयास जब किया गया तो उन उन्मादी लोगों के खिलाफ भी पुलिस प्रशासन कोई कड़ी कार्रवाई नही कर पाया क्योंकि प्रदेश में एक बड़े नेता का वरदहस्त उन पर था।अपराध के बढ़ते और अपने गिरते ग्राफ पर स्वयं मुख्यमंत्री को सक्रिय होना हेागा। केवल 2014 के आम चुनावों को दृष्टिïगत रखकर निर्णय लेना और नीति निर्माण करने से काम नही चलेगा। चुनावी वायदों को पूरा करके रिश्वत दे देकर वोट बैंक पक्का करने की नीति अब फलीभूत नही होगी। समय वायदों का नही बल्कि जनता के फायदों का है। जनहित जिससे सधे और हर वर्ग जिससे सुख चैन की अनुभूति करे जनता उन्हीं नीतियों का क्रियान्वयन और अनुपालन चाहती है। प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री को इस दिशा में ठोस पहल करनी ही होगी।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।