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गौ और गोवंश

प्राचीन भारत में गौपालन व्यवस्था*

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लेखक आर्य सागर खारी🖋️

हमें और आपको अक्सर बताया जाता है कि अतीत के स्वर्णिम काल में हमारा देश विश्वगुरु व सोने की चिड़िया था लेकिन यह नहीं बताया जाता किन आदर्श लोक कल्याणकारी व्यवस्थाओं से यह देश सोने की चिड़िया बना|

वैदिक काल की व्यवस्थाओं की झलकियां हमें कोटिल्य लिखित अर्थशास्त्र ग्रंथ में मिलती है| हम आपको बताते हैं वैदिक भारत में गाय जैसे उपकारी पशु के संरक्षण संवर्धन के लिए सरकार की क्या व्यवस्था थी|
सबसे पहले 400 ग्रामों को इकट्ठा कर समूह बनाया जाता था जिसे द्रोणमुख कहते थे| 800 गांवों के समूह को स्थानिक कहते थे |

इनमें से प्रत्येक गांव के लिए पांच पांच व्यक्तियों का समूह राजकीय सेवा में गोपालन संरक्षण संवर्धन के लिए चयनित किया जाता था जिसके लिए लिखित परीक्षा आयोजित होती थी| प्रत्येक समूह को सौ सौ गायों के पालन की जिम्मेदारी दी जाती थी| इन सबके ऊपर वृक्षायुर्वेद पशु शरीर विज्ञान जैसे विषयों के ज्ञाता गो अध्यक्ष की नियुक्ति की जाती थी| आज की प्रशासकीय व्यवस्था में जिसे सचिव कह सकते हैं|

बड़ी-बड़ी चारागाह बनवाई जाती थी जिन्हें ब्रज कहा जाता था| पशु चोरी तस्करी के अपराधों में मृरत्युदंड की सजा का प्रावधान था| पशु चोरों को पकड़ने वालों को पारितोषिक दिया जाता था शासन की ओर से| बूढ़े बीमार पशु का अलग वर्ग बनाया जाता था स्वस्थ दूध देने वाले पशुओं के लिए अलग चारागाह बनाई जाती थी| राज्य के समस्त पशुओं का हुलिया उन्हें विशेष चिन्ह से दागा जाता था रंग सींगों की विशेषताएं प्रत्येक महीने को अध्यक्ष के कार्यालय में उपस्थित पुस्तक में लिखी जाती थी| गो अध्यक्ष के पास महाजनपद के प्रत्येक पशु का विवरण होता था| यदि कोई शासकीय कर्मचारी पशुओं के विवरण में पैसे लेकर तब्दीली या पशु आहार में कटौती में लिप्त पाया जाता था तो उसके दोनों हाथ के अंगूठे काट दिए जाते थे| 10 गुना आर्थिक दंड भी लगाया जाता था|

प्रत्येक पशु की बिक्री का विवरण अध्यक्ष को देना होता था | गांव के लिए नियुक्त शासकीय अधिकारी द्वारा प्रत्येक गांव के पशुओं की हर महीने पशु गणना कराई जाती थी न्यूनतम 2 माह के बछड़ा बछड़ी का भी रिकॉर्ड उसमें रखा जाता था उसी दौरान उसका हुलिया नस्ल संबंधी विवरण तैयार कर लिया जाता था| मृत पशुओं की शव विछेदन
Postmartum रिपोर्ट तैयार होती थी।

निजी पशु पालकों के लिए राजव्यवस्था गो अभ्यारण बनवाती थी जिनमें तमाम सुख-सुविधाएं होती थी गायों के लिए नाम मात्र का शुल्क इसकी एवज में लिया जाता था|

गाय के दूध उत्पाद को सेना के कर्मचारियों के लिए भेजा जाता था| शेष बचे दूध , घी को गुरुकुलों, विश्वविद्यालय , गरीबों के लिए वितरित किया जाता था| वैदिक भारत में 30% जनसंख्या को सीधा रोजगार गोपालन से मिलता था वेतन के रूप में नगद|

हमारे प्राचीन गोपालन के शासकीय इस मॉडल को दक्षिण अमेरिकी यूरोपिय देशों ने पूरी तरह अपनाया लेकिन आजादी के बाद भारत That is India इंडिया की धर्मनिरपेक्ष सरकारें राज व्यवस्था कुछ ना कर सकी|

चर्चा अगले अंक में जारी रहेगी………………………

आर्य सागर खारी✒✒✒

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