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कविता

कुंडलियां … 34 , विद्या कौ कर दान तू,……

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दानी उसे मत मानिए, करता फिरै बखान।
एक हाथ दानी बने, दूजा हो अनजान।।
दूजा हो अनजान, दान की विधि यही है।
दान समय नीचे नैन, उत्तम सोच यही है।।
खूब करे बखान, बकता है मन अभिमानी।
मूर्ख ऐसा नर है , मैं ना मानूं उसको दानी।।

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नेकी कर दरिया बहा, यही सुजन कौ काम।
पीछे मत देखो सजन, मिल जाएगा धाम।।
मिल जाएगा धाम ,अमर पद पाएगा तू।
इहलोक से ले विदा, परलोक में जाएगा तू।।
पुरस्कार तू पाएगा, गर करेगा जग में नेकी।
इहलोक में फैलेगा यश, करता जा तू नेकी ।।

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विद्या कौ कर दान तू, है सबसे उत्तम दान।
विद्या के प्रकाश से, होय विश्व कल्याण।।
होय विश्वकल्याण , ज्योतिर्मय जीवन होता।
मिले प्रेरणा सबको, मनुज पुरुषोत्तम होता।।
दया, दमन और दान, इनकी भी है विद्या ।
तत्व ज्ञानी होता वही, जो जाने तीनों विद्या।।

दिनांक : 10 जुलाई 2023

डॉ. राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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